Retail Investors Profit Booking: पिछले कुछ महीनों में छोटे यानी रिटेल निवेशक अपने निवेश करने का तरीका बदलते दिख रहे हैं। पहले जहां वे ‘खरीदो और रखो’ की लंबी अवधि वाली रणनीति अपनाते थे, वहीं अब वे बाजार की तेजी-मंदी को देखकर छोटी अवधि में अधिक समझदारी और सतर्कता से फैसले लेते दिखाई दे रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि पिछले दो महीनों में भारतीय शेयर बाजार में तेजी रहने के बावजूद रिटेल निवेशकों ने कैश मार्केट में शुद्ध रूप से बिकवाली की, जबकि म्युचुअल फंड्स के जरिए उनका निवेश लगातार बढ़ता रहा।
अक्टूबर में निफ्टी, निफ्टी मिडकैप और निफ्टी स्मॉलकैप इंडेक्स में अच्छी बढ़त देखने को मिली। नवंबर में भी निफ्टी और निफ्टी मिडकैप ने अपनी मजबूती जारी रखी, हालांकि स्मॉलकैप में कुछ गिरावट रही। इसके बावजूद रिटेल निवेशकों ने अक्टूबर और नवंबर में कुल 23,405 करोड़ रुपये की इक्विटी बेची। यह इस बात का संकेत है कि पूरे साल भर रिटेल निवेशकों ने बाजार बढ़ने पर बेचना और गिरावट आने पर खरीदना ज्यादा पसंद किया है। वहीं दूसरी ओर, म्युचुअल फंड्स, बीमा कंपनियों और पेंशन फंड जैसे घरेलू संस्थागत निवेशक लगातार खरीदारी जारी रखे हुए हैं।
इक्विनॉमिक्स के संस्थापक जी. चोक्कालिंगम के अनुसार, रिटेल निवेशक अब छोटी अवधि की ट्रेडिंग में अधिक चतुराई और योजना दिखा रहे हैं। बाजार में तेजी आने पर वे ऊंचे स्तरों का फायदा उठाकर मुनाफा बुक कर लेते हैं। उनका कहना है कि इस बार मिडकैप और स्मॉलकैप शेयर लगातार पांच साल से बढ़ रहे हैं, जो पहले कभी आम तौर पर नहीं होता था। पहले आमतौर पर तीसरे साल के बाद तेजी थम जाती थी। इसके अलावा हाल की छोटी गिरावटें भी जल्दी रिकवर हो गई हैं, जिससे निवेशकों का विश्वास बना रहा है।
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कई विश्लेषकों का मानना है कि रिटेल निवेशकों की बिकवाली इसलिए भी बढ़ी है क्योंकि वे महंगे या ओवरवैल्यूड शेयरों से निकल रहे हैं। एचडीएफसी सिक्योरिटीज के पूर्व रिटेल रिसर्च प्रमुख दीपक जसानी का कहना है कि जब रिटेल निवेशक किसी महंगे शेयर को ऊंचे दाम पर खरीद लेते हैं, तो वे बाजार में तेजी आने पर या तो मामूली नुकसान में या थोड़े लाभ पर बेचकर निकल जाते हैं। इसके अलावा कुछ लंबे समय से रखे निवेश जिनमें आगे ज्यादा बढ़त की गुंजाइश नहीं दिखती, उन्हें भी वे मुनाफा मिलने पर बुक कर लेते हैं। कई बार उन्हें तरलता यानी नकदी की भी जरूरत पड़ती है, जिसके कारण वे शेयर बेच देते हैं।
रिटेल निवेशकों की कुल बिकवाली में IPO के बाद की बिक्री का भी बड़ा योगदान है। जसानी के अनुसार, अधिकतर रिटेल निवेशक IPO लिस्टिंग के शुरुआती दिनों में ही अपने शेयर बेच देते हैं और यह बिकवाली आंकड़ों में रिटेल सेलिंग के रूप में दर्ज होती है। चूंकि IPO अलॉटमेंट खरीदारी के आंकड़ों में शामिल नहीं होता, इसलिए बिकवाली ज्यादा दिखती है। हाल की कुछ नकारात्मक खबरों और बाजार की अनिश्चितता ने भी कई निवेशकों को म्युचुअल फंड्स की ओर शिफ्ट होने के लिए प्रेरित किया है।
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स्वतंत्र विश्लेषक अंबरीश बलिगा का कहना है कि रिटेल निवेशकों की बिकवाली को पूरी तरह रणनीतिक कदम नहीं माना जा सकता। कई बार यह वित्तीय दबाव या कमजोर रिटर्न का संकेत भी होता है। उनका कहना है कि हर रिटेल निवेशक शेयर और म्युचुअल फंड में समान रूप से पैसा नहीं लगाता। कई लोग सिर्फ ट्रेडिंग करते हैं, जबकि कुछ केवल SIP जैसे दीर्घकालिक साधनों में निवेश करते हैं। पिछले तीन-चार महीनों में बाजार ऊपर गया है, लेकिन कई रिटेल निवेशकों के व्यक्तिगत पोर्टफोलियो गिरते रहे हैं। ऐसी स्थिति में निवेशक नई रकम लगाने से बचते हैं, जहां थोड़ा मुनाफा मिलता है उसे बुक कर लेते हैं, घाटे वाले शेयरों को पकड़े रहते हैं और कुल मिलाकर जोखिम लेने की क्षमता कम हो जाती है।