नार्वे की नोबेल समिति ने शुक्रवार को 2025 का नोबेल शांति पुरस्कार वेनेजुएला की मारिया कोरिना मचाडो को देने की घोषणा की। यह फैसला अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की उम्मीदों के लिए एक झटके के रूप में आया, जिन्होंने आठ युद्धों को खत्म करने का दावा करते हुए नोबेल पाने की मंशा जाहिर की थी। मचाडो को यह पुरस्कार वेनेजुएला में लोकतांत्रिक अधिकारों को बढ़ावा देने और तानाशाही से लोकतंत्र की ओर शांतिपूर्ण बदलाव के लिए उनके अथक संघर्ष के लिए दिया गया है।
नोबेल समिति ने बताया कि मारिया कोरिना मचाडो वेनेजुएला में लोकतंत्र के लिए एक प्रेरणादायक नाम बन चुकी हैं। समिति ने उन्हें लैटिन अमेरिका में हाल के समय में नागरिक साहस का सबसे शानदार उदाहरण बताया। मचाडो ने वेनेजुएला की राजनीतिक विपक्ष को एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई, जो पहले गहरे विभाजन का शिकार थी। उनके नेतृत्व में विपक्ष ने स्वतंत्र चुनाव और जनप्रतिनिधि सरकार की मांग को लेकर एक साझा मंच बनाया।
56 वर्षीय मारिया कोरिना मचाडो पेशे से इंजीनियर और राजनीतिज्ञ हैं। वह वेनेजुएला की प्रमुख विपक्षी नेता हैं। मचाडो ने वेनेजुएला में लोकतंत्र की रक्षा और मानवाधिकारों की जबरदस्त पैरवी की है। नोबेल कमिटी के अनुसार, मचाडो ने न केवल वेनेजुएला के ‘लोकतांत्रिक मूल्यों’ को मजबूत करने का काम किया है, बल्कि वैश्विक स्तर पर तानाशाही के खिलाफ एक प्रेरणा स्रोत भी हैं।
साल 2002 में उन्होंने वेनेजुएला के संसद सदस्य के रूप में अपनी यात्रा शुरू की थी, जहां उन्होंने भ्रष्टाचार और आर्थिक संकट के खिलाफ आवाज बुलंद की। 2010 में राष्ट्रपति पद की दौड़ में उतरने वाली मचाडो को निर्वाचन आयोग ने अयोग्य घोषित कर दिया, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। 2023 के राष्ट्रपति चुनावों में वे विपक्ष की एकजुट उम्मीदवार बनीं, जहां उन्होंने राष्ट्रपति निकोलस मादुरो के शासन के खिलाफ 92 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल किए। हालांकि, इस चुनाव परिणाम को विवादास्पद बता दिया गया। मादुरो सरकार ने उन्हें नजरबंद करने और निर्वासित करने की कोशिश की, लेकिन मचाडो ने भूमिगत आंदोलन चलाकर लाखों लोगों को एकजुट किया।
बता दें कि वेनेजुएला आज भयंकर आर्थिक तबाही, भुखमरी और लाखों शरणार्थियों की पीड़ा का सामना कर रहा है। मचाडो के नेतृत्व में विपक्ष ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने अपने देश की स्थिति जाहिर की, जिससे संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ जैसे संगठनों ने मादुरो सरकार पर प्रतिबंध लगाए।
मचाडो फिलहाल अर्जेंटीना में निर्वासित जीवन जी रही हैं। उन्होंने एक वीडियो मैसेज में कहा, “यह पुरस्कार मेरा नहीं, उन लाखों वेनेजुएलावासियों का है जो स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे हैं। हम कभी हारेंगे नहीं।”
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मारिया कोरिना मचाडो वेनेजुएला की विपक्ष की नेता हैं। कमिटी ने उन्हें ‘वेनेजुएला के लोगों के लिए लड़ने वाली महिला’ बताया। उन्होंने दशकों से शांति और मानवाधिकारों के लिए संघर्ष किया। वेनेजुएला में निकोलस मादुरो की तानाशाही के खिलाफ उनकी लड़ाई ने लाखों को प्रेरित किया। मचाडो को कई धमकियां मिलीं, यहां तक कि मौत की धमकी भी। फिर भी, वो छिपकर देश में रहीं और लोकतंत्र की मशाल जलाए रखीं।
कमिटी के चेयरमैन जोरगेन फ्राइडनेस ने कहा, “नोबेल की लंबी तारीख में हमने उन बहादुर महिलाओं और मर्दों को सम्मानित किया जो दमन के खिलाफ खड़े हुए, जेलों, सड़कों और चौराहों में आजादी की उम्मीद लाए। पिछले साल मचाडो को अपनी जान बचाने के लिए छिपना पड़ा। जान पर बनी रहने के बावजूद वो देश में रहीं, ये फैसला लाखों को प्रेरित करता है।” उन्होंने जोड़ा कि शांतिपूर्ण प्रतिरोध दुनिया बदल सकता है।
गौरतलब है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार की भूख बहुत पुरानी है। अपने दूसरे टर्म के शासनकाल की शुरुआत से ही वो इसे हासिल करने के लिए दावा करते रहे हैं। वो बार-बार कहते रहे हैं कि भारत-पाकिस्तान, इजरायल-हमास शांति समझौते सहित दुनियाभर में आठ जंगों को उन्होंने आठ महीनों में सुलझा दिया। हालांकि भारत सहित दुनिया के कई देश उनके दावों से सहमत नहीं दिखते हैं।
बीते एक अक्टूबर को ट्रंप ने कहा था, “अगर ये इजरायल-हमास सौदा कामयाब हो गया, तो हम आठ जंगों को आठ महीनों में सुलझा लेंगे। ये कमाल है, किसी ने ऐसा नहीं किया। क्या आपको नोबेल मिलेगा? बिल्कुल नहीं। वो किसी ऐसे आदमी को देंगे जो कुछ किया ही नहीं। वो किसी किताब लिखने वाले को देंगे जो ‘डॉनल्ड ट्रंप के दिमाग’ पर हो… ये हमारे देश के लिए बड़ा अपमान होगा… मुझे नहीं चाहिए। देश को मिलना चाहिए।”
ट्रंप की ये बातें उनके सोशल मीडिया पोस्ट और इंटरव्यू में आईं। उन्होंने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा का भी नाम लिया, और कहा कि ओबामा को तो कुछ न करने पर ही पुरस्कार मिल गया।