तापमान बढ़ने से साल 2030 तक भारत को करीब 5.8 फीसदी कामकाजी घंटे गंवाने पड़ सकते हैं। एशिया और प्रशांत क्षेत्र के लिए संयुक्त राज्य आर्थिक व सामाजिक आयोग (यूएनईएससीएपी) ने गुरुवार को जारी ताजा रिपोर्ट में कहा कि इससे उत्पादकता में कमी आएगी और राजस्व का संग्रह घटेगा।
‘इकनॉमिक ऐंड सोशल सर्वे ऑफ एशिया ऐंड पैसिफिक 2024’ नाम से जारी रिपोर्ट में कहा गया है, ‘बाहर काम करने वालों, खासकर कृषि और निर्माण क्षेत्र में काम करने के लिए समस्या ज्यादा गंभीर है। लेकिन कारखानों के अंदर काम करने वाले कामगारों के लिए भी यह अहम है। श्रमिकों की उत्पादकता और आर्थिक उत्पादन गिरने की वजह से तापमान बढ़ने से राजस्व संग्रह में भी कमी आएगी।’
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन से बीमारियां भी फैलेंगी, जिससे सरकार का राजस्व कम होने के साथ व्यय की जरूरतें बढ़ेंगी क्योंकि इस तरह के बुरे असर को कम करने के लिए धन खर्च करने की आवश्यकता बढ़ेगी।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘मौजूदा इलाकों में जैसे-जैसे बीमारियां व्यापक होती जाती हैं और जलवायु परिवर्तन के कारण नए क्षेत्रों में फैलती हैं, वे हेल्थकेयर की अतिरिक्त लागत की वजह बनती हैं। बीमारियों का प्रसार सीमित करने के लिए जरूरी लक्षित निवेश की जरूरत होगी और इसके लिए अन्य क्षेत्रों में खर्च में कटौती करनी पड़ सकती है। आखिरकार सरकार का राजस्व संग्रह भी घट सकता है क्योंकि बीमारियां बढ़ने से आर्थिक उत्पादन घटेगा।’
इसके अलावा रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से कृषि सब्सिडी का बोझ बढ़ सकता है, जो इस समय भारत में कृषि से होने वाली कुल आमदनी का पांचवां हिस्सा है।