महाराष्ट्र में मराठी बनाम हिंदी को लेकर एक बार फिर विवाद छिड़ा हुआ है। मराठी भाषा के मुद्दे पर राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) आक्रामक दिख रही है। एक सोसायटी के वॉचमैन, डी-मार्ट स्टोर, बैंक के कर्मचारियों के बीच मार-पीट एवं झड़प ने राज्य में भाषा को लेकर नया विवाद खड़ा कर दिया है। माना जा रहा है कि राज्य में स्थानीय निकाय चुनाव तक यह मुद्दा गरम रहने वाला है। उत्तर भारतीयों के साथ हो रहे अपमानजनक व्यवहार पर ज्यादातर राजनीतिक दल राजनीतिक नफे-नुकसान को भांपते हुए चुप हैं या नपी-तुली प्रतिक्रिया दे रहे हैं। दूसरी तरफ उद्योग जगत इस विवाद से सहमा हुआ है क्योंकि उसे मजदूरों के पलायन का डर सता रहा है।
गैर मराठियों पर हो रहे हमले को मनसे मराठी सम्मान से जोड़ कर देख रही है। हालांकि राजनीति के जानकारों का कहना है कि इस साल मुंबई सहित राज्य की सभी स्थानीय निकाय के चुनाव होने वाले हैं। मनसे की नजर बीएमसी चुनाव पर है इसलिए वह इस मुद्दे को पकड़ कर रखना चाहती है और इस मुद्दे के आधार पर वह अपनी राजनीतिक जमीन तैयार करने में लगी है। स्थानीय चुनाव की वजह से दूसरे दल भी इस मुद्दे पर चुप्पी साधने में ही अपना भला समझ रहे हैं। लेकिन उत्तर भारतीयों पर हो रहे हमले सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहे हैं जिससे राज्य का माहौल खराब हो रहा है।
मनसे उपाध्यक्ष और प्रवक्ता वागीश सारस्वत कहते हैं कि उनकी पार्टी को बिहार या किसी राज्य से आने वाले लोगों के महाराष्ट्र में रहने और काम करने से कोई समस्या नहीं है, बशर्ते वे स्थानीय भाषा का सम्मान करें । उनका कहना है कि मराठी मुंबई और महाराष्ट्र के बाकी हिस्सों की भाषा है। केंद्र सरकार ने हाल ही में इसे शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया है। लेकिन कुछ लोग जानबूझकर भाषा का अनादर और अपमान करते हैं । ऐसे तत्वों को सबक सिखाने के दौरान हिंसा होती है, लेकिन यह जानबूझकर नहीं होता। मराठी को उचित सम्मान दें तो हमें इससे कोई दिक्कत नहीं है कि संबंधित लोग बिहार से हैं या कर्नाटक या फिर किसी और राज्य से हैं।
मुंबई में मराठी भाषा को लेकर विवाद एक बार फिर से हिंसा में तब्दील हो गया। दुकानों के बाहर मराठी में बोर्ड लगाने के बाद शिवसेना (यूबीटी) ने मांग की है कि रेस्टोरेंट और अन्य खान-पान के स्थलों पर मेन्यू कार्ड मराठी भाषा में होने चाहिए। इसके लिए शिवसेना (यूबीटी) के नेता कृष्णा पावले ने मुंबई के कलेक्टर को पत्र लिखकर मांग की कि दूसरे राज्यों में स्थानीय बिजनेसमैन, दुकानदार और होटल मालिक स्थानीय भाषा में पेमेंट और मेन्यू को प्राथमिकता देते हैं। महाराष्ट्र में स्थिति इसके विपरीत है। यहां होटल मालिक अंग्रेजी में मेन्यू का इस्तेमाल करते हैं। हम किसी भाषा के खिलाफ नहीं हैं पर मुंबई और महाराष्ट्र में होने के नाते और मराठी मातृभाषा होने से हमें सभी बिजनेस संचालकों को निर्देश देना चाहिए कि वे अपने पेमेंट, फूड मेन्यू और अन्य डोमेन पर हमारी भाषा और राज्य का सम्मान करें ।
महाराष्ट्र में उत्तर भारतीय मतदाता सबसे ज्यादा भाजपा के समर्थक माने जाते हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए भाजपा नेता भी नपा-तुला बयान दे रहे हैं। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा है कि महाराष्ट्र में मराठी के लिए आंदोलन करने में कुछ भी गलत नहीं है। सरकार भी मानती है कि मराठी के उपयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। लेकिन अगर कोई कानून अपने हाथ में लेता है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई करने की जरूरत है । दूसरी तरफ महाराष्ट्र नवनिर्माण विद्यार्थी सेना के कार्यकर्ता मराठी भाषा की रक्षा के लिए अपने अभियान को और भी विस्तार करने वाले हैं। मनसे के छात्र प्रकोष्ठ के महासचिव संदीप पाचंगे के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने ठाणे जिला परिषद में शिक्षा अधिकारी से मुलाकात की और एक ज्ञापन सौंपकर उन अंग्रेजी माध्यम स्कूलों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की, जो छात्रों को मराठी बोलने से रोकते हैं।
राज्य में तेजी से फैलते भाषा विवाद पर उद्योग जगत के लोगों का कहना है कि भाषा विवाद से उद्योग पर असर पड़ता है। भाषा विवाद देश के राजनीतिक माहौल को प्रभावित करता है और इससे कारोबार पर भी असर पड़ता है। ठाणे इलाके में कारखाना चलाने वाले विजय पारिख कहते हैं कि आज कारखानों में सबसे बड़ी समस्या योग्य कर्मचारियों और मजदूरों की कमी है। मजदूरी का काम देश के हर कोने में मिल जा रहा है ऐसे में माहौल खराब होने पर सबसे पहले मजदूर वर्ग ही पलायन करता है क्योंकि राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता इन्हीं लोगों को आसानी से निशाना बनाते हैं। सरकार को यह सोचना होगा इस तरह के विवाद का सीधा असर उद्योग धंधों पर पड़ेगा। होटल व्यवसायी प्रकाश चौधरी कहते हैं कि मुंबई सहित पूरे महाराष्ट्र में होटल, उद्योग, सेवा क्षेत्र, खुदरा व्यापार, ट्रांसपोर्ट, खाद्य व्यवसाय, कारखानों में उत्तर भारतीयों का उल्लेखनीय योगदान है। सब मराठी का सम्मान करते हैं लेकिन किसी व्यक्ति को सिर्फ इसलिए अपमानित किया जाए कि वह मराठी नहीं बोल पाता है, यह सही नहीं है। सरकार समय रहते इस विवाद पर विराम लगाए यही राज्य के हित में है।
आज भारत में लगभग 9 करोड़ लोग मराठी बोलते हैं और यह हिन्दी व बांग्ला के बाद भारत में तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है।