उच्चतम न्यायालय ने अहमदाबाद में इसी साल 12 जून को हुई एयर इंडिया की दुर्घटना की प्रारंभिक जांच पर विमान दुर्घटना जांच ब्यूरो (एएआईबी) की रिपोर्ट के ‘चयनात्मक’ प्रकाशन पर सवाल उठाया। न्यायमूर्ति सूर्य कांत और एन कोटेश्वर सिंह के दो न्यायाधीशों वाले पीठ ने कहा कि ‘प्रारंभिक जांच रिपोर्ट का चयनात्मक प्रकाशन दुर्भाग्यपूर्ण था।’ पीठ ने कहा, ‘जब तक जांच पूरी नहीं हो जाती तब तक गोपनीयता बनाए रखी जानी चाहिए।’
गैर-लाभकारी संगठन सेफ्टी मैटर्स फाउंडेशन द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत होते हुए दो न्यायाधीशों के पीठ ने केंद्र सरकार के साथ-साथ नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) से भी इस मामले में जवाब तलब किया है।
अपनी याचिका में संगठन ने 12 जून को लंदन गैटविक के लिए उड़ान एआई171 का संचालन कर रहे एयर इंडिया के बोइंग 787-8 विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने की स्वतंत्र जांच की मांग की है। यह विमान अहमदाबाद से उड़ान भरने के तुरंत बाद एक मेडिकल हॉस्टल परिसर में दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। इस हादसे में क्रू मेंबर समेत ढाई से अधिक लोग मारे गए थे। सेफ्टी मैटर्स फाउंडेशन ने अपनी याचिका में तर्क दिया है कि आंशिक निष्कर्षों का खुलासा विमान (दुर्घटनाओं और घटनाओं की जांच) नियम, 2017 का उल्लंघन करता है, जो जांच के दौरान एकत्र किए गए तथ्यात्मक डेटा के पूर्ण प्रकटीकरण को अनिवार्य करता है।
याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि रिपोर्ट में पूर्ण डिजिटल फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर आउटपुट, टाइमस्टैम्प के साथ पूर्ण कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर ट्रांसक्रिप्ट और इलेक्ट्रॉनिक एयरक्राफ्ट फॉल्ट रिकॉर्डिंग डेटा जैसी महत्त्वपूर्ण जानकारी रोक दी गई है। संस्था की ओर से पेश हुए अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने जांच पैनल की संरचना पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि इसके पांच सदस्यों में से तीन डीजीसीए के अधिकारी हैं।
भूषण ने कहा, ‘पांच सदस्यों की टीम में तीन अधिकारी डीजीसीए से हैं। उनकी लापरवाही स्वयं जांच का विषय हो सकती है। यह हितों का बहुत गंभीर टकराव पैदा करता है।’ लेकिन, जस्टिस कांत ने कहा कि सेवारत अधिकारियों की उपस्थिति का मतलब जरूरी नहीं है कि गलत करने वाले व्यक्तियों को इससे लाभ होगा अथवा उनकी सुरक्षा होगी। जस्टिस कांत ने कहा, ‘मान लीजिए कि यह पाया जाता है कि व्यक्तिगत इंजीनियरों की गलती है, तो वे (जांच पैनल) उनकी रक्षा नहीं कर सकते हैं।’