भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) ऐसे कदम उठाने की योजना बना रहा है जिनसे क्रेडिट डिफॉल्ट स्वैप (CDS) बाजार में म्युचुअल फंडों (MF) की भागीदारी बढ़ेगी और उन्हें अधिक स्वायत्तता हासिल होगी। इन कदमों में एमएफ को विभिन्न योजनाओं में खरीदार और विक्रेता के रूप में हिस्सा लेने की अनुमति देने के प्रस्ताव शामिल हैं।
सीडीएस से कम रेटिंग के कॉरपोरेट बॉन्डों में जोखिम घटाने और निवेश में मदद मिलती है। इससे यह डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट के जरिये डिफॉल्ट के जोखिम की अदला-बदली की सुविधा देता है और यह बीमा के समान है।
सीडीएस किसी निवेशक को अपने क्रेडिट जोखिम की भरपाई अन्य उसे निवेशक के साथ करने की अनुमति देता है जो उधारकर्ता या बॉन्ड जारीकर्ता द्वारा चूक होने की स्थिति में एक कथित राशि का भुगतान करने या प्रतिपूर्ति करने के लिए तैयार होता है।
उदाहरण के लिए, यदि एंटिटी-ए के पास किसी कंपनी के कॉरपोरेट बॉन्ड हैं और वह एंटिटी-बी के साथ सीडीएस में प्रवेश करती है, तो डिफॉल्ट की स्थिति में, एंटिटी-ए एक अनुमानित राशि मिलने पर इन बॉन्डों को एंटिटी-बी को हस्तांतरित कर देगी।
हालांकि सेबी ने लगभग एक दशक पहले म्युचुअल फंडों के लिए कुछ दिशा-निर्देश जारी किए थे कि वे केवल संरक्षण खरीदारों के रूप में भाग लें, जिसका अर्थ था कि वे इसका उपयोग केवल अपने क्रेडिट जोखिम को कम करने के लिए कर सकते हैं, लेकिन कुछ खास शर्तों के कारण इसमें तेजी नहीं आई।
शुक्रवार को जारी परामर्श पत्र में बाजार नियामक ने इन शर्तों एवं सीमाओं में नरमी लाने का प्रयास किया है। बाजार नियामक ने इन प्रस्तावों पर 1 जुलाई तक सुझाव मांगे हैं।