सर्वोच्च न्यायालय ने मध्यस्थता की नियुक्ति के मामले में ब्रिटिश फर्म बल्ली पेट्रोकेमिकल्स की अपील खारिज कर दी है।
ब्रिटिश कंपनी ने नैशनल एल्युमीनियम कंपनी के साथ एक विवाद में मघ्यस्थ के रूप में भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश आर एस पाठक के स्थान पर दिल्ली उच्च न्यायालय के सेवानिवृत न्यायाधीश की नियुक्ति के खिलाफ अपील की थी।
ब्रिटिश कंपनी ने दलील दी कि दोनों पक्षों के बीच विवाद पर आर्बिट्रेशन ऐंड कंसीलिएशन ऐक्ट के तहत पूर्व मुख्य न्यायाधीश द्वारा सुनवाई की जा रही थी जिनका निधन हो चुका है, लेकिन किसी भी स्थिति में यह कार्यवाही जारी रखी जानी चाहिए थी।
सर्वोच्च न्यायालय ने ब्रिटिश फर्म के इस तर्क को खारिज कर दिया और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति की पुष्टि कर दी थी। अनुबंध की शर्तों के मुताबिक यदि ब्रिटिश फर्म नियत समय पर इस पर अपनी प्रतिक्रिया नहीं देती है और मध्यस्थता के लिए अपना उम्मीदवार चुनती है तो सार्वजनिक क्षेत्र को मध्यस्थता के लिए चुना जा सकता है।
इस मामले में ब्रिटिश फर्म ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश की ओर से मध्यस्थता नहीं हो पाने के बाद इसके लिए किसी का चयन नहीं किया। इसलिए उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति अनुबंध के मुताबिक वैध थी।
फैसला वापस लिया गया
सर्वोच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल में विदेशी और भारतीय शराब के व्यवसाय में लगे कुछ व्यापारियों के लाइसेंस रद्द करने के अपने फैसले को वापस ले लिया है। न्यायालय का कहना है कि इन कारोबारियों का पक्ष सुने बगैर उनके लाइसेंस रद्द कर दिए गए थे।
ऑल बंगाल एक्साइज लाइसेंसीज एसोसिएशन ने राज्य सरकार की लाइसेंस नीति को कलकत्ता उच्च न्यायालय में चुनौती दी। लेकिन इसे ठुकरा दिया गया था। कुछ लोगों ने न्यायालय के आदेश का कथित तौर पर उल्लंघन किया और वे सर्वोच्च न्यायालय में चले गए।
न्यायालय ने कुछ व्यापारियों के लाइसेंस रद्द कर दिए थे। ‘असित कुमार बनाम स्टेट ऑफ वेस्ट बंगाल’ मामले में जिन लोगों के लाइसेंस रद्द किए गए, वे सर्वोच्च न्यायालय की शरण में चले गए।
सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्वीकार किया कि वास्तव में इन लाइसेंस को रद्द किए जाने से पहले इन पर सुनवाई नहीं की गई थी। सर्वोच्च न्यायालय ने इस आदेश को वापस ले लिया है और लाइसेंस को रद्द किए जाने संबंधी आदेश अब संबद्ध व्यापारियों के खिलाफ लागू नहीं होगा।
मुआवजे का फैसला बरकरार
सर्वोच्च न्यायालय ने कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा एक व्यक्ति पर लगाए गए मुआवजे को बरकरार रखा है। इस व्यक्ति के खिलाफ पश्चिम बंगाल राज्य विद्युत बोर्ड ने बिजली के मीटर में छेड़छाड़ करने का आरोप लगाया था।
बोर्ड ने सईद मकबूल नामक इस व्यक्ति के खिलाफ एक फौजदारी शिकायत दर्ज कराई और 2.5 लाख रुपये बिजली शुल्क के रूप में चुकाए जाने की मांग की थी और बाद में उसका बिजली कनेक्शन काट दिया गया था।
मकबूल इसके खिलाफ उच्च न्यायालय में चला गया और दलील दी कि बोर्ड ने इलेक्ट्रिसिटी ऐक्ट 2003 के तहत विद्युत नियमन की शर्त 5.2 में वर्णित प्रक्रिया का पालन नहीं किया।
इसके बाद उच्च न्यायालय ने बोर्ड को बिजली आपूर्ति बहाल करने और 25,000 रुपये का मुआवजा चुकाए जाने का आदेश दिया, क्योंकि बोर्ड ने नियमन आयोग के समक्ष उपभोक्ता को अपनी आपत्तियां दर्ज कराने का मौका नहीं दिया था। सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के इस फैसले को बरकरार रखा है।
आयोग का फैसला पलटा
सर्वोच्च न्यायालय ने टाटा फाइनैंस लिमिटेड (अब टाटा मोटर्स लिमिटेड) बनाम एन. पूंगोडी मामले में एकाधिकार एवं प्रतिबंधात्मक व्यापार व्यवहार आयोग के फैसले को निरस्त कर दिया है।
गैर-बैंकिंग फाइनैंस कंपनी और हायर पर्चेजर के बीच विवाद पैदा हो गया था और इसे एक मध्यस्थ के जरिये दो बार सुलझाने की कोशिश की गई थी। हायर पर्चेजर ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील की थी, लेकिन वह हार गया।
याचिका दायर किए जाने के 10 वर्ष बाद हायर पर्चेजर फाइनैंस कंपनी से मुआवजा हासिल करने के लिए आयोग की शरण में चला गया।
कंपनी ने दलील दी कि यह कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है और वह चाहती थी कि आयोग मुआवजा याचिका की स्वीकार्यता के बारे में फैसला दे।
आयोग ने याचिका खारिज कर दी। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने आयोग के फैसले को निरस्त कर दिया।