विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने सितंबर के दूसरे पखवाड़े में भारतीय शेयर बाजारों से 14,124 करोड़ रुपये की निकासी की। इसका ज्यादा असर स्वास्थ्य सेवा, सूचना प्रौद्योगिकी और टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं के सेक्टर पर पड़ा।
प्राइम डाटाबेस के आंकड़ों के अनुसार स्वास्थ्य सेवा (4,521 करोड़ रुपये) सेक्टर से सबसे अधिक निकासी हुई। इसके बाद आईटी (4,036 करोड़ रुपये), टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुएं (3,301 करोड़ रुपये) और एफएमसीजी (3,110 करोड़ रुपये) का स्थान रहा।
विश्लेषक इस निकासी का कारण हाल में हुए अमेरिकी नीतिगत बदलावों को देते हैं। सितंबर में अमेरिकी सरकार ने एच-1बी वीजा शुल्क में वृद्धि की और नए प्रतिबंध लगाए। लिहाजा, भारत के ऑनसाइट-ऑफशोर आईटी डिलीवरी मॉडल की निरंतरता को लेकर चिंता बढ़ गई। इसके साथ ही चुनिंदा ब्रांडेड और पेटेंट वाली दवाओं के निर्यात पर 100 फीसदी शुल्क लगाने के अमेरिकी फैसले के बाद भारतीय दवा कंपनियों के प्रति निवेशकों का मिजाज बिगड़ गया। हालांकि भारतीय दवा उद्योग का मुख्य आधार यानी अधिकांश जेनेरिक दवाओं पर इसका असर नहीं पड़ा।
इक्विनॉमिक्स के संस्थापक जी. चोकालिंगम ने कहा, फार्मा सेक्टर की बुनियाद मजबूत है, लेकिन ज्यादातर लार्ज-कैप शेयरों का मूल्यांकन बढ़ा हुआ लग रहा है। कंज्यूमर ड्यूरेबल्स में सुस्त बिक्री और एक अंक में सुस्त वृद्धि ने मजबूत बहाली की उम्मीदों को कम कर दिया है।
चोकालिंगम ने कमजोर राजस्व वृद्धि, सेवा निर्यात पर अमेरिकी शुल्कों के डर और व्यापार वार्ताओं के गतिरोध को आईटी शेयरों से एफपीआई की निरंतर निकासी का कारण बताया। हालांकि कुछ रणनीतिकार एफपीआई की बिकवाली की लहर में उम्मीद की किरण देखते हैं।
आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज में इक्विटी रणनीतिकार विनोद कार्की ने एक नोट में लिखा, विडंबना यह है कि एफपीआई की बिकवाली का मौजूदा माहौल भारतीय शेयर बाजार के लिए एक तरह के ‘सुरक्षा वाल्व’ के रूप में काम कर रहा है, जो इसे अत्यधिक मूल्यांकन वाले दायरे में जाने से रोक रहा है, जैसा कि सितंबर 2024 की तेजी के दौरान हुआ था। हमारा मानना है कि वृद्धि-मुद्रास्फीति के समीकरणों में सुधार और एफपीआई की बिकवाली से ‘बेजा उत्साह’ पर लगाम लगने से भारतीय इक्विटी बाजारों को स्वस्थ मूल्यांकन के स्तर पर बने रहने में मदद मिल रही है।
खास बात यह कि ऑटोमोबाइल और ऑटो कलपुर्जा सेक्टर में एफपीआई की 1,733 करोड़ रुपये की शुद्ध खरीद देखी गई। इसके बाद पूंजीगत सामान (1,492 करोड़ रुपये) और तेल, गैस और उपभोग ईंधन (728 करोड़ रुपये) का स्थान रहा। सितंबर के अंत तक एफपीआई का वित्तीय सेवाओं में सर्वाधिक 31.17 फीसदी इक्विटी आवंटन था। इसके बाद ऑटो और ऑटो कलपुर्जा (8.05 प्रतिशत) तथा तेल, गैस और उपभोग वाले ईंधन (6.98 प्रतिशत) का स्थान रहा।