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31 मार्च से पहले म्युचुअल फंड की इस स्कीम में करें निवेश, उठाएं 1 लाख रुपये तक के कैपिटल गेन पर टैक्स में छूट का फायदा

पारंपरिक टैक्स सेविंग इंस्ट्रूमेंट्स के मुकाबले म्युचुअल फंड की इस स्कीम में बेहतर रिटर्न मिलने की भी संभावना है।

Last Updated- March 29, 2024 | 2:08 PM IST
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अगर आप वित्त वर्ष 2023-24 के लिए म्युचुअल फंड में निवेश कर 80C के तहत डिडक्शन का फायदा लेना चाहते हैं तो आपको 31 मार्च से पहले ईएलएसएस (Equity Linked Savings Scheme यानी ELSS) में निवेश कर देना चाहिए। म्युचुअल फंड की इस खास स्कीम मेंं यदि आप इन्वेस्ट करते हैं आपको सालाना 1 लाख रुपये तक के कैपिटल गेन पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन (LTCG) टैक्स में छूट भी मिलेगा। साथ ही पारंपरिक टैक्स सेविंग इंस्ट्रूमेंट्स के मुकाबले म्युचुअल फंड की इस स्कीम में बेहतर रिटर्न मिलने की भी संभावना है, क्योंकि इस स्कीम में मिनिमम 80 फीसदी निवेश इक्विटी और इक्विटी-रिलेटेड इंस्ट्रूमेंट में होता है। जिन्होंने अभी तक इक्विटी में निवेश नहीं किया है उनके लिए तो यह इक्विटी में निवेश शुरू करने का बेहतर जरिया है।

क्या है ELSS ?

ELSS (एक्टिव ELSS) एक डाइवर्सिफाइड (diversified) /मल्टीकैप इक्विटी MF स्कीम है जिसमें आपकी रकम को अलग अलग साइज की कंपनियों के शेयरों में निवेश किया जाता है। किसी भी अन्य MF की तरह आप 500 रुपये से इसमें निवेश प्रारंभ कर सकते हैं। जबकि अधिकतम निवेश की कोई सीमा नहीं है। निवेशकों के पास पैसिव ELSS स्कीम में भी निवेश का विकल्प है।

क्या इस स्कीम  पर मिलता है डिडक्शन का फायदा ?

अगर आप पुरानी टैक्स व्यवस्था में हैं तो एक वित्त वर्ष में 80C के तहत deduction का फायदा अधिकतम 1.5 लाख रुपये तक के निवेश (अन्य विकल्पों में निवेश की राशि को मिलाकर) पर ही मिलेगा। नई टैक्स व्यवस्था में ELSS पर इस तरह की कोई छूट नहीं है।

लॉक-इन पीरियड  है कितना ?

अन्य MF स्कीम की तरह इसे जब चाहें रिडीम यानी बंद नहीं कर सकते हैं। ELSS का अनिवार्य लॉक-इन पीरियड 3 वर्ष है। मतलब आप तीन वर्ष से पहले इस स्कीम से नहीं निकल सकते हैं। लेकिन निवेश के उन सारे विकल्पों की तुलना में ELSS का lock-in period सबसे कम है जिन पर पुरानी टैक्स व्यवस्था में 80C के तहत इनकम टैक्स में छूट मिलती है ।

उदाहरण के तौर पर पीपीएफ का lock-in period 15 वर्ष है जबकि NSC, सीनियर सिटीजन सेविंग्स स्कीम (SCSS), टैक्स सेविंग एफडी बैंक/पोस्ट ऑफिस FD, ULIP का 5 वर्ष है। जबकि NPS तो खासकर रिटायरमेंट के लिए है। Lock-in period के बाद भी आप ELSS में निवेश जारी रख सकते हैं।

ELSS से कमाई पर कितना देना होता है टैक्स ?

ELSS एक इक्विटी MF स्कीम है क्योंकि इस स्कीम में मिनिमम 80 फीसदी निवेश इक्विटी और इक्विटी-रिलेटेड इंस्ट्रूमेंट में होता है। अन्य MF स्कीम की तरह इस स्कीम में भी निवेश के दो प्लान — ग्रोथ (growth) और डिविडेंड (dividend) — में से एक चुनने का विकल्प है। ग्रोथ प्लान में रिटर्न स्कीम के बीच नहीं मिलता है। कहने का मतलब रिटर्न रिडेम्शन से पहले नहीं। लेकिन नई और पुरानी दोनों टैक्स व्यवस्थाओं में अनिवार्य lock-in period के बाद 1 लाख रुपये से ज्यादा के कैपिटल गेन पर 10 फीसदी (4 फीसदी सेस मिलाकर कुल 10.4 फीसदी) लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन (LTCG/एलटीसीजी) टैक्स का प्रावधान है।

अगर आप dividend प्लान लेते हैं तो निवेश की अवधि के दौरान (lock-in period से पहले और बाद दोनों), जो रिटर्न dividend के रूप में मिलता है वह आपके सालाना इनकम में जुड़ जाएगा और आपको अपने टैक्स स्लैब के हिसाब से उस रकम पर टैक्स अदा करना होगा।

कितना रिटर्न?

ELSS में वही जोखिम हैं जो इक्विटी MF में निवेश के हैं। इसमें फिक्स्ड रिटर्न जैसी कोई चीज नहीं है। लेकिन अगर आप लांग टर्म में यानी कम से कम 7 से 10 वर्ष के लिए निवेश करेंगे तो आपको फिक्स्ड इनकम इंस्ट्रूमेंट्स (fixed income instruments) की तुलना में बेहतर रिटर्न मिलेगा। इसलिए बेहतर होगा कि 3 वर्ष के अनिवार्य lock-in period के बाद भी ELSS में निवेश को बरकरार रखें। कुल मिलाकर कहें तो टैक्स में छूट पाने से कहीं ज्यादा यह लांग-टर्म इन्वेस्टमेंट का बेहतर विकल्प है।

निवेश का कौन सा ऑप्शन बेहतर – एकमुश्त या SIP?

एकमुश्त (lump sum) के बजाए सिस्टेमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (एसआईपी या SIP) —यानि एक निश्चित मासिक, तिमाही, छमाही, या सालाना अंतराल पर एक निश्चित रकम का निवेश — के जरिए MF में निवेश करना हमेशा बेहतर माना जाता है। क्योंकि इसमें मार्केट को टाइम करने का जोखिम नहीं है। साथ ही मार्केट से संबंधित उतार-चढाव का एवरेजिंग (averaging) भी हो जाता है। लेकिन अगर आप SIP के माध्यम से निवेश करेंगे तो हर किस्त का lock-in period अलग अलग होगा।

अब पैसिव ELSS फंडों में भी कर सकते हैं निवेश

जब से एसेट मैनेजमेंट कंपनियों (asset management companies  यानी AMC) को सेबी (SEBI) की तरफ से पैसिव स्कीम (passive scheme) लॉन्च करने की अनुमति मिली है, निवेशकों के पास एक्टिव के साथ-साथ पैसिव ELSS स्कीम में भी निवेश का विकल्प खुल गया है। इसलिए वैसे निवेशक जो कम जोखिम लेना चाहते हैं,  पैसिव ELSS के साथ जा सकते हैं। पैसिव ELSS में फंड मैनेजर की सक्रिय भूमिका नहीं होती है, इसलिए टोटल एक्सपेंस रेश्यो (total expense ratio) भी एक्टिव स्कीम के मुकाबले कम है। निवेश की रणनीति में निरंतरता (continuity) और पारदर्शिता (transparency) की वजह से भी निवेशक इस नए विकल्प को पसंद कर सकते हैं।

अभी मार्केट में सिर्फ 3 पैसिव फंड ही लॉन्च हुए हैं – 360 ONE ELSS निफ्टी 50 टैक्स सेवर इंडेक्स फंड, Navi ELSS टैक्स सेवर निफ्टी 50 इंडेक्स फंड और Zerodha ELSS Tax Saver Nifty Large Midcap 250 Index Fund। बाकी जो भी फंड उपलब्ध हैं वे एक्टिव ELSS हैं।

क्या है Passive ELSS ?

मार्केट रेगुलेटर भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) की तरफ से जून 2022 में आए सर्कुलर के मुताबिक फंड हाउस 1 जुलाई 2022 से इंडेक्स-आधारित यानी पैसिव टैक्स-सेविंग ELSS फंड लॉन्च कर सकते हैं। इससे पहले, भारत में सभी इक्विटी-लिंक्ड सेविंग्स स्कीम एक्टिव रहे हैं जहां फंड मैनेजर फंड के पोर्टफोलियो को मैनेज करते हैं। पैसिव ELSS फंड के मामले में, पोर्टफोलियो केवल एक अंडरलाइंग इंडेक्स को रिफ्लेक्ट करता है। रिटर्न भी कमोबेश उसी इंडेक्स को ट्रैक करता है।

सेबी के सर्कुलर के अनुसार पैसिव ELSS फंड उन चुनिंदा सूचकांकों पर आधारित होंगे जो मार्केट कैप के मामले में टॉप-250 कंपनियों के शेयरों को ट्रैक करते हैं। लेकिन एसेट मैनेजमेंट कंपनियों के पास एक्टिव और पैसिव दोनों तरह के ईएलएसएस फंड नहीं हो सकते। उन्हें दो विकल्पों में से एक को चुनना होगा।

पिछले साल की शुरुआत यानी जनवरी 2023 में SEBI ने एसेट मैनेजमेंट कंपनियों को पैसिव ELSS शुरू करने से पहले अपनी एक्टिव इक्विटी लिंक्ड बचत योजनाएं बंद करने के निर्देश दिए। मतलब जिन AMC के पास ऐक्टिव ELSS हैं,  वे इसमें नया निवेश बंद करने के बाद ही पैसिव ELSS शुरू कर सकते हैं।

First Published - March 27, 2024 | 4:43 PM IST

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