रूस और अमेरिका में एक बार फिर नए सिरे से तनातनी बढ़ती दिख रही है। रूस ने सोमवार (स्थानीय समयानुसार) को ऐलान किया कि वह अब अमेरिका के साथ 1987 की इंटरमीडिएट-रेंज न्यूक्लियर फोर्सेस संधि (1987 INF Treaty) से खुद को बंधा हुआ नहीं मानता है। समाचार एजेंसी RT की एक रिपोर्ट में यह जानकारी सामने आई है।
रिपोर्ट में रूस के विदेश मंत्रालय के हवाले से कहा गया है कि मॉस्को का मानना है कि अमेरिका के साथ 1987 की INF संधि को बनाए रखने की परिस्थितियां अब “समाप्त हो चुकी हैं”।
रूस के विदेश मंत्रालय का यह बयान अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की ओर से दो परमाणु पनडुब्बियों को रूस के नजदीकी “रणनीतिक जगहों” में तैनात करने के आदेश के कुछ ही दिन बाद आया है। ट्रंप का यह कदम रूस के पूर्व राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव की उस टिप्पणी के जवाब में था, जिसमें उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति पर मॉस्को के साथ “अल्टीमेटम का खेल” खेलने का आरोप लगाया था।
रिपोर्ट के अनुसार, “रूसी विदेश मंत्रालय का मानना है कि समान हथियारों की तैनाती पर एकतरफा रोक बनाए रखने की परिस्थितियां समाप्त हो चुकी हैं। और, अब यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि रूस अब पहले से स्वेच्छा से अपनाए गए इन प्रतिबंधों से खुद को बंधा नहीं मानता।”
मॉस्को ने पश्चिमी देशों के एक्शन को रूस की सुरक्षा के लिए “सीधा खतरा” बताया। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पहले ही आगाह कर चुके हैं कि INF संधि का विघटन ग्लोबल सुरक्षा ढांचे को कमजोर करेगा।
1987 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन और सोवियत नेता मिखाइल गोर्बाचोव ने INF (इंटरमीडिएट-रेंज न्यूक्लियर फोर्सेस) संधि पर हस्ताक्षर किए थे। यह संधि जमीन से लॉन्च होने वाली 500 से 5,500 किलोमीटर (311 से 3,418 मील) रेंज की मिसाइलों पर प्रतिबंध लगाती थी।
आर्म्स कंट्रोल एसोसिएशन के अनुसार, यह पहली बार था जब अमेरिका और सोवियत संघ ने परमाणु हथियारों को कम करने पर सहमति दी थी, जिसमें ऑन-साइट वेरिफिकेशन की व्यवस्था भी शामिल थी और एक परमाणु हथियारों की पूरी कैटेगरी को नष्ट किया गया था। इस संधि के तहत दोनों देशों ने कुल 2,692 शॉर्ट, मीडियम और इंटरमीडिएट- रेंज की मिसाइलों को जून 1991 तक नष्ट कर दिया था।
जुलाई 2014 में अमेरिका ने रूस पर इस संधि के उल्लंघन का आरोप लगाया था और कहा था कि मॉस्को ने 500 से 5,500 किलोमीटर रेंज वाली जमीन से दागी जाने वाली क्रूज मिसाइल का परीक्षण किया है। वॉशिंगटन ने यह भी आरोप लगाया था कि रूस के पास ऐसे मिसाइल लॉन्चर भी हैं। यह आरोप 2015 से 2018 तक हर साल स्टेट डिपार्टमेंट की रिपोर्ट में दोहराए गए।
मार्च 2017 में एक वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी ने सार्वजनिक रूप से पुष्टि की कि रूस ने प्रतिबंधित मिसाइलों की तैनाती शुरू कर दी है। हालांकि, रूस ने इन आरोपों को खारिज कर दिया और उल्टा अमेरिका पर संधि तोड़ने का आरोप लगाया।
2019 में अमेरिका ने संधि से खुद को अलग कर लिया, जिससे यह संधि औपचारिक रूप से समाप्त हो गई। रूस ने तब कहा था कि वह ऐसे हथियार तब तक तैनात नहीं करेगा, जब तक अमेरिका ऐसा नहीं करता। लेकिन दिसंबर 2024 में रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने संकेत दिया कि अमेरिका और NATO की “अस्थिर करने वाली गतिविधियों” के चलते रूस को जवाबी कदम उठाने पड़ सकते हैं।
मेदवेदेव ने भी NATO को शॉर्ट और मीडियम रेंज मिसाइलों पर लगी रोक खत्म करने के लिए जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने X (पूर्व ट्विटर) पर लिखा, “मीडियम और शॉर्ट-रेंज मिसाइलों की तैनाती पर लगी रोक हटाने पर रूसी विदेश मंत्रालय का बयान NATO देशों की रूस-विरोधी नीति का नतीजा है। यह एक नई सच्चाई है जिसे हमारे सभी विरोधियों को स्वीकार करना होगा। आगे और कदम उठाए जाएंगे।”
रूसी संघ की सुरक्षा परिषद के उपाध्यक्ष मेदवेदेव पहले भी ट्रंप के साथ तीखी बयानबाजी कर चुके हैं। उन्होंने X पर लिखा कि ट्रंप को रूस के साथ अल्टीमेटम का खेल खेलने से पहले दो बातें याद रखनी चाहिए। पहला, रूस न तो इज़राइल है और न ही ईरान। दूसरा, हर नया अल्टीमेटम एक धमकी है और युद्ध की ओर एक और कदम है, न कि रूस और यूक्रेन के बीच, बल्कि अमेरिका के अपने देश के साथ। “स्लीपी जो रोड” पर मत चलिए!