पैसा सिर्फ खर्च करने या बचाने की चीज नहीं है। यह हमारी सोच, फैसले लेने की ताकत, रिश्तों और करियर पर भी असर डालता है। इंसान की सोच बहुत मायने रखती है। अगर वह हमेशा कमी और डर में जीता है तो पीछे रह जाता है, लेकिन अगर वह मौकों को पहचानता है तो आगे बढ़ता है।
ग्रेट लेक्स इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट चेन्नई के सीनियर एसोसिएट प्रोफेसर प्रो. विश्वनाथन अय्यर और एलायंस स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के विभागाध्यक्ष प्रो. (डॉ.) सुनील कुमार कहते हैं कि आर्थिक स्वतंत्रता और व्यक्तिगत सफलता का असली रहस्य पैसों में नहीं, बल्कि मानसिकता में छिपा है। यही सोच तय करती है कि कोई इंसान केवल गुजर-बसर तक सीमित रहेगा या असली अवसरों को पहचानकर जीवन में ऊंचाई छुएगा।
गरीबी मानसिकता का मतलब है डर और कमी की सोच। ऐसे लोग हमेशा सोचते हैं कि संसाधन कम हैं, सफलता मिलना मुश्किल है और अवसर कम हैं। यही सोच उन्हें छोटी-छोटी खुशियों में फंसाए रखती है। वे लंबी अवधि की योजना बनाने या निवेश करने से डरते हैं।
प्रो. विश्वनाथन अय्यर बताते हैं, “ऐसे लोग हमेशा आज का सुख देखने की कोशिश करते हैं और कल की चिंता नहीं करते। उन्हें लगता है कि पैसा खो सकता है, इसलिए वे जोखिम नहीं उठाते। इस मानसिकता से उनका करियर स्थिर नहीं रह पाता और वे हर समय असुरक्षित महसूस करते हैं।”
गरीबी मानसिकता केवल पैसों तक सीमित नहीं है। यह इंसान की सोच को इतनी सीमित कर देती है कि वह अपने भीतर की संभावनाओं को पहचान ही नहीं पाता। समय के साथ यह डर और असुरक्षा उनके आत्मविश्वास को खत्म कर देती है।
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जब कोई व्यक्ति खुद को हमेशा छोटा या कमतर समझता है, तो वह हर मौके में खतरा ही देखता है। वह नई जिम्मेदारियों से डरता है और सोचता है कि अगर कोई और सफल होगा तो वह पीछे रह जाएगा। इसी सोच के कारण वह जोखिम नहीं लेता और अपने करियर में आगे बढ़ने की बजाय बस समय गंवाता रहता है।
रिश्तों में भी गरीबी मानसिकता असर डालती है। ऐसे लोग अक्सर दूसरों पर भरोसा नहीं करते, मदद मांगने में झिझकते हैं और अपने लिए मजबूत दोस्तों या सहकर्मियों का नेटवर्क नहीं बना पाते। इसके कारण उन्हें करियर में मदद और समर्थन नहीं मिलता और कई अवसर उनसे छूट जाते हैं।
प्रो. सुनील कुमार कहते हैं, “गरीबी मानसिकता वाले लोग हमेशा सिर्फ अपने आज के मुश्किल समय के बारे में सोचते हैं। वे भविष्य की योजना बनाने पर ध्यान नहीं देते। इसी सोच के कारण वे निवेश करने, नए आइडियाज अपनाने और लंबे समय में आगे बढ़ने से डरते हैं।”
समृद्धि मानसिकता का मतलब है कि इंसान हर मौके को देखता है और आगे बढ़ने की सोच रखता है। यह मानता है कि मेहनत और सही कदम से सफलता और पैसा बढ़ाया जा सकता है। ऐसे लोग जोखिम को डर की चीज नहीं, बल्कि सीखने का मौका मानते हैं। वे नियमित रूप से बचत करते हैं, निवेश करते हैं और लंबे समय की योजना बनाते हैं। यह सोच उन्हें आत्मविश्वासी, रचनात्मक और दूसरों के साथ मिलकर काम करने वाला बनाती है।
प्रो. अय्यर कहते हैं, “समृद्धि मानसिकता वाले लोग मुश्किलों में भी मौके देखते हैं। वे कंपटीशन को डर या खतरे की तरह नहीं, बल्कि सीखने और मिलकर काम करने का मौका मानते हैं। यही सोच उन्हें ज्यादा अवसर पाने और जीवन में आगे बढ़ने में मदद करती है।”
मनुष्य की सोच अचानक नहीं बनती। यह बचपन के अनुभवों से बनती है। अगर बच्चा बार-बार सुनता है कि “हम इसे नहीं खरीद सकते”, तो उसमें कमी की सोच पैदा हो जाती है। वहीं, अगर बच्चे को बचत करना, पैसे का सही उपयोग करना और गलती से सीखना सिखाया जाए, तो वह आत्मनिर्भर और आशावादी बनता है।
प्रो. सुनील कुमार कहते हैं, “छोटे-छोटे अनुभव- जैसे कोशिश की तारीफ करना, असफल होने पर हौसला बढ़ाना और मुश्किलों को मौके की तरह देखना- बच्चों की सोच पर हमेशा असर डालते हैं। ये अनुभव उन्हें समृद्धि मानसिकता के साथ जीवन जीने में मदद करते हैं।”
यह सवाल अक्सर उठता है कि क्या कोई इंसान गरीबी मानसिकता से बाहर निकल सकता है। विशेषज्ञों का जवाब है- हां, बिल्कुल।
सबसे पहला कदम है अपनी सोच और पुरानी आदतों को पहचानना। यह समझना जरूरी है कि कौन सी बातें हमें आगे बढ़ने से रोक रही हैं। इसके बाद पैसों की सही आदतें अपनाना जरूरी है। जैसे बजट बनाना, बचत करना और छोटे-छोटे लक्ष्य पूरा करना।
प्रो. सुनील कुमार कहते हैं, “असफलताओं को हमेशा हार मानने की बजाय सीखने का मौका समझना बहुत जरूरी है। सही सलाह, सकारात्मक माहौल और अच्छे लोगों से जुड़ना इस बदलाव को आसान बनाता है।”
दुनिया और भारत में बहुत से लोग गरीबी की सोच छोड़कर समृद्धि की सोच अपनाकर सफल हुए हैं।
समृद्धि की सोच अपनाने के लिए इंसान को अपना नजरिया बदलना होगा। सबसे पहले, हर दिन धन्यवाद या कृतज्ञता महसूस करना जरूरी है। ध्यान यह रखना चाहिए कि आपके पास पहले से क्या है, न कि आप क्या नहीं पा रहे हैं।
‘मैं नहीं कर सकता’ की जगह ‘मैं इसे कैसे कर सकता हूं?’ कहना शुरू करें। अपने लक्ष्य लिखें और छोटे-छोटे कदम उठाएं। अच्छे और सकारात्मक लोगों के साथ समय बिताएं। असफलताओं को हार नहीं, बल्कि सीखने का मौका समझें। हमेशा सीखते रहें और अपनी क्षमता बढ़ाते रहें।
इस बदलाव से इंसान धीरे-धीरे कमी की सोच (गरीबी मानसिकता) से समृद्धि की सोच (समृद्धि मानसिकता) की ओर बढ़ता है। यह न सिर्फ पैसे के मामले में मदद करता है, बल्कि निजी और प्रोफेशनल लाइफ में भी नए मौके खोलता है।
गरीबी मानसिकता इंसान को डर और असुरक्षा में जीने पर मजबूर करती है। यह उसे केवल ‘गुजर-बसर’ तक सीमित रखती है। वहीं, समृद्धि मानसिकता इंसान को आशा, आत्मविश्वास और अवसर देती है। प्रो. विश्वनाथन अय्यर और प्रो. (डॉ.) सुनील कुमार का मानना है कि इंसान का भविष्य उसकी मानसिकता पर निर्भर करता है। अगर हम अपनी सोच को ‘कमी’ से ‘समृद्धि’ की ओर मोड़ लें, तो न केवल आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो सकते हैं, बल्कि खुशहाल, सफल और संतुष्ट जीवन भी जी सकते हैं।