ज्यादा डिविडेंड देने वाले शेयरों में निवेशकों की रुचि बढ़ी है। लेकिन निवेशकों को सोच समझकर इस बात का निर्णय लेना चाहिए कि उनके लिए शेयरों में सीधे निवेश करके या Dividend Yield Fund रूट के जरिए डिविडेंड का लाभ उठाना बेहतर रहेगा।
नौसिखिए निवेशकों को हाई डिविडेंड यील्ड बहुत आकर्षक लगता है। 100 फीसदी यील्ड का मतलब शेयर की फेस वैल्यू के बराबर भुगतान है। उदाहरण के लिए अगर किसी शेयर की फेस वैल्यू 10 रुपये है और कंपनी 100 फीसदी यील्ड की घोषणा करती है, तो शेयरहोल्डर को प्रति शेयर 10 रुपये मिलते हैं। डिविडेंड यील्ड की गणना प्रति शेयर 10 रुपये के डिविडेंड को शेयर मूल्य (करेंट प्राइस) से विभाजित करके की जाती है। यदि शेयर का करेंट प्राइस 1,000 रुपये मान लेते हैं तो डिविडेंड यील्ड इस मामले में केवल 1 फीसदी है।
कंपनियां खासकर अपनी उपलब्धियों की यादगारी में या जब वे अपनी परिसंपत्तियों को बेचते हैं, कभी-कभी स्पेशल डिविडेंड की घोषणा करती हैं, जो अच्छे-खासे होते हैं। लेकिन इस तरह के हाई डिविडेंड आमतौर पर कभी कभी ही दिए जाते हैं।
हाई डिविडेंड यील्ड अर्जित करने के उद्देश्य से शेयरों में निवेश करने को लेकर कई चुनौतियां सामने आती हैं। एक, भविष्य में लगातार हाई डिविडेंड देने वाली कंपनियों की पहचान करना आसान नहीं है। दो, निवेशकों के हाथ में हाई डिविडेंड स्लैब रेट के हिसाब से टैक्सेबल हैं। तीन, निवेशक अक्सर डिविडेंड की छोटी मात्रा को फिर से निवेश न कर खर्च कर देते हैं। परिणामस्वरूप उन्हें कंपाउंडिंग का फायदा नहीं मिलता है।
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Dividend Yield Fund जो अपेक्षाकृत हाई डिविडेंड यील्ड देने वाले वाले स्टॉक को लेकर पोर्टफोलियो का निर्माण करते हैं, इन मुद्दों का समाधान प्रदान करते हैं। भविष्य में ज्यादा कमाई की संभावना वाले शेयरों का चयन करने के मामले में फंड मैनेजर बेहतर काम कर सकते हैं ताकि निवेशकों को ज्यादा डिविडेंड लगातार मिलता रहे। चूंकि म्युचुअल फंड पास-थ्रू संस्थाएं हैं, डिविडेंड प्राप्त होने पर या जब फंड मैनेजर कैपिटल गेन बुक करता है तो स्कीम के स्तर पर कोई टैक्स नहीं लगता है। फंड मैनेजर फंड को प्राप्त होने वाले किसी भी डिविडेंड को ध्यान से रीइन्वेस्ट करते हैं।
Dividend Yield Fund भी निवेशकों के लिए टैक्स के मामले में बेहतर है। सर्टिफाइड फाइनेंशियल प्लानर पारुल माहेश्वरी कहती हैं, ‘डिविडेंड यील्ड फंड द्वारा अर्जित लाभांश को उसके नेट एसेट वैल्यू (NAV) में जोड़ा जाता है। यदि कोई निवेशक एक वर्ष के बाद स्कीम (योजना) से बाहर निकलता है, तो वह लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स का भुगतान करता है। एक वित्त वर्ष में 1 लाख रुपये तक के लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन पर कोई टैक्स नहीं लगता है।’ एक लाख रुपये से ज्यादा की रकम पर 10 फीसदी टैक्स लगता है।
संतोष जोसेफ, मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) और संस्थापक, रेफोलियो इन्वेस्टमेंट्स, डिविडेंड यील्ड फंड के विविधीकरण (diversification) लाभ पर जोर देते हैं क्योंकि ये फंड आम तौर पर एक साथ कई स्टॉक में निवेश करते हैं, जिससे किसी खास स्टॉक को लेकर जोखिम कम हो जाते हैं।
हाई डिविडेंड यील्ड वाले स्टॉक आमतौर पर उच्च ब्याज दर के माहौल में अच्छा प्रदर्शन करते हैं, जब निवेशक नकदी प्रवाह को अधिक महत्व देते हैं। फिलहाल हम ऐसे दौर का अनुभव कर रहे हैं। हालांकि, क्योंकि इन फंडों में मुख्य रूप से हाई डिविडेंड देने वाले स्टॉक होते हैं, ग्रोथ शेयरों में एक्सपोजर कम होता है जो पूंजी में वृद्धि की संभावना प्रदान करते हैं और बुल मार्केट में बेहतर प्रदर्शन करते हैं।
जोसेफ की राय है कि स्थिर आय की तलाश करने वाले कंजर्वेटिव निवेशक डिविडेंड यील्ड फंडों में कुछ पैसा आवंटित कर सकते हैं।
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वॉलेट वेल्थ के संस्थापक और सीईओ एस. श्रीधरन सावधान करते हैं कि निवेशकों को केवल हाल के प्रदर्शन के आधार पर इन फंडों में निवेश नहीं करना चाहिए।
अगर आप डिविडेंड यील्ड फंड में निवेश करना चाहते हैं, तो सीमित एक्सपोजर लेने पर विचार करें। माहेश्वरी का सुझाव है, ‘कम जोखिम लेने की क्षमता वाले कंजर्वेटिव निवेशक, जो मुद्रास्फीति (inflation) को मात देने के उद्देश्य से अपने पोर्टफोलियो में इक्विटी को शामिल करने के इच्छुक हैं, ऐसे फंडों को 8-10 फीसदी धनराशि आवंटित कर सकते हैं। निवेश को 5 साल बनाए रखें । नियमित आय अर्जित करने के लिए systematic withdrawal plan (SWP) का उपयोग करें, जो अधिक कर-संगत (tax efficient) है।
श्रीधरन का मानना है कि रिटायर्ड लोगों का इन फंडों में अधिक निवेश हो सकता है। वह कहते हैं, ‘वैसे रिटायर्ड लोग, जो कुछ जोखिम ले सकते हैं और कर-संगत रिटर्न चाहते हैं, वे डिविडेंड यील्ड फंड में निवेश कर सकते हैं। अपने टोटल पोर्टफोलियो में इक्विटी के लिए 20-30 प्रतिशत के आवंटन में से, वे इन फंडों को 10-20 फीसदी आवंटित कर सकते हैं।