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बदनाम कामाठीपुरा का होगा कायाकल्प, बाजार और मकान दोनों होंगे हाईटेक; बनेगा मुंबई का नया रियल्टी हॉटस्पॉट

कामाठीपुरा के पुनर्विकास से व्यापार और रियल एस्टेट में बड़ा बदलाव आएगा जिससे बाजार का कायाकल्प होगा और इलाके की पुरानी छवि भी बदलने की उम्मीद जताई जा रही है।

Last Updated- July 06, 2025 | 10:24 PM IST
Kamathipura

गंगूबाई काठियावाड़ी और तमाम दूसरी हिंदी फिल्मों की वजह से मुंबई का कामाठीपुरा इलाका बदनाम हो चुका है और उसे केवल देह व्यापार का अड्डा माना जाने लगा है। मगर हकीकत में यह कपड़ों, जरी-जरदोजी और स्टील आदि के व्यापार का बड़ा गढ़ है, जो अनदेखी और लचर बुनियादी ढांचे से परेशान है। मगर जल्दी ही कामाठीपुरा की तस्वीर बदलने वाली है क्योंकि करीब 39 एकड़ में फैले इस इलाके का पुनर्विकास किया जाएगा।

कामाठीपुरा रंगरेजी यानी डाई का बड़ा अड्डा है और स्टील की थोक दुकानों तथा गोदाम से भरा हुआ है। यहां जरदोजी के कारखानों और चमड़े का सामान बनाने वाली इकाइयों में हजारों लोग काम कर रहे हैं। कामाठीपुरा में 15 गलियां हैं और हर गली में करीब 200 दुकानें हैं। इस तरह करीब 3,000 दुकानें इस इलाके में हैं, जिनमें से हरेक का औसत सालाना कारोबार 12-15 करोड़ रुपये है। इस तरह यहां सालाना करीब 40,000 करोड़ रुपये का कारोबार होने का अनुमान है। जानकार कहते हैं कि बुनियादी सुविधाएं सुधर गईं तो साल भर के भीतर यहां का कारोबार 10 गुना हो जाएगा।

कामाठीपुरा में स्टील का पुश्तैनी थोक कारोबार कर रहे जयेश शाह कहते हैं कि मुंबई के बेहतरीन इलाके में बैठे होने के बाद भी दूर-दराज के इलाकों के व्यापारियों से कम कारोबार हो पाता है। मुनाफा कम होने के कारण उनके लिए दुकान चलाना मुश्किल है। पुराने ग्राहक मुश्किल से आते हैं और नए ग्राहक तो आते ही नहीं हैं क्योंकि उनके दिमाग में कामाठीपुरा की अलग ही तस्वीर है। फर्नीचर का कारखाना चलाने वाले रशीद भाई भी कहते हैं कि व्यापारी अपने परिजनों और रिश्तेदारों को भी दुकान या कारखाने का सही पता नहीं बताते क्योंकि कामाठीपुरा सुनते ही सबका नजरिया बदल जाता है। इसी वजह से कामाठीपुरा बाजार को दुकानदार केपी मार्केट कहते हैं।

बहरहाल पुनर्विकास परियोजना से इलाके के कारोबारियों की आस बहुत बंध गई है। ऑल इंडिया स्टेनलेस स्टील इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के जितेन्द्र शाह कहते हैं कि इस इलाके का विकास होना जरूरी है क्योंकि 100 साल से ज्यादा पुराना ढांचा पूरी तरह खस्ता हो चुका है। क्लस्टर पुनर्विकास हुआ तो यह कारोबारी गढ़ के साथ रियल एस्टेट का अड्डा भी बन जाएगा। उन्होंने कहा कि कारोबारी हाउसिंग सोसाइटी और व्यावसायिक सोसाइटी अलग-अलग बनाने की मांग कर रहे हैं ताकि कारखानों में कोई रुकावट नहीं आए।

चमकेगा रियल्टी बाजार भी

दक्षिण मुंबई सबसे महंगा इलाका माना जाता है। कामाठीपुरा से सटे ताड़देव और मुंबई सेंट्रल में फ्लैट की औसत कीमत 60,000 रुपये प्रति वर्ग फुट चल रही है। मगर कामाठीपुरा में कीमत बहुत कम है। यहां किराया भी 8-10 हजार रुपये चल रहा है, जबकि कुछ दूरी पर बसे इलाकों में एक बेडरूम वाले फ्लैट का किराया 50,000 रुपये से 60,000 रुपये महीना चल रहा है।

कामाठीपुरा की गली नंबर 9 का एक कारोबारी नाम नहीं छापने की शर्त पर कहता है कि बदनाम इलाका होने के कारण लोग अपने मकान-दुकान किराये पर देकर खुद बाहर रहते हैं। कामाठीपुरा में पुश्तैनी घर होने के बाद भी मुंबई से बाहर मीरा रोड में किराये 

पर मकान लेकर रहने वाली श्वेता सिंह कहती हैं कि सब खराब नहीं हैं, लेकिन इलाका बदनाम है। इस वजह से अच्छे स्कूलों में बच्चों का दाखिला तक नहीं हो पाता। लेकिन अब उन्हें उम्मीद है कि कुछ साल बाद वह अपने घर में रह पाएंगी।

रियल्टी कारोबारी श्रीकांत पाठक कहते हैं, ‘कामाठीपुरा की बिगड़ी छवि के कारण आसपास के इलाकों में भी प्रॉपर्टी के अच्छे दाम नहीं मिलते। फिर भी कामाठीपुरा में जगह खरीदना आसान नहीं क्योंकि कुछ लोगों ने इसे अपनी मुट्ठी में ले रखा है।’ मगर पाठक और दूसरे रियल एस्टेट डेवलपरों के मुताबिक इलाके का पुनर्विकास होने पर डेवलपरों को 5.67 लाख वर्ग मीटर इलाका मिलेगा, जिसमें 4500 के करीब नए फ्लैट बन सकते हैं। नाम बदला गया तो कामाठीपुरा में अभी कौड़ियों में बिक रहे मकानों की कीमत करीब 70,000 रुपये प्रति वर्ग फुट हो जाएगी।

इलाके के लोगों ने कामाठीपुरा विकास समिति बनाई है, जिसके मुख्य सलाहकार और इलाके के विधायक अमीन पटेल का दावा है कि यहां 60-70 वर्ग फुट के मकानों में रहने वालों को 500 वर्ग फुट का सभी सुविधाओं वाला घर मिलेगा। म्हाडा ने इसके लिए निविदा मंगाई हैं और बडे डेवलपर दिलचस्पी भी ले रहे हैं। समिति ने भी अपनी मांगें म्हाडा के सामने रखी हैं।

म्हाडा के अनुसार गली नंबर 1 से 15 तक करीब 943 उपकर वाली और 350 बिना उपकर की इमारतें हैं, जिनमें कुछ तो एक सदी से भी ज्यादा पुरानी हैं। साथ ही 14 धार्मिक स्थल और दो स्कूल भी हैं, जिनका पुनर्विकास होगा। इन गलियों में 100-150 वर्ग मीटर प्लॉट पर बनीं इमारतें हैं, जो अब खस्ताहाल हो गई हैं। सरकार 50 वर्ग मीटर तक के प्लॉट के बदले 500 वर्ग फुट का एक फ्लैट देगी। 51 से 100 वर्ग मीटर प्लॉट के लिए 500 वर्ग फुट के दो फ्लैट दिए जाएंगे और 101 से 150 वर्ग मीटर के प्लॉट के लिए 500 वर्ग फुट के तीन फ्लैट दिए जाएंगे । इसी तरह 151 से 200 वर्ग मीटर प्लॉट के लिए 500 वर्ग फुट के चार फ्लैट और 200 वर्ग मीटर से बड़े प्लॉट के लिए फ्लैट बढ़ते जाएंगे। 

कैसे बसा कामाठीपुरा

18वीं सदी में हैदराबाद के निजाम के इलाके से इमारतें बनाने के लिए तेलुगु भाषी कमाठी मजदूर मुंबई आए और दक्षिण मुंबई में दलदली जमीन पर बस गए। सरकार ने 1804 में जमीन के सुधारकर मजदूरों के लिए मकान बनाए और इलाके का नाम कामाठीपुरा पड़ गया। टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस की रिपोर्ट के मुताबिक कामाठीपुरा को 200 साल पहले बसाया गया था। यहां रहने वाले कमाठी मजदूरों ने उस दौर में बंबई में राजाबाई टावर, बंबई हाई कोर्ट, विक्टोरिया टर्मिनस (अब सीएसटी) और बीएमसी मुख्यालय का निर्माण किया था। मुंबई बंदरगाह और सैन्य ठिकाने का इलाका भी था। यहां प्रवासी मजदूर भी बड़ी संख्या में कामाठीपुरा आने लगे, जिनकी वजह से इलाके में देह व्यापार होने लगा। औपनिवेशिक काल में यूरोपीय महिलाएं भी यहां आकर यही काम करने लगीं। उनकी रिहायश की वजह से ही कामाठीपुरा के छोर पर कर्सटन शुक्ला जी स्ट्रीट को सफेद गली कहा जाता था। इसकी झलक 2022 में आई हिंदी फिल्म गंगूबाई काठियावाड़ी में भी दिखाई गई है।

बदनाम गलियों का मायावी बाजार

इस इलाके का चोर बाजार भी किसी मायावी बाजार से कम नहीं है। जब लोग गहरी नींद में सोते हैं तब यह बाजार गुलजार होता है। 1950 में आरंभ हुआ और कामाठीपुरा की डेढ़ गली में लगने वाला चोर बाजार तड़के 4 बजे शुरू हो जाता है और सुबह 8 बजे बंद हो जाता है। इस बाजार में आसपार के छोटे कारखानों से थोक में माल आता है और कम दाम पर बेच दिया जाता है। व्यापारी कुछ नामी कंपनियों को डिफेक्टिव माल भी यहां लाकर बेचते हैं। बाजार में 8,000 से 10,000 रुपये में बिक रहा इलेक्ट्रॉनिक गैजेट यहां 2,000 रुपये में भी मिल सकता है।

चोर बाजार में काम करने वाले अनीस का कहना है कि लोगों की सोच के उलट यहां चोरी का माल नहीं बिकता। इसे ग्रे मार्केट कहा जा सकता है क्योंकि यहां बिल वगैरह नहीं मिलता। हां, कुछ सामान चोरी का जरूर होता है। चोर बाजार में गैजेट्स के साथ ही कपड़े, फुटवियर और दूसरी तरह का सामान भी मिलता है। फुटपाथ पर लगने वाले इस बाजार का एक दिन का कारोबार 15 से 20 करोड़ रुपये का माना जाता है। पहले यह बाजार केवल शुक्रवार को लगता था मगर बाद में रविवार को भी लगने लगा। यहां मटन स्ट्रीट भी चोर बाजार के नाम से मशहूर है, जहां फर्नीचर, कपड़े, ब्रांडेड उत्पादों की नकल बेहद कम दाम में मिल जाती है।

First Published - July 6, 2025 | 10:24 PM IST

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