यदि हालिया विधानसभा चुनावों के नतीजों को 2024 के आम चुनावों का ‘सेमीफाइनल’ माना जाए तो यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की जीत निश्चित है। सत्ताधारी दल ने तीन हिंदी प्रदेशों में जीत का परचम लहराया जबकि कांग्रेस को तेलंगाना से संतोष करना पड़ा। बड़ी तस्वीर पर गौर करें तो अब तक आए नतीजे (मिजोरम में सोमवार को मतगणना होगी) इस बात की पुष्टि करते हैं कि विंध्य पर्वतश्रृंखला के दोनों ओर भाजपा की लोकप्रियता में काफी अंतर है।
खासतौर पर मई में कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के बाद। परिणाम बताते हैं कि 2024 के आम चुनाव के पहले विपक्ष की भारी भरकम योजनाएं निरर्थक हैं क्योंकि आईएनडीआईए गठबंधन का प्रमुख राष्ट्रीय दल यानी कांग्रेस अपनी स्थिति मजबूत कर पाने में नाकाम रहा है। बल्कि तेलंगाना में सत्ता विरोधी लहर के लाभ को छोड़ दें तो अन्य स्थानों पर उसका प्रदर्शन काफी खराब रहा है।
जबकि भाजपा का प्रदर्शन काफी हद तक चुनाव के पहले और एक्जिट पोल की तुलना में भी बेहतर रहा जिनमें अनुमान लगाया गया था कि राजस्थान और मध्य प्रदेश में करीबी मुकाबला होगा जबकि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बरकरार रहेगी। पार्टी ने तीनों राज्यों में अच्छा खासा बहुमत हासिल किया है।
जहां 2018 में तीनों हिंदी प्रदेशों में कांग्रेस की अप्रत्याशित जीत में सत्ता विरोधी लहर की अहम भूमिका थी, वहीं भाजपा मध्य प्रदेश में अपनी सीटें और मत प्रतिशत दोनों में अच्छा खासा सुधार करने में कामयाब रही। पार्टी 2020 में प्रदेश में दोबारा सत्ता में आई थी क्योंकि कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक 22 विधायकों ने उनके साथ कांग्रेस से बगावत कर दी थी।
इन बातों के बावजूद निवर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उल्लेखनीय प्रदर्शन किया हालांकि आर्थिक प्रबंधन के मामले में उनका काम राजस्थान और छत्तीसगढ़ के निवर्तमान मुख्यमंत्रियों से बेहतर नहीं रहा है। अशोक गहलोत और मुख्यमंत्री पद के एक अन्य दावेदार सचिन पायलट की आपसी लड़ाई ने भी राजस्थान में कांग्रेस के लिए हालात मुश्किल किए।
राजस्थान और मध्य प्रदेश की बात करें तो 2022 में पंजाब की तर्ज पर कांग्रेस इस बात पर रंज कर सकती है कि उसने महत्त्वाकांक्षी युवाओं पर पुराने नेताओं को तरजीह दी। परंतु कांग्रेस को असली झटका छत्तीसगढ़ में लगा जहां भाजपा ने सीटों और मत प्रतिशत के मामले में अब तक का सबसे बेहतर प्रदर्शन किया।
यह निष्कर्ष भी निकाला जा सकता है कि कल्याण योजनाएं चुनाव जीतने के लिए जरूरी हैं लेकिन केवल उनके भरोसे चुनाव नहीं जीता जा सकता। तेलंगाना में के चंद्रशेखर राव की पार्टी बीआरएस किसानों के लिए लाई अपनी रैयतु बंधु योजना के बावजूद चुनाव नहीं जीत सकी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजस्थान में अशोक गहलोत की कई मुफ्त घोषणाओं का मजाक उड़ाते हुए और उन्हें रेवड़ी घोषित करते हुए एक राष्ट्रीय बहस को जन्म दिया था।
परंतु मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री चौहान ने भी कमोबेश उसी तर्ज पर गरीबों के लिए घोषणाएं कीं। एक अंतर शायद यह है कि भाजपा का कट्टर हिंदुत्व भी हिंदी प्रदेश में विपक्ष के नरम हिंदुत्व पर भारी पड़ा। हिंदी प्रदेश के ताजा नतीजे एक तरह से 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजों की तरह हैं जब भाजपा ने तीनों कांग्रेस शासित राज्यों में आसान जीत दर्ज की थी। ये चुनाव मोदी के लिए परीक्षा की घड़ी थे क्योंकि वह तीनों राज्यों में पार्टी का चेहरा थे। बीते नौ साल में कांग्रेस अनेक अवसरों पर खुद को भाजपा के इस फॉर्मूले का विश्वसनीय विकल्प साबित कर पाने में विफल रही है।