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  आज का अखबार  इंटरनेट पर विज्ञापन आधारित राजस्व ढांचा गुजर रहा बड़े बदलाव से
आज का अखबारलेख

इंटरनेट पर विज्ञापन आधारित राजस्व ढांचा गुजर रहा बड़े बदलाव से

पिछले 12 महीने में हुए दो तकनीकी बदलाव विज्ञापन आधारित राजस्व ढांचे के लिए खतरा बनते जा रहे हैं। इनमें पहला ‘चैटजीपीटी’ एवं इसी तरह का कृत्रिम मेधा (आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस) आधारित एल्गोरिद्म है, जो नैचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग (एनएलपी) में कारगर है। दूसरा तकनीकी बदलाव ऐपल का ‘ऐप ट्रैकिंग ट्रांसपैरेंसी’ (एटीटी) लेकर आया है।

देवांशु दत्ता देवांशु दत्ता —February 21, 2023 9:44 PM IST
© BS
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इन दिनों रोज नई तकनीक आ रही है और मौजूदा तकनीक में भी नई-नई खूबियां जोड़ी जा रही हैं। इसे देखते हुए इंटरनेट की मदद से किए जाने वाले कारोबारी ढांचे (वेब इकॉनमी) में उल्लेखनीय स्थिरता दिखी है।

इंटरनेट पर गूगल के सर्च इंजन के जरिये अधिकांश खोज (सर्च) होती है और कंपनी इस प्रक्रिया में आने वाले विज्ञापनों से कमाई करती है। सोशल मीडिया कंपनियों में फेसबुक सबसे आगे है। कंपनी अपने दबदबे का पूरा फायदा उठाते हुए प्लेटफॉर्म पर आने वाले विज्ञापनों के जरिये कमाई करती है।

इंटरनेट आधारित कारोबार या वेब इकॉनमी तकनीक में हुए महत्त्वपूर्ण बदलाव से गुजरने में सफल रही है। इंटरनेट का विकास दूसरे चरण (वेब 2.0) में पहुंचने और मोबाइल के जरिये इंटरनेट के बढ़ते इस्तेमाल के बीच काफी बदलाव हुए हैं। वास्तव में मोबाइल फोन के इस युग में विज्ञापन कारोबार अधिक फला-फूला है।

मोबाइल उपभोक्ताओं के बढ़ने के साथ ही लगभग रोज नए ऐप्लिकेशन आ रहे हैं और इंटरनेट का इस्तेमाल बेतहाशा बढ़ा है। नए ऐप की वजह से वे सूचनाएं भी आराम से हासिल की जा सकती हैं जिनके लिए पहले ब्रॉडबैंड ही एक जरिया था।

मगर पिछले 12 महीने में हुए दो तकनीकी बदलाव विज्ञापन आधारित राजस्व ढांचे के लिए खतरा बनते जा रहे हैं। इनमें पहला ‘चैटजीपीटी’ एवं इसी तरह का कृत्रिम मेधा (आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस) आधारित एल्गोरिद्म है, जो नैचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग (एनएलपी) में कारगर है।

दूसरा तकनीकी बदलाव ऐपल का ‘ऐप ट्रैकिंग ट्रांसपैरेंसी’ (एटीटी) लेकर आया है। ओपनएआई (अब माइक्रोसॉफ्ट की साझेदार) का चैटजीपीटी और एनएलपी की तर्ज पर विकसित गूगल का ‘बार्ड’ इंटरनेट पर खोज के तरीकों में बदलाव लाने के लिए पूरी तरह तैयार दिख रहे हैं। इसके अलावा ये दोनों दूसरी खूबियों से भी लैस हैं। एटीटी लक्षित विज्ञापन को मुश्किल बना रहा है इसलिए आईओएस पर विज्ञापन अब पहले की तरह कारगर नहीं रह गया है।

दोनों ही तकनीक (अगर हम नैचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग एआई को एक और एटीटी एवं इसी तरह के उपकरण को दूसरी तकनीक मानें तो) लोगों के व्यवहार के अनुरूप उनका ध्यान खींचने की ताकत रखती हैं। ज्यादातर लोग सामान्य लिंक के बजाय इंटरनेट पर खोज के दौरान आसान शैली वाले एनएलपी के खोज परिणामों को तरजीह दे रहे हैं।

लोग कई तरह की सामग्री सहित कविता एवं काल्पनिक कथा लिखने के लिए भी चैटजीपीटी का इस्तेमाल कर रहे हैं। कई ऐसे रेडिट लिंक भी हैं जो अश्लील एवं यौन उत्तेजना बढ़ाने वाली सामग्री तैयार करने में एआई की पाबंदी की काट निकालने की तरकीब बताते हैं। ‘50 शेड्स’ या ‘फैंटैस्टिक बीस्ट्स’ जैसी कहानियां चैटजीपीटी की मदद से आसानी से लिखीं जा सकती हैं।

इन नई तकनीकों के आने के बाद गूगल और फेसबुक दोनों ही के लिए मुश्किलें खड़ी हो गई हैं। इनके राजस्व में आई गिरावट के लिए कहीं न कहीं ये दोनों तकनीकी बदलाव जिम्मेदार हैं। फेसबुक ने लगभग साफ कह दिया है कि राजस्व में नुकसान के लिए एटीटी जिम्मेदार है।

गूगल की मूल कंपनी अल्फाबेट का करोपरांत मुनाफा 2022 में कम होकर 59.9 अरब डॉलर रह गया, जो 2021 में 76 अरब डॉलर रहा था। चौथी तिमाही में विज्ञापन से प्राप्त कंपनी के राजस्व में सालाना आधार पर 2 अरब डॉलर की गिरावट आई है। फेसबुक की मूल कंपनी मेटा का राजस्व वर्ष 2022 में सालाना आधार पर 2 प्रतिशत कम हो गया और औसत विज्ञापन कीमतों में सालाना आधार पर सालाना आधार पर 6 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। वर्ष 2022 में मेटा का करोपरांत मुनाफा कम होकर 23.2 अरब डॉलर रह गया। वर्ष 2021 में यह आंकड़ा 39.4 अरब डॉलर था।

मेटा की पूर्व मुख्य परिचालन अधिकारी शेरिल सैंडबर्ग ने कहा, ‘ऐपल के आईओएस14 ने दूसरे उद्योगों में भी हड़कंप मचा दिया है। इसका नतीजा यह हुआ है कि हमें दो चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। पहला नुकसान तो यह है कि विज्ञापन उपयुक्त लोगों तक पहुंचाने की दर कम हो गई है। इससे विज्ञापनदाताओं के लिए खर्च और बढ़ गया है।

दूसरी मुश्किल यह हुई है कि इससे पैदा हुए हालात को समझना और अधिक कठिन हो गया है।’ एटीटी का ढांचा कुछ इस तरह तैयार किया गया है कि आईओएस पर जब कोई ऐप उपयोगकर्ता पर नजर रख रहा होता है तो इसका पता तुरंत लग जाता है। ऐसे ऐप आसानी से आईओएस पर ब्लॉक किए जा सकते हैं। अधिकांश लोग विभिन्न ऐप पर अपने क्रियाकलापों पर नजर रखने की अनुमति देने से इनकार कर देते हैं। व्यावहारिक दृष्टि से इसे समझा जा सकता है। लोगों को जब लगता है कि उन पर नजर रखी जा रही है तो वे स्वयं को बहुत असहज महसूस करते हैं।

इंटरनेट पर सक्रिय रहने वाले जो लोग अपनी निजता पर आंच आने को लेकर चिंतित रहते हैं उन्हें आईओएस पर जाने की एक अच्छी वजह मिल गई है। इसे देखते हुए गूगल ने ऐंड्रॉयड प्लेटफॉर्म पर कुछ इसी तरह की चीज क्रियान्वित करने पर विचार करना शुरू कर दिया है।

एक बार यह क्रियान्वित होने पर मोबाइल ब्रॉडबैंड यूजर के 98 प्रतिशत से अधिक उपयोगकर्ता एटीटी के किसी न किसी स्वरूप पर आ जाएंगे। आईओएस (27.6 प्रतिशत) और ऐंड्रॉयड (71.7 प्रतिशत) की संयुक्त बाजार हिस्सेदारी काफी अधिक है। यह भी सच है कि ऐप डेवलपर एटीटी की काट खोजने के लिए सर्वर-साइड विधि सहित विभिन्न उपायों के जरिये तरीके खोज रहे हैं। मगर यह करना बहुत मुश्किल है।

जनवरी 2022 तक चैटजीपीटी के 10 करोड़ से अधिक सक्रिय उपयोगकर्ता हो गए थे। चैटजीपीटी की शुरुआत के दो महीने बाद ही यह आंकड़ा यहां तक पहुंच गया था। इंटरनेट के इतिहास में कोई भी इतनी तेजी से सक्रिय उपयोगकर्ता नहीं जोड़ पाया था। टिकटॉक को यह आंकड़ा हासिल करने में नौ महीने और फेसबुक को 55 महीने लग गए थे। माइक्रोसॉफ्ट ने बिंग में चैटजीपीटी को शामिल किया है। यह पहल जरूरत से कुछ ज्यादा लग सकती है मगर इससे निश्चित तौर पर अधिक उपयोगकर्ता जुड़ेंगे।

गूगल का बार्ड टक्कर जरूर देगा मगर बार्ड की शुरुआत की घोषणा के बाद अल्फाबेट के शेयर का भाव लुढ़क गया था। दूसरे एनएलपी भी जल्द ही हरकत में दिख सकते हैं। अल्फाबेट और मेटा दोनों ही दिग्गज कंपनियां हैं और दमदार मुनाफा हासिल करने की ताकत रखती हैं। मगर इन नई तकनीकों से निपटने के लिए विज्ञापन-राजस्व ढांचे में तेजी से बदलाव नहीं किया गए तो उनका दबदबा खतरे में पड़ सकता है।

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