facebookmetapixel
Editorial: टिकाऊ कर व्यवस्था से ही बढ़ेगा भारत में विदेशी निवेशपीएसयू के शीर्ष पदों पर निजी क्षेत्र के उम्मीदवारों का विरोधपहले कार्यकाल की उपलब्धियां तय करती हैं किसी मुख्यमंत्री की राजनीतिक उम्रवित्त वर्ष 2026 की दूसरी तिमाही के दौरान प्रतिभूतियों में आई तेजीलक्जरी ईवी सेगमेंट में दूसरे नंबर पर जेएसडब्ल्यू एमजी मोटर इंडियाअगले तीन साल के दौरान ब्रिटेन में 5,000 नई नौकरियां सृजित करेगी टीसीएसभारत में 50 करोड़ पाउंड निवेश करेगी टाइड, 12 महीने में देगी 800 नौकरियांसरकार ने विद्युत अधिनियम में ऐतिहासिक संशोधन किया पेश, क्रॉस-सब्सिडी के बोझ से मिलेगी राहतअर्थव्यवस्था बंद कर विकास की गति सीमित कर रहा भारत: जेरोनिम जेटल्मेयरTata Trusts की बैठक में टाटा संस विवाद पर चर्चा नहीं, न्यासियों ने परोपकारी पहल पर ध्यान केंद्रित किया

स्टॉक या MF में नहीं लगाना पैसा! AIF है नया विकल्प, कैसे शुरू कर सकते हैं निवेश

भारत में AIF निवेश का आंकड़ा ₹14.18 लाख करोड़ को पार कर गया है, क्योंकि अब HNI निवेशक रियल एस्टेट, IT और फाइनेंशियल सेक्टर्स को निवेश के दूसरे विकल्प के रूप में देख रहे हैं

Last Updated- October 10, 2025 | 4:50 PM IST
Alternative Investment Fund (AIF)
प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो

Alternative Investment Fund: भारत के फाइनेंशियल मार्केट में अल्टरनेटिव इन्वेस्टमेंट फंड (AIF) तेजी से उभर रहा है। अब हाई-नेट-वर्थ (HNI) वाले लोग पारंपरिक शेयरों और बॉन्ड्स में निवेश करने के साथ-साथ नए विकल्पों की ओर भी हाथ बढ़ा रहे हैं। SEBI के आंकड़ों के अनुसार, बीती जुन तिमाही तक AIF (AIF) में कुल निवेश की प्रतिबद्ध राशि (Commitment Amount) 14.18 लाख करोड़ रुपये को पार कर गई, जो पिछली साल की तिमाही की तुलना में 20 फीसदी अधिक है।

यह उछाल रियल एस्टेट, IT और वित्तीय सेवाओं जैसे सेक्टर्स में जमकर निवेश के चलते आया है। देश में HNI की बढ़ती संख्या से इन फंड्स में भी तेजी से उछाल देखने को मिल रहा है, जो बाजार की अस्थिरता के बीच स्थिर आय और हाई रिटर्न का वादा करते हैं।

अल्टरनेटिव इन्वेस्टमेंट फंड (AIF) होता क्या है?

AIF यानी अल्टरनेटिव इन्वेस्टमेंट फंड ऐसे प्राइवेट इनवेस्टमेंट फंड होते हैं जो पारंपरिक इन्वेस्टमेंट जैसे शेयर मार्केट या सरकारी बॉन्ड से अलग सेक्टरों में पैसा लगाते हैं। ये फंड ट्रस्ट, कंपनी, लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप या किसी अन्य कॉर्पोरेट बॉडी के रूप में बनाए जाते हैं।

SEBI के अल्टरनेटिव इन्वेस्टमेंट फंड रेगुलेशन, 2012 के तहत ये फंड रेगुलेट होते हैं और मुख्य रूप से HNI (हाई नेटवर्थ इंडिविजुअल्स), इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स और फॉरेन इन्वेस्टर्स के लिए बनाए गए हैं।

मई 2025 तक, भारत में 1,550 से ज्यादा AIF पंजीकृत हैं, और उनका एसेट अंडर मैनेजमेंट (AUM) तेजी से बढ़ रहा है। ये फंड कई इन्वेस्टर्स का पैसा एक साथ जुटाकर, खास रणनीतियों के जरिए उन जगहों पर लगाते हैं जहां तेजी से डेवलपमेंट की संभावना होती है। उदाहरण के तौर पर, एंजेल फंड्स नए स्टार्टअप्स को फंडिंग देते हैं, जबकि प्राइवेट इक्विटी फंड्स कमजोर या शुरुआती चरण की कंपनियों को बढ़ाने में मदद करते हैं।

वैश्विक स्तर पर, HNI इन्वेस्टर्स की प्रॉपर्टी का करीब 48% हिस्सा पहले से ही ऐसी वैकल्पिक संपत्तियों (Alternative Assets) में लगा है, और भारत में भी यह रुझान तेजी से बढ़ रहा है।

कैसे काम करते हैं AIF फंड्स?

AIF यानी अल्टरनेटिव इन्वेस्टमेंट फंड एक व्यवस्थित प्रक्रिया के तहत चलते हैं। इन फंड्स का संचालन फंड मैनेजर करते हैं, जो निवेशकों से पूंजी जुटाते हैं (नोट: इसे ही ‘प्रतिबद्धता’ कहा जाता है)। यह पैसा एक साथ नहीं बल्कि जरूरत के अनुसार धीरे-धीरे निवेश किया जाता है, जिससे फंड मैनेजमेंट में लचीलापन बना रहता है।

फंड मैनेजर पहले से तय निवेश रणनीति के अनुसार पूंजी को लगाते हैं, जैसे लंबी अवधि वाले प्रोजेक्ट्स में या फिर बाजार के उतार-चढ़ाव का लाभ उठाकर।

SEBI के नए नियमों के अनुसार, कैटेगरी I और II AIF के वितरण पर भारतीय निवेशकों से 10% TDS (टैक्स डिडक्टेड एट सोर्स) काटा जाता है। वहीं फॉरेन इन्वेस्टर्स को टैक्स संधियों (Tax Treaties) के तहत राहत मिलती है।

फाइनेंस एक्ट 2025 में यह साफ किया गया है कि कैटेगरी I और II AIF के निवेश ‘कैपिटल एसेट’ की परिभाषा में आते हैं। इससे टैक्स को लेकर जो अनिश्चितता थी, वह काफी हद तक खत्म हो गई है।

हर फंड में एक योजना के तहत अधिकतम 1,000 निवेशक ही शामिल हो सकते हैं, जबकि एंजेल फंड्स में यह सीमा 49 निवेशकों की है। फंड मैनेजर रिस्क मैनेजमेंट के लिए लीवरेज या डेरिवेटिव्स का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन कैटेगरी II फंड अतिरिक्त लीवरेज से बचते हैं।

मार्च 2025 तक, कैटेगरी II AIF ने 3.6 लाख करोड़ रुपये से अधिक जुटाए, जो कैटेगरी I और III के कुल निवेश से भी ज्यादा है। यह संरचना निवेशकों को पारदर्शिता और नियामकीय सुरक्षा देती है, हालांकि पूंजी की निकासी आमतौर पर तीन साल की लॉक-इन टाइम के बाद ही संभव होती है।

Also Read: सिर्फ ₹200 से निवेश शुरू! कैसे REIT’s के माध्यम से आप भी कमर्शियल प्रॉपर्टी में निवेश कर सकते हैं?

कौन AIF में निवेश कर सकता है?

AIF में शामिल होने के लिए न्यूनतम निवेश राशि 1 करोड़ रुपये तय की गई है। हालांकि, फंड मैनेजर, उनके कर्मचारी या डायरेक्टर 25 लाख रुपये से निवेश शुरू कर सकते हैं। इन फंड्स में भारतीय निवासी, NRI (गैर-निवासी भारतीय) और विदेशी नागरिक निवेश कर सकते हैं, लेकिन खुदरा निवेशकों (retail investors) को इसकी अनुमति नहीं है। निवेश से पहले निवेशकों को प्राइवेट प्लेसमेंट मेमोरैंडम (PPM) की स्टडी करनी होती है, जिसमें फंड की रणनीति और उससे जुड़े जोखिमों के बारे में बताया जाता है।

SEBI ने 9 सितंबर 2025 को एक नया नियम जारी किया, जिसके तहत कुछ AIF को को-इन्वेस्टमेंट की अनुमति मिली। इसका मतलब है कि निवेशक अब फंड के साथ-साथ किसी पोर्टफोलियो कंपनी में सीधे निवेश भी कर सकते हैं, जैसे किसी फिनटेक स्टार्टअप में अतिरिक्त पूंजी लगाना। यह सुविधा पहले केवल पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सर्विस (PMS) के तहत मिलती थी, लेकिन अब इसे AIF ढांचे में शामिल कर लिया गया है।

निवेश का दायरा: कहां लगती है पूंजी?

AIF की पूंजी ज्यादातर गैर-सूचीबद्ध संपत्तियों (Unlisted Properties) में लगाई जाती है, और कुल निवेश का लगभग 65% हिस्सा अंडरडेवलप्ड सेक्टर्स में जाता है।

कैटेगरी I फंड ऐसे सेक्टर्स में निवेश करते हैं जिनका सामाजिक प्रभाव होता है। इसमें जैसे स्टार्टअप्स, इंफ्रास्ट्रक्चर और स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज (SMEs) जैसे सेक्टर्स शामिल हैं। उदाहरण के लिए, वेंचर कैपिटल फंड्स नए स्टार्टअप्स को फंडिंग देते हैं, जबकि इंफ्रास्ट्रक्चर फंड्स सड़कों, पुलों और रिन्यूएबल एनर्जी प्रोजेक्ट्स में निवेश करते हैं।

कैटेगरी II फंड्स प्राइवेट इक्विटी, डेट और रियल एस्टेट में निवेश करते हैं। ये उन कंपनियों को पूंजी देते हैं जो अभी लिस्टेड नहीं हैं, या फिर ऐसे कर्ज साधनों में पैसा लगाते हैं जिनकी क्रेडिट रेटिंग कम होती है लेकिन रिटर्न ज्यादा होता है।

कैटेगरी III फंड्स अपेक्षाकृत हाई-रिस्क वाली जगहों पर काम करते हैं। इसमें हेज फंड्स, जो शॉर्ट-सेलिंग, लीवरेज और डेरिवेटिव्स आदि शामिल हैं। ये लिस्टेड इक्विटीज, कमोडिटीज और विदेशी बाजारों में निवेश करते हैं ताकि कम समय में मुनाफा कमाया जा सके।

इसके अलावा, PIPE फंड्स सार्वजनिक कंपनियों में प्राइवेट प्लेसमेंट के जरिए छूट पर निवेश करते हैं, और फंड ऑफ फंड्स अन्य AIF में पैसा लगाते हैं ताकि विविधीकरण बढ़ाया जा सके।

हाल में हुए हैं कई बदलाव!

SEBI ने 2025 में AIF को मजबूत करने के लिए कई कदम उठाए हैं।

फंड मैनेजर्स के लिए नियम: मई 2025 से NISM ने कैटेगरी I, II और III के फंड मैनेजर्स के लिए अलग-अलग जांच शुरू की हैं, ताकि उनकी विशेषज्ञता (Specialty) सुनिश्चित हो सके।

वेंचर कैपिटल फंड्स (VCF): वेंचर कैपिटल फंड्स (VCF) को अब AIF में बदलने या इसमें शामिल होने के लिए जुलाई 2025 तक अतिरिक्त समय दिया गया था। इसका मतलब है कि VCF फंड्स को नियमों के अनुसार AIF में बदलाव करने के लिए पहले से ज्यादा समय मिल गया।

RBI के नए दिशानिर्देश: RBI के संशोधित ड्राफ्ट नियमों ने विनियमित संस्थाओं (Regulated Entities) के लिए AIF में निवेश करना आसान बना दिया है।

को-इन्वेस्टमेंट: सितंबर 2025 में जारी सर्कुलर के तहत निवेशकों को सीधे निवेश अवसरों तक पहुंचने की इजाजत दी गई है।

एंजेल फंड्स: एंजेल फंड्स के लिए नया ढांचा स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) को बढ़ावा देगा।

ये बदलाव HNI निवेशकों को पारंपरिक निवेश से हटाकर दूसरे वैकल्पिक सेक्टर्स में निवेश के लिए आकर्षित कर रहे हैं।

First Published - October 10, 2025 | 4:50 PM IST

संबंधित पोस्ट