उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को आयुष मंत्रालय से कहा कि उसे चिकित्सकीय और संबंधित स्वास्थ्य उत्पादों के भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ होने वाली शिकायतों के निपटान की प्रक्रिया पर नजर रखने के लिए केंद्रीकृत डैशबोर्ड बनाने पर विचार करना चाहिए।
न्यायमूर्ति हिमा कोहली और संदीप मेहता के पीठ ने कहा, ‘हमारी यह राय है कि आयुष मंत्रालय को हितधारकों एवं राज्य लाइसेंसिंग अथॉरिटी से मिलने वाली शिकायतों पर होने वाली कार्रवाई की निगरानी के लिए डैशबोर्ड बनाना चाहिए, ताकि पूरे आंकड़े सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध हों। यह डैशबोर्ड शिकायतों के अभाव या अन्य कारणों से आरोपियों के खिलाफ औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम के तहत कार्रवाई नहीं होने जैसे मामलों को भी देखेगा।’
सर्वोच्च न्यायालय ने ये सुझाव शिकायतों खास कर राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरणों द्वारा एक से दूसरे प्रदेश में भेजी जाने वाली शिकायतों पर कार्रवाई में आने वाली अड़चनों के मामले में सुनवाई के दौरान एमिकस क्यूरी (न्याय मित्र) की दलीलें सुनने के बाद दिए।
एमिकस क्यूरी शादान फरासत ने भी अदालत को बताया कि उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय तथा एडवरटाइजिंग स्टैंडर्ड काउंसिल ऑफ इंडिया के बीच मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (एमओयू) की अवधि 2020 में ही समाप्त हो गई है। इस कारण उपभोक्ताओं की तरफ से होने वाली शिकायतों में भारी गिरावट आई है। पहले जहां 2,573 शिकायतें आती थीं, वहीं अब यह संख्या 12 तक ही सिमट गई है। इनमें 116 का निपटारा हुआ है।
न्यायमूर्ति कोहली ने कहा कि आपके पास किसी भी तरह एक पोर्टल तो होना ही चाहिए, जिस पर जाकर उपभोक्ता अपनी शिकायत दर्ज करा सकें और संबंधित विभाग उस पर कार्रवाई करे।