सूर्यास्त होने के साथ 20 डिलिवरी पूरी कर चुके इंद्रेश सिंह (41) ने अपनी शिफ्ट खत्म की और घर जाने के लिए सामान समेटने लगे। पिछले महीने ही एक सड़क हादसे में उनकी दाहिनी बांह और पैर में गंभीर चोट लगी थी जिससे उन्हें दो सप्ताह तक काम से दूर रहना पड़ा था।
वह कहते हैं, ‘दुर्घटना से लगी चोट के इलाज में मेरी सारी जमा-पूंजी खत्म हो गई। यदि मेरी कंपनी ने स्वास्थ्य बीमा दिया होता तो मुझे काफी वित्तीय सहारा मिल जाता और इतनी दिक्कत नहीं उठानी पड़ती।’ एक कॉन्ट्रैक्टर के माध्यम से ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के साथ जुड़े सिंह उन लाखों गिग कामगारों में शामिल हैं, जो देश का तेजी से उभरता कार्यबल है। नीति आयोग के मुताबिक वर्ष 2029-30 तक गिग कार्यबल का आकार 2.35 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है। यह एक ऐसा कार्यबल है जिसे व्यावहारिक रूप से कोई सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध नहीं है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी बीते 1 फरवरी को अपने बजट भाषण में इस असुरक्षा का जिक्र किया था।
उन्होंने ऐलान किया था कि गिग कामगारों और ई-कॉमर्स अर्थव्यवस्था से जुड़े कर्मचारियों को प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएम-जय) के अंतर्गत लाया जाएगा और ई-श्रम पोर्टल पर उनका पंजीकरण होगा तथा उन्हें पहचान पत्र दिए जाएंगे। सीतारमण ने अपने बजट भाषण में कहा था, ‘ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से जुड़े गिग कामगार आज नए युग की सेवा अर्थव्यवस्था को गति देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। बजट में की जा रही व्यवस्था से लगभग 1 करोड़ गिग कामगारों को लाभ होगा।’
सिंह इस बात पर खुशी जाहिर करते हैं कि आखिरकार सरकार गिग कामगारों के महत्त्व को समझ रही है और उन्हें ध्यान में रखकर नीतियां बना रही है। वह कहते हैं, ‘यह हमारे जैसे लोगों के लिए हमेशा जीवन-मरण का सवाल रहा है, जिन्हें पूरे दिन मोटरसाइकल चलाकर घर-घर सामान पहुंचाना होता है।’
ऑनलाइन डिलिवरी सेवाओं का दायरा बढ़ने के बावजूद गिग कामगारों और प्लेटफॉर्म से जुड़े कामों को परिभाषित करना आसान नहीं रहा है, जिससे उनके हित की नीतियां बनने में देर हुई है। इस सेवाओं को अभी गैर मानक रोजगार के तहत गिना जाता है जहां काम की प्रकृति आकस्मिक, लचीली और अस्थायी है। हाल ही में बनाए गए चार श्रम कोड में से एक, सामाजिक सुरक्षा कोड 2020 में पहली बार औपचारिक रूप से गिग और प्लेटफॉर्म कामगारों को परिभाषित किया गया है।
इसके धारा 2(35) के तहत गिग कामगार ऐसे व्यक्ति को कहते हैं जो पारंपरिक नियोक्ता-कर्मचारी व्यवस्था से अलग होकर काम करता है। धारा 2 (60) में ई-प्लेटफॉर्म से जुड़े कार्यों की ऐसे रोजगार के रूप में व्याख्या की गई है जो सरकार द्वारा अधिसूचित विशेष सेवाओं के लिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से किया जाता है। लेकिन कार्रवाई-शोध एवं मीडिया एडवोकेसी नेटवर्क पीपल्स एसोसिएशन इन ग्रासरूट्स एक्शन ऐंड मूवमेंट की संस्थापक आकृति भाटिया कहती हैं कि इस प्रकार की परिभाषाएं गिग कामगारों का गलत तरीके से वर्गीकरण करती हैं।
उन्होंने कहा, ‘भारत में गिग और प्लेटफॉर्म कार्य अब लाखों लोगों के लिए रोजगार का प्राथमिक स्रोत बन गया है। इन कोड में वास्तविकता को अनदेखा किया गया है।’ भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (फिक्की) तथा मानव संसाधन फर्म रैंडस्टैड इंडिया की 2023 में आई एक रिपोर्ट में बताया गया है कि देश में 42.24 फीसदी स्टार्टअप बड़ी संख्या में गिग कामगारों की भर्ती कर रहे हैं।
केंद्रीय बजट में की गई घोषणा के मुताबिक गिग कामगारों को पैनल में शामिल 31,000 सरकारी और निजी अस्पतालों में इलाज की सुविधा मिलेगी। इसके लिए पिछले साल ही कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआईसी) को पीएम-जय योजना से जोड़ने के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण एवं ईएसआईसी के बीच साझेदारी हुई है। अधिकारियों ने इस बात के भी संकेत दिए कि सरकार गिग कामगारों के लिए कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) के अंतर्गत एक पेंशन योजना भी लाने की तैयारी कर रही है।
कर्मचारियों को ई-श्रम पोर्टल पर स्वयं को पंजीकृत कराना होगा और इसमें यह भी बताना होगा कि वह कितने ई-प्लेटफॉर्म के साथ काम कर रहे हैं। इसके बाद उन्हें ईपीएफओ के तहत एक यूनिवर्सल अकाउंट नंबर (यूएएन) दिया जाएगा। उन्होंने कहा, ‘मंत्रालय पेंशन निर्धारित करने के लिए लेन-देन आधारित प्रतिशत फॉर्मूले पर काम कर रहा है। इसमें प्रत्येक लेन-देन पर निश्चित धनराशि कर्मचारी के ईपीएफओ से जुड़े खाते में जमा कर दी जाएगी।’ केंद्रीय श्रम सचिव सुमिता डावरा ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि श्रम मंत्रालय बजट में की गई घोषणाओं को अमली जामा पहनाने के लिए प्राथमिकता के आधार पर काम रहा है।
उद्योग जगत ने जहां सरकार की ओर से की गई इस पहल का स्वागत किया है, वहीं अनेक लोग ऐसे भी हैं, जो इसे उचित नहीं मान रहे हैं। इंडियन फेडरेशन ऑफ ऐप बेस्ड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स (आईएफएटी) के राष्ट्रीय महासचिव शेख सलाउद्दीन इस बात पर जोर देते हैं कि इस योजना को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए होना यह चाहिए कि कर्मचारियों को खुद को पंजीकृत करने की जगह खुद कंपनियां आंकड़े सरकार के साथ साझा करें। जानकारी के अभाव में बहुत से कर्मचारी इस योजना का लाभ नहीं उठा पाएंगे।
उन्होंने कहा, ‘यदि ई-श्रम पोर्टल पर डेटा अपलोड करना अनिवार्य नहीं किया गया तो बहुत से कर्मचारियों को सरकारी योजना का फायदा नहीं मिल पाएगा। ई-श्रम पोर्टल पंजीकरण को कल्याणकारी योजनाओं से जोड़ा जाना महत्त्वपूर्ण है। केवल पंजीकरण से काेई फायदा नहीं होने वाला।’
सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि 4 फरवरी तक अर्बन कंपनी, ब्लिंकइट, जोमैटो और अंकल डिलिवरी जैसे केवल चार ई-प्लेटफॉर्म ही ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत हैं। इन प्लेटफॉर्म के साथ कुल 4,23,000 सक्रिय गिग कामगार जुड़े हैं। वैसे कई प्लेटफॉर्म पहले से ही अपने साथ जुड़े कर्मचारियों को जीवन बीमा सुविधा दे रही हैं। ओला मोबिलिटी इंस्टीट्यूट के एक शोध में पिछले साल दावा किया गया था कि कई प्लेटफॉर्म गिग कर्मचारियों को दुर्घटना बीमा देते हैं। पैसेंजर मोबिलिटी प्लेटफॉर्म 5 लाख रुपये तक बीमा कवर देता है।