Gold Card Trump Citizenship Program: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जब से दूसरी बार अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ ली है, उसके बाद से ही अलग-अलग वजहों से चर्चा में रह रहे हैं। अपने शपथ ग्रहण के बाद से ही अमेरिका कनाडा तनातनी, दुनिया भर के अलग-अलग देशों के लिए टैरिफ में बढ़तरी-कमी, H-1B वीजा से लेकर रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर अमेरिका के नए स्टैंड को लेकर ट्रंप ने दुनिया भर के लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। लेकिन ट्रंप ने फरवरी 2025 में एक ऐसी योजना का ऐलान किया, जिसकी चर्चा बाकी चीजों के मुकाबले सबसे अधिक हुई। दरअसल ट्रंप ने दुनिया भर के अमीर लोगों को अमेरिकी नागरिकता देने के लिए एक नए “गोल्ड कार्ड ट्रंप सिटिजनशिप प्रोग्राम” लाने की घोषणा की। यह कोई साधारण योजना नहीं थी, बल्कि एक ऐसा प्रस्ताव था, जो दुनिया भर के रईस लोगों को पैसे देकर सीधे अमेरिका की नागरिकता खरीदने का सुनहरा मौका देता है।
इस योजना के तहत, कोई भी व्यक्ति 5 मिलियन डॉलर, यानी लगभग 43-44 करोड़ रुपये, का निवेश करके अमेरिका में न सिर्फ स्थायी रूप से रह सकते हैं, बल्कि तुरंत वहां के नागरिक भी बन सकते हैं। ट्रंप प्रशासन ने दावा किया था कि यह योजना अप्रैल 2025 तक लागू हो जाएगी।
अब बीते दिन खबर आई अमेरिका ने एक दिन में 1000 गोल्ड कार्ड वीजा बेचे हैं। न्यूज वेबसाइट CNN की रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका के वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लटनिक ने इसका खुलासा किया है। लटनिक के मुताबिक, यह प्रोग्राम करीब दो हफ्तों में शुरू हो जाएगा। उन्होंने एक पॉडकास्ट में कहा, “एलन मस्क अभी इसके लिए सॉफ्टवेयर बना रहे हैं और यह दो हफ्तों में शुरू हो जाएगा। वैसे भी कल ही मैंने एक हजार गोल्ड कार्ड बेचे हैं।”
उन्होंने बताया, “दुनिया में 3.7 करोड़ लोग ऐसे हैं जो यह कार्ड खरीद सकते हैं। राष्ट्रपति ट्रंप का मानना है कि हम ऐसे 10 लाख कार्ड बेच सकते हैं।” लटनिक ने कहा कि यह आइडिया ट्रंप को निवेशक जॉन पॉलसन के साथ एक बैठक के दौरान आया। लटनिक ने दावा किया कि इसके बाद उन्हें इसे लागू करने का तरीका ढूंढने का जिम्मा सौंपा गया।
लटनिक के अनुसार, गोल्ड कार्ड पुराने ग्रीन कार्ड की जगह लेगा और इसके साथ अमेरिका में स्थायी निवास मिलेगा। यह कार्ड धारकों को अमेरिका में हमेशा रहने की इजाजत होगी और लोगों के पास अमेरिकी नागरिकता लेने का भी विकल्प होगा। हालांकि, लाटनिक का मानना है कि ज्यादातर लोग टैक्स नियमों की वजह से नागरिकता लेने से परहेज करेंगे।
अब समझने के लिए चलते हैं इतिहास में। कहानी शुरू होती है अमेरिका की एक पुरानी नीति से, जिसे EB-5 इन्वेस्टर वीजा प्रोग्राम कहा जाता था। यह प्रोग्राम 1990 में शुरू हुआ था और इसके जरिए विदेशी निवेशकों को मौका दिया जाता था कि वे 1 मिलियन डॉलर, यानी लगभग 8.5 करोड़ रुपये, का निवेश करें और बदले में उन्हें अमेरिकी ग्रीन कार्ड मिलेगा। ग्रीन कार्ड का मतलब था अमेरिका में स्थायी रूप से रहने और काम करने की इजाजत। लेकिन इसकी राह आसान नहीं थी। निवेश के साथ-साथ यह शर्त थी कि आपको कम से कम 10 नौकरियां पैदा करनी होंगी। फिर भी, ग्रीन कार्ड मिलने में 5 से 7 साल तक का इंतजार करना पड़ता था। कई लोगों ने इस प्रोग्राम का फायदा उठाया, लेकिन इसमें धोखाधड़ी और गड़बड़ियों की शिकायतें भी सामने आईं।
ट्रंप को ग्रीन कार्ड प्रोग्राम पहले से ही पसंद नहीं था। उनके मुताबिक, यह प्रोग्राम धीमा था और अमेरिका को उतना फायदा नहीं दे रहा था, जितना देना चाहिए। इसलिए उन्होंने इसे खत्म करने और एक नई योजना लाने का रिस्क लिया। इसे नाम दिया गया गोल्ड कार्ड ट्रंप सिटिजनशिप प्रोग्राम। यह नया प्रोग्राम पुराने EB-5 से बिल्कुल अलग है। इसमें निवेश की राशि बढ़ाकर 5 मिलियन डॉलर कर दी गई है, लेकिन नौकरी पैदा करने की शर्त को पूरी तरह से खत्म कर दिया गया। ट्रंप का कहना है कि यह गोल्ड कार्ड ग्रीन कार्ड से कहीं ज्यादा खास और प्रीमियम होगा। सबसे बड़ी बात, इसे खरीदने वाले को तुरंत नागरिकता मिल सकती है, बिना सालों इंतजार किए वह अमेरिकी के नागरिक बन जाएंगे। ट्रंप इसे “अमेरिकन ड्रीम” का शॉर्टकट बताते हैं। ट्रंप ने दावा किया था कि शुरुआत में 10 लाख गोल्ड कार्ड बेचे जाएंगे, जिससे अमेरिका को अरबों डॉलर का राजस्व हासिल होगा।
यह योजना सुनने में जितनी शानदार लगती है, उतनी ही खास लोगों के लिए बनाई गई है। इसका सबसे बड़ा फायदा दुनिया भर के अमीर लोगों को होगा। इसमें मुख्य रूप से बड़े कारोबारी, उद्योगपति और निवेशक शामिल होंगे, जिनके पास मोटी रकम खर्च करने की ताकत है। ट्रंप ने खुद संकेत दिया है कि रूस और चीन के अरबपति भी इस योजना में दिलचस्पी दिखा सकते हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, मिडिल ईस्ट के तेल व्यापारी, यूरोप के उद्योगपति और लैटिन अमेरिका के अमीर लोग भी इस प्रोग्राम का फायदा उठा सकते हैं।
लेकिन यहां एक पेंच है। 5 मिलियन डॉलर की भारी कीमत इस योजना को आम लोगों की पहुंच से बाहर रखती है। मध्यम वर्ग या सामान्य पेशेवर, जो अमेरिका में अपनी जगह बनाना चाहते हैं, उनके लिए यह सपना अधूरा ही रहेगा। खासकर भारत के उन लाखों पेशेवरों के लिए, जो H-1B वीजा पर सालों से ग्रीन कार्ड का इंतजार कर रहे हैं, यह योजना एक झटके की तरह है। उनके लिए यह देखना मुश्किल होगा कि जहां वे सालों की मेहनत के बाद भी लाइन में हैं, वहीं मोटी रकम वाले तुरंत नागरिकता पा सकते हैं।
ट्रंप का यह कदम कोई अचानक लिया गया फैसला नहीं है। इसके पीछे उनकी सोच और रणनीति साफ झलकती है। उन्होंने इस प्रोग्राम को लाने के तीन बड़े कारण बताए हैं। पहला, अमेरिका का वित्तीय घाटा यानी कर्ज कम करना। ट्रंप का कहना है कि अगर 10 लाख गोल्ड कार्ड बिकते हैं, तो अमेरिका को 50 अरब डॉलर, यानी करीब 4.3 लाख करोड़ रुपये, का राजस्व मिलेगा। यह रकम इतनी बड़ी है कि इससे देश का कर्ज कम करने में बड़ी मदद मिल सकती है।
ट्रंप की सोच पूरी तरह कारोबारी है। वह मानते हैं कि अमीर लोग अमेरिका आएंगे तो ज्यादा खर्च करेंगे, टैक्स देंगे और अमेरिका को आर्थिक रूप से ताकतवर बनाएंगे। यह उनकी “अमेरिका फर्स्ट” नीति का हिस्सा है, जिसमें देश की संपत्ति और शक्ति बढ़ाना उनकी पहली प्राथमिकता है।
अब सवाल यह है कि इस गोल्ड कार्ड को कोई भी खरीद सकता है क्या? जवाब है—नहीं। हालांकि, इसकी शर्तें अभी पूरी तरह साफ नहीं हुई हैं, लेकिन कुछ बुनियादी बातें सामने आई हैं। सबसे पहली और बड़ी शर्त है 5 मिलियन डॉलर का निवेश। यह राशि आपको नकद में देनी होगी। EB-5 की तरह कर्ज लेकर या फंड जुटाकर काम नहीं चलेगा। दूसरी शर्त है बैकग्राउंड चेक। ट्रंप प्रशासन हर निवेशक के आर्थिक और आपराधिक इतिहास की गहरी जांच करेगा। उनका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि कोई संदिग्ध या खतरनाक व्यक्ति इस योजना का हिस्सा न बने।
तीसरी बात जो इसे खास बनाती है, वह यह कि नौकरी पैदा करने की कोई शर्त नहीं है। जहां EB-5 में 10 नौकरियां पैदा करना जरूरी था, वहीं गोल्ड कार्ड में यह बाधा हटा दी गई है। इसका मतलब साफ है कि यह योजना सिर्फ सुपर-रिच लोगों के लिए है। भारत जैसे देशों में, जहां मध्यम वर्ग और कुशल पेशेवर अमेरिका में बसने का सपना देखते हैं, उनके लिए यह रास्ता लगभग बंद है। हाँ, अगर कोई H-1B, EB-2 या EB-3 वीजा धारक 5 मिलियन डॉलर जुटा सके, तो वह भी आवेदन कर सकता है।
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस योजना से अमेरिका को क्या मिलेगा? ट्रंप और उनके समर्थकों का मानना है कि यह प्रोग्राम देश के लिए कई तरह से फायदेमंद होगा। सबसे पहले, आर्थिक लाभ। अगर 10 लाख कार्ड बिकते हैं, तो 50 अरब डॉलर से ज्यादा की रकम अमेरिका की झोली में आएगी। यह पैसा सड़कों, पुलों, अस्पतालों और स्कूलों जैसे बुनियादी ढांचे में लगाया जा सकता है। दूसरा फायदा है निवेश में बढ़ोतरी। अमीर लोग अमेरिका में घर खरीदेंगे, कारखाने बनाएंगे और लग्जरी सामानों पर खर्च करेंगे। इससे बाजार में तेजी आएगी और अर्थव्यवस्था को नई ऊर्जा मिलेगी।
तीसरा लाभ है रोजगार का अप्रत्यक्ष सृजन। भले ही इसमें नौकरी पैदा करना शर्त न हो, लेकिन अमीर निवेशकों के आने से नौकरियां अपने आप बढ़ेंगी। मिसाल के तौर पर, अगर कोई रूसी अरबपति अमेरिका में एक शानदार होटल बनाता है, तो उसमें सैकड़ों लोगों को काम मिलेगा, चाहे वह वेटर हो, शेफ हो, या मैनेजर। चौथा और शायद सबसे दिलचस्प फायदा है अंतरराष्ट्रीय प्रभाव। यह योजना रूस और चीन जैसे देशों के अमीरों को लुभा सकती है। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि यह रूस पर लगी पाबंदियों को कम करने की दिशा में एक छिपा हुआ कदम भी हो सकता है। अगर ऐसा हुआ, तो अमेरिका का वैश्विक प्रभाव और बढ़ेगा।
लेकिन हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। इस योजना के कुछ जोखिम भी हैं। मनी लॉन्ड्रिंग यानी काले धन को सफेद करने का खतरा हो सकता है। अगर गलत लोग इस प्रोग्राम का फायदा उठाते हैं, तो अमेरिका की सुरक्षा पर सवाल उठ सकते हैं। एक डर यह भी है कि विदेशी प्रभावशाली व्यक्ति वहां आएंगे तो उनका भी प्रभाव वहां भी बढ़ने का डर भी है।
भारत के लिए यह योजना एक दोधारी तलवार की तरह है। एक तरफ, बड़े भारतीय कारोबारी इसका फायदा उठा सकते हैं। अगर कोई धनवान उद्योगपति इस प्रोग्राम के जरिए अमेरिका जाता है, तो वह वहां अपना कारोबार फैला सकता है। लेकिन दूसरी तरफ, लाखों भारतीय पेशेवरों के लिए यह बुरी खबर है। जो लोग सालों से ग्रीन कार्ड की लाइन में खड़े हैं, खासकर H-1B वीजा धारक, उनके लिए यह देखना तकलीफदेह होगा कि जहां उनकी बारी नहीं आ रही, वहीं अमीर लोग सीधे नागरिकता खरीद रहे हैं। EB-5 प्रोग्राम खत्म होने से उनका इंतजार और लंबा हो सकता है। 2023 में सिर्फ 631 भारतीयों को EB-5 के तहत ग्रीन कार्ड मिला था लेकिन अब यह संख्या और कम हो सकती है।