केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीईसी) ने निर्यातकों की कुछ निश्चित श्रेणियों को वस्तुओं के निर्यात से संबंधित सेवाओं पर लिए गए सेवा कर की 80 प्रतिशत तक राशि आवेदन करने के 15 दिन के भीतर और शेष राशि उसके बाद 30 दिन के भीतर जारी करने के लिए कहा है।
वाणिज्य मंत्री ने विदेश व्यापार नीति 2004-09 पेश करते हुए कहा था कि निर्यात में इजाफा करने के लिए यह रणनीति अनिवार्य है, जिसके मुताबिक ‘निर्यात होने वाले उत्पादों में इस्तेमाल होने वाले सभी प्रकार के माल पर शुल्क और कर को इस बुनियादी सिद्धांत के आधार पर खत्म कर दिया जाना चाहिए कि करों और शुल्कों का कभी निर्यात नहीं किया जा सकता।’
बहरहाल, मार्च 2008 में वित्त मंत्रालय ने निर्यातकों की ओर से इस्तेमाल नहीं हुए सेनवैट को वापस हासिल करने के लिए दावे करने की एक प्रक्रिया शुरू की, जिसमें सेवाओं पर कर भी शामिल हैं। अप्रैल 2006 में सीबीईसी ने चुनिंदा निर्यातक श्रेणियों को 15 दिन के भीतर सेनवैट का 80 प्रतिशत हिस्सा वापस देने के लिए कहा।
वित्त मंत्रालय ने 2006 के जुलाई महीने में यह फैसला किया कि निर्यात होने वाली वस्तुओं के प्रसंस्करण अथवा विनिर्माण में सेवा के तौर पर इस्तेमाल होने वाली सभी कर योग्य सेवाओं पर चुकाए गए कर को भी ऑल इंडस्ट्री रेट्स ऑफ डयूटी ड्रॉबैक में लाया जाए। इसके लिए जुलाई 2006 में ही सीमा शुल्क एवं केंद्रीय उत्पाद शुल्क वापसी कानून, 1995 में समुचित संशोधन भी किए गए।
निर्यातक काफी समय से मांग कर रहे थे कि वस्तुओं के निर्यात में इस्तेमाल होने वाली सेवाओं पर सेवा कर से उन्हें छूट मिल जाए। लेकिन इस मांग को अक्टूबर 2007 में आंशिक तौर पर ही पूरा किया गया। इसके लिए 6 अक्टूबर को अधिसूचना संख्या 412007-एसटी जारी की गई। शुरुआत में छूट के दायरे में केवल 7 सेवाएं लाई गई थीं।
छूट हासिल कने के लिए आवेदन पत्र, दस्तावेज, प्रक्रियाओं और रिफंड के लिए दावा करने की शर्तों का भी ब्योरा दे दिया गया। धीर-धीरे कुछ और सेवाएं भी अधिसूचना के दायरे में आ गईं और इनमें से सबसे नई सेवा 7 दिसंबर 2008 को शामिल की गई।
ये कस्टम हाउस के एजेंटों की ओर से दी जाने वाली सेवाएं हैं। विदेशों में जो कमीशन एजेंट होते हैं, उनके मार्फत मिलने वाली सेवाओं पर भी रिफंड जटिल था।
लेकिन इस कर की वापसी के लिए कमीशन की सीमा को भी निर्यात के फ्री ऑन बोर्ड (एफओबी) मूल्य के 2 प्रतिशत हिस्से से बढ़ाकर 10 प्रतिशत कर दिया गया।लेकिन सरकार की समूची कवायद के बाद भी मामला संभल नहीं रहा था।
निर्यातकों को कर वापसी यानी रिफंड हासिल करने में खासी मुश्किल हो रही थी। इसे देखते हुए सीबीईसी ने 12 मई 2008 को एक स्पष्टीकरण जारी किया।
इस स्पष्टीकरण के जरिये उन प्रक्रियागत दिक्कतों को हल किया गया जो ऐसे मचर्ट निर्यातकों और निर्यातकों के सामने आ रहे थे, जिनके दफ्तर कई स्थानों पर हैं।
इस अधिसूचना में भी संशोधन किया गया और रिफंड के लिए दावा पेश करने के इच्छुक निर्यातकों को इस काम के लिए अधिक समय देने का प्रावधान कर दिया गया।
इसके बाद 11 दिसंबर 2008 को (परिपत्र संख्या 106092008) सीबीईसी ने ऐसी निर्यातोन्मुखी इकाइयों के लिए रिफंड की प्रक्रिया को भी स्पष्ट किया, जिनका पंजीकरण केंद्रीय उत्पाद शुल्क के लिए नहीं हुआ है और सेवा कर की अदायगी के बारे में जरूरी दस्तावेजों का भी ब्यौरा दे दिया गया।
जमीनी स्तर पर निर्यातकों को कर रिफंड हासिल करने में जो परेशानियां महसूस हो रही थीं, उन पर समुचित विचार करने के बाद अब सीबीईसी ने नया निर्देश दिया है।
इसी निर्देश के मुताबिक निर्यातकों की एक विशेष श्रेणी को कर रिफंड के लिए आवेदन करने के बाद 15 दिन के भीतर रिफंड की 80 प्रतिशत तक राशि मिल जानी चाहिए। इस श्रेणी में वे निर्यातक आते हैं, जिनका कारोबार चालू वित्त वर्ष या उससे पूर्व के वर्ष में 5 करोड़ रुपये से ज्यादा रहा हो।
उसके अलावा इस श्रेणी में सार्वजनिक क्षेत्र के वे उपक्रम, मान्यता प्राप्त एक्सपोर्ट या ट्रेडिंग हाउस, विनिर्माता-निर्यातक भी शामिल हैं, जो दो वर्ष से केंद्रीय उत्पाद शुल्क के साथ पंजीकृत हैं, कम से कम दो साल से निर्यात कर रहे हैं और और पिछले वर्ष जिन्होंने कम से कम 1 करोड़ रुपये का निर्यात किया है।
वे निर्यातक भी इसी श्रेणी में आते हैं, जो सेवा कर अथवा केंद्रीय उत्पाद शुल्क के कानूनों के तहत पंजीकृत हैं और जिन्होंने पिछले वित्त वर्ष के दौरान एक करोड़ रुपये या उससे अधिक की राशि बतौर केंद्रीय उत्पाद शुल्क और या अथवा सेवा कर अदा की है। सभी निर्यातोन्मुखी इकाइयों को भी इसी दायरे में रखा गया है।
आदर्श रूप में सीबीईसी के निर्देशक व्यापार को बढ़ावा देने वाले होने चाहिए, लेकिन निर्देश चाहे कोई भी हों, रिफंड तो मुश्किल से ही मिलता है। समय सीमा पूरा आवेदन पत्र भरने और जमा करने की तारीख के साथ शुरू होती है।
लेकिन किसी भी आवेदन पत्र को पूरा तो कभी-कभार ही माना जाता है। सीबीईसी को कर अदायगी करने और बाद में रिफंड का दावा कराने के बजाय निर्यातकों को कर से मुक्ति ही दे देनी चाहिए।