पिछले महीने दो अहम घटनाएं देखने को मिलीं, जो भारतीय लेखा व्यवसाय में बदलाव करने के लिए लिहाज से बेहद जरूरी थीं।
सबसे पहले, भारतीय सनदी लेखाकार संस्थान (आईसीएआई) ने इंस्टीटयूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंगलैंड ऐंड वेल्स (आईसीएईडब्ल्यू) के साथ एक सहमति पत्र पर दस्तखत किए, जिसकी वजह से दोनों संस्थानों के सदस्यों को मामूली सी परीक्षाएं उत्तीर्ण करने के साथ ही एक दूसरे के यहां सदस्यता हासिल करने की अनुमति मिल गई।
आईसीएआई के लिहाज से यह वाकई एक शानदार उपलबिध है और इस मुहिम में लगे हुए सभी लोगों को बधाई दी जानी चाहिए। यह एक मकसद था, जिसके पीछे तकरीबन डेढ़ दशक से काम किया जा रहा था।
भारत और ब्रिटेन के बीच साझी मान्यता की जो व्यवस्था थी, उसे 1990 के दशक की शुरुआत में ब्रिटेन के व्यापार बोर्ड ने खत्म कर दिया। भारत की ओर से भी 1990 के दशक के मध्य में मान्यता वापस ले ली गई।
जिस वक्त उद्योग, व्यापार और वाणिज्य के लिए सीमाएं खत्म होती जा रही थीं, भारतीय लेखाकारों यानी एकाउंटेंट्स को भारत की राजनीतिक सीमाओं के भीतर बांध दिया गया। इस संधि के जरिये अलगाव का युग खत्म हो सकता है और भारतीय पेशा सच्चे शब्दों में वैश्विक प्रतियोगी बन सकता है।
यूरोपीय आयोग (ईसी) ने पिछले हफ्ते एक ऐतिहासिक घोषणा की। दुनिया में छह चुने हुए देशों अमेरिका, जापान, कनाडा, भारत, चीन और दक्षिण कोरिया के सामान्य तौर पर मान्य लेखा सिद्धांतों (जीएएपी) को अंतरराष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग मानकों (आईएफआरएस) के समकक्ष घोषित कर दिया गया।
यह ऐलान यूरोपीय संसद की ओर से हुई सकारात्मक टिप्पणी के बाद किया गया। उससे पहले यूरोपीय प्रतिभूति समिति के सभी सदस्य देशों ने भी ऐसा ही किया था।
यह भारत के लेखा सिद्धांतों की व्यवहार्यता और तार्किकता का प्रमाण है और इससे यह तथ्य भी साबित होता है कि भारतीय लेखा मानकों के बुनियादी तत्व आईएफआरएस के ही समान हैं।
हालांकि ये घटनाएं कोहरे से भरे इस माहौल में वाकई खुशी देने वाली हैं, लेकिन उसी वक्त यह नहीं भूलना चाहिए कि इसके साथ एक शर्त भी चस्पां कर दी गई है।
यूरोपीय आयोग ने अपनी घोषणा में कहा है कि इन छह में से चार देशों यानी भारत, चीन, कनाडा और दक्षिण कोरिया में हालात की समीक्षा 2011 तक कर ली जाएगी।
इसके अलावा भी आयोग आईएफआरएस के समकक्ष मिली मान्यता की भी निगरानी करता रहेगा और इस बारे में सदस्य देशों और संसद को रिपोर्ट देता रहेगा। यानी तय है कि हम वैश्विक मानकों के साथ तालमेल बिठाने की अपनी रफ्तार को किसी भी हालत में कम नहीं कर सकते।
लेखा की दुनिया में भारत का बढ़ता कद उभरती हुई अर्थव्यवस्था के उसके दर्जे पर काफी हद तक निर्भर करता है। भारतीय अर्थव्यवस्था में तेज विकास देखा जा रहा है और उसके पास अमीर निवेशक भी हैं, जो विदेशों में पांव जमा रहे हैं।
यह वाकई हमारे लिए फख्र की बात है कि भारत में 200 से ज्यादा ऐसी मझोली या बड़ी कंपनियां हैं, जो यूरोपीय बाजारों में सूचीबद्ध हैं। इस विशिष्ट क्लब की सदस्यता मिलने के साथ ही हमारे साथ कई जिम्मेदारियां और कई अपेक्षाएं भी जुड़ गई हैं।
2011 तक आईएफआरएस के साथ पूरी तरह तालमेल बिठाने और आगे होने वाली समीक्षाओं में यूरोपीय आयोग के पैमानों के पर खरा उतरने के अलावा हमें लेखा परीक्षण के अपने मानकों को भी विश्व स्तर का बनाना होगा, खास तौर पर संयुक्त लेखा परीक्षण के मानकों को।
बाजार, नियामकों और आईसीएआई को योग्यता मुक्त सार्वजनिक बैलेंस शीट के उस अंतरराष्ट्रीय लक्ष्य की ओर बढ़ना होगा, जिनमें खातों को सार्वजनिक किए जाने से पहले लेखा जांच संबंधी तकनीकी अर्हताओं को खत्म करना होगा।
कंपनी मामलों के मंत्रालय ने अपने नए कंपनी विधेयक में स्वतंत्रता की जरूरत का उल्लेख किया है, जिससे वैश्विक स्वतंत्रता मानकों के साथ तालमेल बिठाने में मदद मिलेगी।
इसके पीछे जो तर्क दिया जाता है, वह यही है कि इससे बहुआयामी साझेदारी को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी और सरकार इसकी अनुमति देने के लिए सनदी लेखाकार अधिनियम में पहले ही कुछ संशोधन कर चुकी है।
इस हफ्ते प्रतिभूति विनियम आयोग ने भी अपनी 500 सबसे बड़ी कंपनियों को 2009 से एक्सटेंसिबल बिजनेस रिपोर्टिंग लैंग्वेज (एक्सबीआरएल) का इस्तेमाल कर वित्तीय रिपोर्ट पेश करने का निर्देश देने के पक्ष में मत दे दिया है।
दूसरे कई विकसित देशों ने भी एक्सबीआरएल का इस्तेमाल शुरू कर दिया है, जिसका साफ मलतब है कि भारत को भी जल्द ही इसी रास्ते पर चलना पड़ेगा।
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने पहले ही एक समिति बना ली है और मुझे लगता है कि यह इस मामले में अगला बड़ा कदम होने जा रही है। लेकिन ऊंचे मंच पर पहुंचने के साथ कुछ जिम्मेदारियां आती हैं और कुछ अनूठे मौके भी मिलते हैं।
मौके हैं उभरती अर्थव्यवस्थाओं की चिंताएं विश्व मंच पर ले जाने के, विकासशील छोटे, मझोले उद्योगों पर केंद्रित मानकों के मामले में आगे बढ़ने के, मौके देश की प्रतिभा को रोशनी में लाने के और मौके हमारे पेशेवरों के लिए दुनिया भर में पहुंचने के लिए नए क्षितिज तलाशने के।
हम उम्मीद कर सकते हैं कि इन मौकों को दोनों हाथों से लपका जाएगा और हम ऐसी किसी भी कसौटी पर खोटे साबित नहीं होंगे, जो दुनिया ने हमारे लिए रखी है।
(लेखक अर्न्स्ट ऐंड यंग इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक हैं। यहां प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)