प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
सोने और चांदी की कीमतें इस हफ्ते नई ऊंचाई पर पहुंच गई हैं। गुड रिटर्न के मुताबिक, 24 कैरेट सोने की कीमत 12,244 रुपये प्रति ग्राम और चांदी 174 रुपये प्रति ग्राम हो गई है। दिवाली और धनतेरस जैसे त्योहारों से पहले भारतीय निवेशक सोच में पड़ गए हैं कि फिजिकल गोल्ड, डिजिटल गोल्ड या गोल्ड-सिल्वर ETF में निवेश करें। खास तौर पर गोल्ड और सिल्वर ETF के लिए हाल के टैक्स नियमों में बदलाव ने निवेशकों के लिए ये समझना जरूरी कर दिया है कि इनका असर क्या होगा।
फाइनेंस (नंबर 2) एक्ट, 2024 के तहत गोल्ड और सिल्वर ETF को अब नॉन-इक्विटी कैपिटल एसेट माना जाता है, जिससे टैक्स का नियम आसान लेकिन सख्त हो गया है। क्लियरटैक्स की चार्टर्ड अकाउंटेंट और टैक्स एक्सपर्ट शेफाली मुंद्रा बताती हैं, “अगर आप गोल्ड ETF को 12 महीने से ज्यादा रखते हैं, तो मुनाफा लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन (LTCG) माना जाएगा और इस पर 12.5% की एकसमान टैक्स दर लगेगी, बिना इंडेक्सेशन के। अगर 12 महीने या उससे कम समय तक रखते हैं, तो मुनाफा शॉर्ट-टर्म गेन माना जाएगा और आपकी इनकम के हिसाब से स्लैब रेट पर टैक्स देना होगा, जो हाई-इनकम वालों के लिए 30% तक हो सकता है।”
पहले लॉन्ग-टर्म गेन के लिए 36 महीने तक होल्ड करना पड़ता था और इंडेक्सेशन का फायदा मिलता था, जिससे महंगाई के हिसाब से मुनाफे को एडजस्ट कर टैक्स कम करना संभव था। अब ये फायदा खत्म हो गया है, यानी अब निवेशकों को महंगाई से बढ़े मुनाफे पर भी टैक्स देना होगा।
चार्टर्ड अकाउंटेंट सुरेश सुराना एक उदाहरण से समझाते हैं:
शॉर्ट-टर्म होल्डिंग (12 महीने या कम): मुनाफे पर स्लैब रेट से टैक्स लगता है। मिसाल के तौर पर, अगर 30,000 रुपये का मुनाफा हुआ और टैक्स रेट 30% है, तो 9,000 रुपये टैक्स देना होगा। यानी आपको 21,000 रुपये ही मिलेंगे।
लॉन्ग-टर्म होल्डिंग (12 महीने से ज्यादा): इस पर 12.5% की एकसमान टैक्स दर लगती है। उसी 30,000 रुपये के मुनाफे पर 3,750 रुपये टैक्स बनेगा, यानी आपको 26,250 रुपये मिलेंगे। सिर्फ होल्डिंग पीरियड बढ़ाकर आप 5,250 रुपये की टैक्स बचत कर सकते हैं।
फिजिकल गोल्ड के लिए लॉन्ग-टर्म गेन का समय 24 महीने है, और मेकिंग चार्ज जैसे अतिरिक्त खर्चे रिटर्न को और कम करते हैं।
Also Read: इस दिवाली पैसा कहां लगाएं? सोना या शेयर, एक्सपर्ट से जानें कौन देगा असली फायदा
1 फाइनेंस में पर्सनल टैक्स की वर्टिकल हेड और चार्टर्ड अकाउंटेंट नियति शाह कहती हैं, “ETF एक पारदर्शी और डीमैट आधारित निवेश का तरीका है, जिसमें मेकिंग चार्ज या शुद्धता की चिंता नहीं होती। ये स्पॉट प्राइस से मेल खाते हैं और टैक्स प्लानिंग को आसान बनाते हैं, क्योंकि 12 महीने बाद लॉन्ग-टर्म का फायदा मिलता है।”
वो एक उदाहरण देती हैं: अगर कोई निवेशक गोल्ड या सिल्वर ETF में 1.5 लाख रुपये लगाता है और 18 महीने बाद 25% मुनाफे (37,500 रुपये) के साथ बेचता है, तो 12.5% टैक्स दर पर 4,687 रुपये टैक्स देना होगा। यानी 32,813 रुपये बचेंगे, जो 21.7% का प्रभावी पोस्ट-टैक्स रिटर्न है। अगर जल्दी बेचते हैं, तो स्लैब रेट की ऊंची टैक्स दर से रिटर्न काफी कम हो सकता है।
1 से 2 लाख रुपये के निवेश के लिए, जो 1-3 साल तक निवेश करना चाहते हैं, मुंद्रा सलाह देती हैं:
शाह कहती हैं, “जूलरी के उलट, ETF पूरी तरह रिटर्न पर आधारित निवेश हैं, न कि भावनाओं से प्रेरित खरीद। इन्हें सही समय तक होल्ड करने से टैक्स के बाद भी ये चमक सकते हैं।”