देश में बढ़ती बीमारियों के चलते लोगों को अक्सर मेडिकल स्टोर या फिर हॉस्पिटल का चक्कर दवा खरीदने के लिए लगाना ही पड़ता है। शायद ही कोई व्यक्ति होगा, जिनका इससे पाला नहीं पड़ा होगा। लेकिन जब लोग दवा खरीदने के बाद बिल देखते हैं तो हैरान रह जाते हैं। कई मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, आयुष्मान भारत जैसी सरकारी योजनाओं में भी दवाओं की कीमतें पारदर्शी नहीं हैं, जिससे मरीजों को अनावश्यक बोझ उठाना पड़ता है। साथ ही कई बार रिटेलर्स या हॉस्पिटल ब्रांड वैल्यू या स्टॉक की कमी का हवाला देकर तय सीमा से भी ज्यादा पैसे वसूल लेते हैं।
नेशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (NPPA) के आंकड़ों से पता चलता है कि शेड्यूल्ड दवाओं की सीलिंग प्राइस का पालन न होने से लाखों रुपये का नुकसान हो रहा है। उदाहरण के तौर पर, डायबिटीज या इंफेक्शन की दवाओं की कीमतें हाल ही में रिवाइज हुईं, लेकिन फिर भी बाजार में 10-20 फीसदी ज्यादा चार्जिंग आम है। ये सब इसलिए क्योंकि लोगों को सही जानकारी नहीं मिलती। सरकार ने जुलाई 2025 में 71 जरूरी दवाओं की कीमतें अपडेट कीं, जिसमें मेटास्टेटिक ब्रेस्ट कैंसर और पेप्टिक अल्सर की दवाएं शामिल हैं। फिर भी, ओपेक प्राइसिंग की वजह से सरकारी कवरेज कमजोर पड़ रही है।
NPPA ने मिनिस्ट्री ऑफ केमिकल्स एंड फर्टिलाइजर्स के तहत एक सिंपल ऐप लॉन्च किया है, जिसका नाम है ‘फार्मा सही दाम’। ये ऐप खासतौर पर उन लोगों के लिए है, जिन्हें लग रहा है कि मेडिकल स्टोर या फिर हॉस्पिटल्स आपको दवाओं के ज्यादा पैसे ले रहे हैं।
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नवंबर 2025 में इसका अपडेटेड वर्जन आया है, जो एंड्रॉयड और IOS दोनों पर फ्री डाउनलोड हो जाता है। इसका मकसद है ड्रग्स प्राइस कंट्रोल ऑर्डर (DPCO) 2013 के तहत तय की गई सीलिंग प्राइस को हर किसी तक पहुंचाना। मतलब, अब आप घर बैठे चेक कर सकते हैं कि कोई दवा का असली दाम क्या है। यह ऐप न सिर्फ कीमतें बताता है, बल्कि ब्रांडेड और जेनेरिक दवाओं की तुलना भी करवाता है। सितंबर 2025 में GST कट के बाद NPPA ने दवा कंपनियों को MRP घटाने का आदेश दिया, और यह ऐप उसी का फायदा उठाने में मदद करता है।
जैसे ही आप ऐप खोलेंगे, आपको सर्च बार दिखेगा, जहां आप ब्रांड नेम या जेनेरिक नाम टाइप करके दवा ढूंढ सकते हैं। फिर स्क्रीन पर मैक्सिमम रिटेल प्राइस (MRP) और सीलिंग प्राइस दोनों दिख जाते हैं। अगर कोई दवा महंगी लग रही है तो आप तुरंत फोटो या बिल अपलोड करके कंप्लेंट फाइल कर सकते हैं। इसके बाद NPPA की टीम जांच करेगी और ओवरप्राइसिंग को लेकर कार्रवाई करेगी।
उदाहरण के लिए, मान लीजिए एक ही कंपोजिशन की अलग-अलग ब्रांड्स की दवाओं की कीमतें 30-40 फीसदी तक अलग हो सकती हैं, तो ऐप ये इसकी भी तुलना एक क्लिक में कर देता है। इसके अलावा, सेंट्रल गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम (CGHS) में भी अक्टूबर 2025 से रीयल-टाइम ड्रग ट्रैकिंग शुरू हुई है, जो सप्लाई चेन में पारदर्शिता ला रही है। दवा शॉर्टेज या डिले की शिकायतें कम होंगी। कुल मिलाकर, ये ऐप बाजार की मनमानी रोकने का हथियार है, खासकर छोटे शहरों में जहां जानकारी की कमी ज्यादा है।