निजी क्षेत्र ने व्यापार और अन्य मुद्दों को लेकर चल रही अनिश्चितताओं के बीच मौजूदा निवेश करने से पहले ज्यादा सावधानी बरतना शुरू किया है और निवेश से हाथ खींच लिया है जबकि कोविड-19 महामारी जैसी बाधाओं वाली मुश्किल परिस्थितियों के दौरान भी निजी क्षेत्र इतना पीछे नहीं हटा था।
निजी क्षेत्र ने जिन परियोजनाओं से हाथ खींचा है उनमें आमतौर पर नए कारखाने की स्थापना और अन्य पहल शामिल हैं। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) से जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार, कंपनियों ने सितंबर तक लगातार चार तिमाहियों के आधार पर लगभग 14.3 लाख करोड़ रुपये के निवेश की योजनाएं छोड़ दी हैं। यह आंकड़ा महामारी के दौरान छोड़ी गई परियोजनाओं के उच्चतम स्तर करीब 9.1 लाख करोड़ रुपये से भी अधिक है। यह 2011 से उपलब्ध किसी भी अवधि से भी ज्यादा है, जिसमें वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) और नोटबंदी जैसी अवधियां भी शामिल हैं।
इस दौरान, सरकार द्वारा छोड़ी गई परियोजनाओं के मूल्य में कमी आई है जिससे यह पता चलता है कि निजी क्षेत्र के कदम पीछे खींचने के बावजूद सरकार अपनी परियोजनाओं पर काम जारी रख रही है।
एमके ग्लोबल की मुख्य अर्थशास्त्री माधवी अरोड़ा के अनुसार,अमेरिकी व्यापार समझौते को लेकर अनिश्चितताओं और निजी खपत की कमी के संयोजन ने निजी पूंजीगत व्यय में सुस्ती ला दी है। कुछ क्षेत्रों ने अनुकूल व्यापार समझौते की उम्मीद में अपने इरादे जताए होंगे जो नहीं हो पाया है। कमजोर वृद्धि के बीच कम मांग ने भी निजी पूंजीगत व्यय को प्रभावित किया है। वर्ष 2025-26 की आखिरी दो तिमाहियों में खपत में तेजी आने की उम्मीद है। उन्होंने कहा, ‘आगे खपत में सुधार इस बात को निर्धारित करने में एक महत्त्वपूर्ण कारक हो सकता है कि पूंजीगत व्यय में कितनी तेजी से उछाल आती है।’
Also Read: भारत के लिए उड़ान, चीन की 2 और कंपनियों का अरमान
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के तिमाही ऑर्डर बुक्स, इन्वेंटरीज और क्षमता उपयोगिता सर्वेक्षण ने जून 2025 को समाप्त होने वाली तीन महीनों के लिए 75.8 प्रतिशत मौसमी आधार पर समायोजित क्षमता उपयोग दर्ज किया। कंपनियां आमतौर पर अतिरिक्त क्षमता बनाने में तभी निवेश करती हैं जब मौजूदा क्षमता का उपयोग पूरी तरह हो जाने के बाद मांग पूरी करने में असमर्थता के संकेत मिलने लगते हैं।
हालांकि, अरोड़ा ने आगे कहा कि निजी खपत में वृद्धि से क्षमता उपयोग के अभी 80 प्रतिशत से आगे बढ़ने की उम्मीद नहीं है। उनके अनुसार सार्वजनिक क्षेत्र पूंजीगत व्यय को बढ़ावा दे रहा है और यह रुझान जारी रहने की उम्मीद है। सड़क और बुनियादी ढांचे जैसे इस तरह के खर्च से जुड़े क्षेत्र में कुछ तेजी देखने को मिल सकती है। बिजली उत्पादन और डेटा सेंटर अन्य क्षेत्र हैं जिनके लिए निवेश का दृष्टिकोण अनुकूल है।
स्वतंत्र बाजार विश्लेषक आनंद टंडन ने कहा, ‘अमेरिका के साथ व्यापार सौदा उम्मीद से कहीं ज्यादा समय तक टलता दिख रहा है, जिसका असर निर्यात वाले क्षेत्रों पर पड़ेगा।’
उन्होंने कहा कि इस बीच निचले-स्तर की विनिर्माण नौकरियों पर असर पड़ सकता है जबकि उच्च-स्तरीय आईटी नौकरियां भी कुछ अनिश्चितता का सामना कर रही हैं। खपत पर इसके प्रभाव पर करीब से नजर रखनी होगी। क्षेत्रवार आंकड़ों से पता चलता है कि बिजली और विनिर्माण उन क्षेत्रों में शामिल हैं जो सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं, जिनमें से प्रत्येक में 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक की परियोजनाएं रद्द हुई हैं। वहीं गैर-वित्तीय सेवाओं ने बेहतर प्रदर्शन किया है।
Also Read: G20 शिखर सम्मेलन में भारत-ब्राजील की राह पर दक्षिण अफ्रीका, बोले PM मोदी: एजेंडा आगे बढ़ा
टाटा म्युचुअल फंड के वरिष्ठ फंड मैनेजर चंद्रप्रकाश पडियार ने सुझाव दिया कि सूचीबद्ध कंपनियों में अपेक्षाकृत अधिक लचीलापन हो सकता है। कई कंपनियों के पास अब भी बड़ी निवेश योजनाएं हैं, खासतौर पर रियल एस्टेट, ऊर्जा (बिजली उत्पादन, ट्रांसमिशन और वितरण) के साथ-साथ डेटा सेंटर जैसे क्षेत्रों में। टंडन ने कहा, ‘मुझे सही मजबूती दिखाई देती है। निर्यात-उन्मुख कंपनियां स्पष्टता का इंतजार करते हुए अपनी योजनाओं को रोक सकती हैं। लेकिन घरेलू खपत में तेजी आने की संभावना है क्योंकि आरबीआई बैंकों के लिए नकदी को सुगम बना रहा है जिसका वित्त वर्ष 2027 से खपत पर सकारात्मक असर होना चाहिए।’