सिनेमा घरों के बजाय सीधे ओटीटी (ओवर द टॉप) पर फिल्मों के रिलीज का दमखम कम होता नजर आ रहा है। वैश्विक महामारी कोविड-19 के दौरान यह काफी लोकप्रिय हुआ था। स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म द्वारा कंटेंट पर रणनीति बदलने और लाभप्रदता हासिल करने पर ध्यान केंद्रित करने को बड़ा कारण बताया जा रहा है। इसके अलावा फिल्म निर्माताओं को भी इस मॉडल में कमाई के अवसर कम नजर आने लगे हैं।
डायरेक्ट-टु-ओटीटी फिल्मों में वर्ष2021 में उछाल आई थी जब वैश्विक महामारी के कारण थियेटर बंद होने से सिनेमा घरों में आने वाली कई फिल्में ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज की गई थीं। जनवरी में आई ऑर्मैक्स इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, डायरेक्ट-टु-ओटीटी फिल्मों की 2021 में भारत में कुल स्ट्रीमिंग ओरिजिनल की संख्या में 53 फीसदी हिस्सेदारी रही थी, जबकि फिक्शन सीरीज (काल्पनिक कहानियों) की हिस्सेदारी 40 फीसदी थी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2022 से ही ओटीटी पर फिक्शन सीरीज का दबदबा बरकरार है और अब इसकी हिस्सेदारी करीब 70 फीसदी हो गई है। वर्ष 2024 तक, देश में कुल स्ट्रीमिंग ओरिजिनल फिल्मों में डायरेक्ट-टु-ओटीटी फिल्मों की हिस्सेदारी घटकर 18 फीसदी रह गई। मीडिया अधिकारियों का कहना है कि डायरेक्ट-टु-ओटीटी मॉडल में बौद्धिक संपदा से कमाई करने के सीमित अवसरों के कारण ऐसा हुआ है।
इरोज मीडिया वर्ल्ड के समूह मुख्य कार्य अधिकारी प्रदीप द्विवेदी ने कहा, ‘दोनों की गतिशीलता एकदम अलग है। जब हम पहले थियेटर की ओर बढ़ते हैं तो बॉक्स ऑफिस, संगीत, सैटेलाइट और अंततः डिजिटल जैसी कई मूल्य श्रृंखलाओं को खोलते हैं और हर चरण से कमाई का रास्ता तैयार होता है। इससे भी महत्त्वपूर्ण है कि थियेटर की सफलता अन्य क्षेत्रों में भी फिल्म के मूल्य को बढ़ाती है।’
द्विवेदी ने कहा कि इसके विपरीत डायरेक्ट-टु-ओटीटी में एक निश्चित खरीद शामिल होती है और अक्सर ओटीटी प्लेटफॉर्म फिल्मों के रिलीज से पहले ही इसे खरीद लेते हैं, जिससे कमाई सीमित हो जाती है। उन्होंने कहा कि हालांकि, वर्ष2022 से 2022 के बीच यह मॉडल काफी आकर्षक लग रहा था, लेकिन इससे लंबे समय तक कमाई नहीं की जा सकती है। सिनेमाघरों में फिल्मों के रिलीज का अभी भी बोलबाला है, खासकर भारत में जहां बड़े पर्दे पर फिल्में देखना अभी भी लोगों का काफी रास आता है।
बालाजी टेलीफिल्म्स के मोशन पिक्चर्स के मुख्य कार्य अधिकारी विमल दोशी ने भी द्विवेदी की बातों से सहमति जताई और कहा कि सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली फिल्म के लिए बेहतर मार्केटिंग होती है। स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म पर रिलीज होने वाली फिल्मों के लिए इस तरह की मार्केटिंग नहीं होती है और न ही इस तरह के दर्शक मिलते हैं।
इस बीच, फिल्म प्रोडक्शन ऐंड डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी कार्मिक फिल्म्स के सह-संस्थापक और निदेशक सुनील वाधवा ने कहा कि खास शैलियों, पहली फिल्मों अथवा बडे सितारों के बिना बनने वाली मध्यम और छोटी बजट की फिल्मों के लिए ओटीटी एक व्यवहार्य मॉडल है और अक्सर उससे ठीक-ठाक कमाई हो जाती है। डायरेक्ट-टू-ओटीटी, सिनेमाघरों में रिलीज के लिए जरूरी उच्च मार्केटिंग, प्रिंट और विज्ञापन लागतों को कम करता है। इसके अलावा इससे फिल्म तुरंत देश भर में और दुनिया भर में रिलीज हो जाती है।
दोशी ने कहा, ‘इनमें से अधिकतर ओटीटी प्लेटफॉर्म अभी तक भारत के 90 फीसदी लोगों तक नहीं पहुंच पाए हैं। थियेटर ही एकमात्र ऐसा माध्यम है जिसके जरिये आप बड़ी संख्या में लोगों तक पहुंच सकते हैं। इसके अलावा, फिल्म बनाने का संतोष भी तब ही मिलता है जब वह सिनेमाघरों तक पहुंचे, क्योंकि आप सीधे लोगों से जुड़ रहे होते हैं।’
फिल्म निर्माता शारिक पटेल ने बताया कि डायरेक्ट-टू-ओटीटी फिल्म रिलीज में गिरावट दुनिया भर में देखी जा रही है।