रैनबैक्सी-फोर्टिस के पूर्व प्रवर्तक शिविंदर मोहन सिंह ने सोमवार को राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) के दिल्ली पीठ के समक्ष व्यक्तिगत दिवालिया याचिका दाखिल की। दिवालिया संहिता की धारा 94 के तहत कॉरपोरेट देनदार/उधारकर्ता या व्यक्तिगत गारंटर दिवालिया प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं।
यह मामला न्यायमूर्ति महेंद्र खंडेलवाल और सदस्य (तकनीकी) सुब्रत कुमार दास के समक्ष संक्षिप्त सुनवाई के लिए आया, जिसके बाद इसे मई तक के लिए स्थगित कर दिया गया। सिंह ने न्यायाधिकरण को बताया कि उनकी देनदारी उनकी संपत्तियों से ज्यादा हो गई हैं। सिंह ने न्यायाधिकरण को बताया, चूंकि उनकी ज्यादातर संपत्तियां या तो बेच दी गई हैं या चल रहे मामलों के कारण जब्त कर ली गई हैं, इसलिए वे व्यक्तिगत गारंटर के तौर पर अपने कर्ज का भुगतान करने में असमर्थ हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने सितंबर 2022 में दायची-फोर्टिस मामले में दोनों भाइयों मलविंदर सिंह और शिविंदर सिंह को छह महीने की जेल की सजा सुनाई थी और फोर्टिस-आईएचएच सौदे की फॉरेंसिक ऑडिट का आदेश दिया था।
जापानी दवा कंपनी दायची सैंक्यो की याचिका का निपटारा करते हुए सर्वोच्च अदालत ने आईएचएच की खुली पेशकश पर स्थगन जारी रखते हुए मामला दिल्ली उच्च न्यायालय भेज दिया था। मलेशिया की स्वास्थ्य सेवा दिग्गज आईएचएच ने साल 2018 में स्वतंत्र बोर्ड की निगरानी वाली बोली प्रक्रिया में 1.1 अरब डॉलर के भुगतान पर फोर्टिस की 31 फीसदी यानी नियंत्रक हिस्सेदारी का अधिग्रहण किया था। इससे खुले बाजार से फोर्टिस की अन्य 26 फीसदी हिस्सेदारी के अधिग्रहण के लिए ओपन ऑफर का मामला बना। खुली पेशकश आगे नहीं बढ़ पाई क्योंकि दायची ने इसके खिलाफ याचिका दाखिल की थी।