Tariffs Impact: बीते 2 अप्रैल को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने कई देशों पर भारी-भरकम टैरिफ (आयात शुल्क) लगाने की घोषणा की थी। ट्रंप के इस फैसले ने दुनियाभर के बाजारों में हड़कंप मचा दिया है। शेयर बाजारों में गिरावट, व्यापारियों में चिंता और अर्थशास्त्रियों के बीच बहस छिड़ गई है कि क्या यह कदम अमेरिका और वैश्विक अर्थव्यवस्था को मंदी की ओर ले जा सकता है। ट्रंप का कहना है कि यह टैरिफ अमेरिका को “ग्रेट अगेन” बनाने और विदेशों से पैसा वसूलने का तरीका है पर कई अर्थशास्त्री इसे वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए खतरनाक कदम मान रहे हैं। लेकिन यह है क्या और इससे भारत सहित पूरी दुनिया कैसे प्रभावित हो सकती है, और क्या यह सचमुच दुनियाभर में मंदी ला सकता है? आइए एक्सपर्ट के माध्यम से समझते हैं।
सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि टैरिफ होता क्या है। टैरिफ एक तरह का कर (टैक्स) है जो सरकारें दूसरे देशों से आने वाले सामानों पर लगाती हैं। इसका मकसद या तो अपने देश की कंपनियों को बचाना होता है या फिर आयात को महंगा करके विदेशी सामानों की बिक्री कम करना। ट्रंप ने अपने नए कार्यकाल में कई देशों पर टैरिफ बढ़ाने का ऐलान किया है। ट्रंप ने सभी आयात पर 10% का बेसलाइन टैरिफ लगाने की बात कही है। इसके अलावा, कई बड़े व्यापारिक साझेदार देशों जैसे चीन, जापान, भारत और यूरोपीय संघ आदि पर इससे कई गुना ज्यादा टैरिफ लगाया गया है।
ट्रंप का दावा है कि इससे अमेरिका को 100 अरब डॉलर से ज्यादा का टैक्स मिलेगा। उनका कहना है कि दूसरे देश अमेरिका को “लूट” रहे हैं और अब वह इस “लूट” को रोकेंगे। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह फैसला वाकई अमेरिका के लिए फायदेमंद होगा या उल्टा नुकसान पहुंचाएगा? इसके जवाब में अर्थशास्त्रियों के अलग-अलग विचार हैं। कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि टैरिफ से अमेरिकी कंपनियों को फायदा होगा, लेकिन ज्यादातर चेतावनी दे रहे हैं कि इससे महंगाई बढ़ेगी, व्यापार कम होगा और मंदी का खतरा पैदा हो सकता है।
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अब बात करते हैं कि टैरिफ से मंदी कैसे आ सकती है। मंदी को अगर आसान भाषा में समझे तो इसका मतलब है अर्थव्यवस्था का ठप हो जाना। जब नौकरियां कम हों, लोग कम खर्च करें और कंपनियां घाटे में चलें, तो समझिए की मंदी चल रही है। ट्रंप के टैरिफ से ऐसा होने की आशंका क्यों बढ़ रही है, इसे एक्सपर्ट्स की मदद से समझते हैं।
HDFC बैंक के पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री अभीक बरुआ बिजनेस स्टैंडर्ड से बातचीत में बताते हैं, “जब विदेश से आने वाले सामानों पर टैरिफ लगेगा, तो उनकी कीमतें बढ़ जाएंगी। मिसाल के तौर पर, अगर चीन से आने वाले इलेक्ट्रॉनिक सामान या कपड़ों पर 34% टैरिफ लगता है तो ये चीजें अमेरिकी दुकानों में महंगी हो जाएंगी। आम अमेरिकी नागरिकों को ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ेंगे, जिससे उनकी जेब पर बोझ बढ़ेगा। इस वजह से अमेरिकी शेयर बाजार में उस दिन के बाद से साल की सबसे बड़ी गिरावट देखी गई, क्योंकि निवेशकों को डर है कि लोग कम खरीदारी करेंगे और अर्थव्यवस्था सुस्त पड़ जाएगी।”
इसके साथ ही अभीक बरुआ एक नया ट्रेड वॉर छिड़ने का आशंका भी जताते हैं। वो कहते हैं, “ट्रंप के इस कदम से दूसरे देश भी जवाबी कार्रवाई कर सकते हैं। कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने कहा है कि वह अमेरिका के टैरिफ के खिलाफ कदम उठाएंगे । अगर ऐसा हुआ, तो अमेरिका से बाहर जाने वाले सामानों पर भी टैक्स लगेगा। इससे अमेरिकी कंपनियां, जैसे कि ऑटोमोबाइल या टेक्नोलॉजी सेक्टर, जो विदेश में माल बेचती हैं, घाटे में आ सकती हैं। इससे वैश्विक व्यापार और विकास पर असर पड़ेगा, जो मंदी की ओर ले जाएगा।”
ट्रंप के ऐलान के बाद वैश्विक शेयर बाजारों में भारी गिरावट आई। बीते दिनों ट्रंप ने विदेशी सरकारों को चेतावनी दी कि उन्हें टैरिफ हटाने के लिए “बहुत सारा पैसा” देना होगा। इस बयान के बाद अमेरिकी बाजारों में तेज गिरावट देखने को मिली। अभीक कहते हैं, “निवेशक डर गए हैं कि अगर व्यापार रुक गया, तो कंपनियों का मुनाफा घटेगा और नौकरियां खतरे में पड़ेंगी। अगर यह सिलसिला लंबा चला, तो मंदी की स्थिति बन सकती है।”
इसी विषय पर बात करते हुए योजना आयोग (अब नीति आयोग) के पूर्व उपाध्यक्ष और मोंटेक सिंह आहलुवालिया ने बिजनेस स्टैंडर्ड के एक इंटरव्यू में कहा, “ट्रंप के टैरिफ प्रस्तावों के बाद अमेरिका वहीं वापस पहुंच जाएगा जहां वह 1930 के स्मूट-हॉले अधिनियम के बाद था। उस समय दुनिया में व्यापार के मोर्चे पर उथल-पुथल मच गई थी, मंदी गहराने लगी थी और दुनिया द्वितीय विश्व युद्ध की आग में झोंक दी गई। ट्रंप के कदमों के बाद वैश्विक वित्तीय बाजार पहले ही मुश्किल में है मगर दूसरे देशों के जवाबी कदमों के बाद ही स्थिति साफ हो पाएगी। चीन ने अमेरिका पर 34 फीसदी टैरिफ लगा दिया है और यूरोपीय संघ (ईयू) ने भी जवाबी कदम उठाने की बात कही है। टैरिफ बढ़ने से दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में कीमतें बढ़ जाएंगी और आर्थिक सुस्ती दिखनी शुरू हो जाएगी जिससे मंदी भी आ सकती है।”
आज की दुनिया में कोई भी देश अकेले सब कुछ नहीं बनाता। मिसाल के तौर पर, एक कार बनाने में स्टील जापान से, पार्ट्स चीन से और टायर मैक्सिको से आ सकते हैं। टैरिफ से यह पूरी श्रृंखला महंगी और जटिल हो जाएगी। ट्रंप के टैरिफ ने वैश्विक सप्लाई चेन को “उलट-पुलट” कर दिया है। इससे अमेरिकी कंपनियों को कच्चा माल महंगा पड़ेगा, जिससे उनके प्रोडक्ट की कीमतें भी बढ़ेंगी।
भारत की बात करें तो ट्रंप ने भारत पर 26% टैरिफ की बात कही है। केयरएज रेटिंग्स की रिपोर्ट के मुताबिक, इससे भारत को अमेरिका में निर्यात पर 3.1 अरब डॉलर का नुकसान हो सकता है। हालांकि, एक्सपर्ट्स का मानना है कि भारत इस संकट को अवसर में बदल सकता है। अगर भारत दूसरे देशों के मुकाबले सस्ता सामान दे सके, तो उसका निर्यात बढ़ सकता है।
अभीक बरुआ कहते हैं, “भारत के पास मौका है कि वह यूरोपीय देशों के साथ अपने व्यापार को बढ़ाए। साथ ही हम कई देशों के साथ FTA की प्रक्रिया में हैं, उसे जल्द से जल्द पूरा करें। इसके अलावा अमेरिका ने जिन देशों पर भारत से अधिक टैरिफ लगाया है, जाहिर तौर पर वहां उन देशों के साथ व्यापार में कमी आएगी। भारत इस जगह को भरने की कोशिश करें। इससे व्यापार के नए अवसर भी खुलेंगे।”
क्या भारत को भी चीन की तरह जवाबी टैरिफ की घोषणा करनी चाहिए। इस पर अभीक कहते हैं, “मुझे नहीं लगता कि जवाबी टैरिफ लगानी चाहिए। व्यापार में अमेरिका हमारा सबसे बड़ा साझेदार देश है मगर उनके लिए हम बहुत मायने नहीं रखते हैं। भारत अगर जवाबी टैरिफ लगाएगा तो इससे अमेरिका को नुकसान नहीं होगा और न ही उसे रोका जा सकेगा। मुझे लगता है कि भारत को बातचीत का रास्ता चुनना चाहिए। अगर अमेरिका इसके लिए तैयार होता है तो वह ज्यादा बेहतर होगा।”
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तो क्या ट्रंप के टैरिफ से मंदी पक्की है? अभी यह कहना जल्दबाजी होगी। एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर ट्रंप अपने फैसले पर अड़े रहे और दूसरे देशों ने जवाबी टैरिफ लगाए, तो मंदी का खतरा बढ़ेगा। लेकिन अगर वह पीछे हटते हैं या समझौता करते हैं, तो शायद स्थिति संभल जाए। फिलहाल, शेयर बाजार की गिरावट, बढ़ती महंगाई और व्यापार युद्ध की आशंका से दुनिया चिंतित है।
अभीक कहते हैं, “इतना तो तय है कि देश की अर्थव्यवस्था में 60-70 बेसिस प्वाइंट का नुकसान पहुंचेगा, लेकिन भविष्य में क्या होगा इसको लेकर अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी।”
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के रिटायर्ड प्रोफेसर और अर्थशास्त्री अरुण कुमार कहते हैं, “यह इस बात पर निर्भर करेगा कि अमेरिका के लोग क्या करते हैं। इस टैरिफ के सबसे प्राइम विक्टिम तो अमेरिकी लोग होंगे। टैरिफ में बढ़ोतरी के साथ वहां महंगाई बढ़ेगी, और लोगों द्वारा सरकार पर एक प्रेशर बनाया जाए। दूसरी बात कि बाकि देशों को संयम रखने की जरूरत होगी, क्योंकि अगर टैरिफ वॉर शुरू हो गया तो मंदी का आना निश्चित है। इसलिए यहां दूसरे देशों को अमेरिका पर दवाब बनाना चाहिए, और जवाबी टैरिफ से बचना चाहिए।”
वो आगे कहते हैं, “अगर बात भारत की करें तो भारत सरकार को नए रास्ते तलाशने के साथ-साथ हमें अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करना चाहिए, क्योंकि जब मांग बढ़ेगी तो दूसरे देश पर निर्भरता कम होगी। इससे यह होगा कि हम कम से कम टैरिफ के प्रभाव में रहेंगे, लेकिन यह बहुत दूर की सोच है। फिलहाल तो बातचीत ही सबसे बड़ा माध्यम है।”