बारमती में अपने खेत में गन्ना कटाई के काम में व्यस्त युवराज पाटिल के चेहरे की मुस्कान बता रही है कि इस बार उन्हे कुछ ज्यादा फायदा होने वाला है। गन्ने की मोटाई और लंबाई दोनों पिछले साल की अपेक्षा ज्यादा है जबकि लागत पिछले साल की अपेक्षा कम लगी हुई है। दरअसल पाटिल ने इस बार पारंपरिक खेती की जगह आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया है। जिससे उपज में करीब 30 फीसदी की बढ़ोत्तरी नजर आ रही है।
मोबाइल में खेत की आ रही जानकारी दिखाते हुए पाटिल कहते हैं कि अब सब कुछ हमें पहले ही मालूम हो जाता है। खेत के एक कोने में लगे एक छोटे से उपकरण की ओर इशारा करते हुए बताते हैं कि यह उनका साथी है जो चुपचाप हवा की गति, बारिश, तापमान, नमी और मिट्टी के स्वास्थ्य को मापता है और वैज्ञानिकों को बताता है और वहां से हमारे मोबाइल में जानकारी आती है। जिसका हम पालन कर रहे हैं। हमारी फसल अब पहले से बेहतर दिख रही है, उपज बेहतर हुई है।
दरअसल राज्य में पारंपरिक खेती की जगह आधुनिक एआई आधारित खेती का दौर शुरू हो गया है। खेतों में हल चलाने और बीज बोने की परंपरा अब तकनीक के नए रंग में ढल रही है। बीते कुछ सालों में जलवायु परिवर्तन की वजह से मौसम का रुख बदला है। इससे न सिर्फ खेती की पैदावार पर असर पड़ा है, किसानों के लिए कीटों और बीमारियों का खतरा भी बढ़ गया है। इन सबसे निपटने के लिए महाराष्ट्र के किसानों ने कृषि में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का इस्तेमाल शुरू कर दिया है। एआई उपकरण लगाने के लिए एक किसान को शुरुआत में करीब 25,000 रुपये की जरूरत होती है।
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महाराष्ट्र स्टेट को-ऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज फेडरेशन लिमिटेड के निदेशक जयप्रकाश दांडेगांवकर ने कहा कि माइक्रोसॉफ्ट पहले से ही गन्ने की खेती के लिए एआई के इस्तेमाल पर लंबे समय से काम कर रहा है। गन्ने के उत्पादन में 30 फीसदी की वृद्धि और इसकी खेती में पानी के इस्तेमाल को आधा करने का भरोसा माइक्रोसॉफ्ट की तरफ से दिया जा रहा है। कम बारिश के कारण राज्य में प्रति एकड़ उत्पादन घटकर 73 टन रह गया है। लेकिन उन्हें पूरा भरोसा है कि एआई का उपयोग निश्चित तौर पर आने वाले समय में उत्पादन कम से कम 150 टन प्रति एकड़ तक पहुंचने में मदद कर सकता है।
भारत में पहली बार बारामती के कृषि विकास ट्रस्ट (एडीटी) ने गन्ने की खेती को और अधिक उत्पादक बनाने के लिए एआई का उपयोग शुरू किया। मार्च 2024 से 1,000 किसानों के लिए यह प्रयोग किया गया, यह परियोजना महाराष्ट्र के 50,000 किसानों के खेतों पर स्थापित करने की राह पर है। खेती में एआई के उपयोग को सरकार प्रोत्साहित कर रही है।
हाल ही में महाराष्ट्र के वित्त मंत्री अजित पवार ने घोषणा की कि वसंतदादा शुगर इंस्टीट्यूट ने गन्ना खेती में एआई अपनाने वाले 5,000 किसानों के लिए सब्सिडी दोगुनी कर दी है। यह सब्सिडी 2025-26 पेराई सीजन के लिए 9,250 रुपये प्रति हेक्टेयर से बढ़ाकर 18,250 रुपये प्रति हेक्टेयर कर दी गई है। इंस्टीट्यूट के एक सदस्य का कहना है कि अगर किसानों की संख्या 5,000 से अधिक हो जाती है, तो हम राज्य सरकार से मदद मांगेंगे। एआई आधारित खेती योजना पिछले साल शुरू की गई थी और अब तक 847 किसान इसके लिए पंजीकरण करा चुके हैं।
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महाराष्ट्र सरकार ने किसानों की भलाई और खेती को आधुनिक बनाने के लिए महाएग्री-एआई नीति 2025-2029 की शुरुआत की है। यह भारत में अपनी तरह की पहली ऐसी नीति है जिसे किसी राज्य ने खास तौर पर खेती में एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) का इस्तेमाल बढ़ाने के लिए बनाया है। इसके लिए सरकार ने 500 करोड़ रुपये का बजट बनाया है। इस नीति का मुख्य लक्ष्य खेती के पुराने तरीकों को बदलकर उन्हें स्मार्ट और डिजिटल बनाना है, ताकि किसानों का उत्पादन बढ़े और उनकी कमाई भी बढ़े। महाएग्री – एआई नीति महाराष्ट्र की खेती को डिजिटल युग में ले जाने का एक बड़ा कदम है, जिसका सीधा फायदा किसानों को मिलने वाला है।
किसानों को उनके खेत के पास के इलाके का मौसम पूर्वानुमान मिलेगा, जिससे वे सही समय पर बुआई और कटाई कर सकेंगे। एआई कैमरे और ड्रोन खेत की निगरानी करेंगे। अगर फसल में कोई बीमारी या कीट लगने वाला होगा, तो तुरंत अलर्ट भेज देगा। एआई मिट्टी की जांच करके बताएगा कि फसल को कितना पानी और कितनी खाद चाहिए। इससे खर्च कम होगा और जमीन भी खराब नहीं होगी। इसके साथ ही किसान अपनी फसल को सबसे अच्छे दाम पर कहां बेच सकते हैं, इसकी जानकारी एआई डैशबोर्ड पर मिलेगी।
किसानों को उनकी अपनी स्थानीय भाषा में एआई उपकरण इस्तेमाल करने की ट्रेनिंग और फील्ड डेमो दिए जाएंगे। यह नीति कृषि से जुड़े नए स्टार्टअप्स को सपोर्ट करेगी। एआई और एग्रीटेक इनोवेशन सेंटर में वैज्ञानिक और विशेषज्ञ मिलकर खेती की समस्याओं का हल निकालेंगे।
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खेती में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का उपयोग एक महत्वपूर्ण बदलाव ला रहा है, जिससे कृषि अधिक वैज्ञानिक, कुशल और लाभदायक बन रही है। यह किसानों को डेटा-आधारित निर्णय लेने में मदद करता है, जिससे उत्पादकता और स्थिरता बढ़ती है। पुणे, सतारा, सांगली, सोलापुर और कोल्हापुर जैसे जिले गन्ने की खेती में एआई का इस्तेमाल करना शुरू किये तो राज्य के दूसरे हिस्सों में भी इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है।
जनवरी 2024 में, एडीटी ने गन्ना, टमाटर, भिंडी सहित कई फसलों के लिए एक एआई प्रोजेक्ट चलाया जिसका नाम फार्म ऑफ द फ्यूचर रखा गया। इस प्रोजेक्ट में गन्ने के टेस्ट प्लॉट में भारी और रसदार गन्ना उगाया जा रहा है, जो सामान्य फसल की तुलना में 30-40 फीसदी ज्यादा वजनदार और 20 फीसदी ज्यादा शुगर युक्त होता है। साथ ही पानी और उर्वरक की खपत भी कम होती है, और फसल जल्दी तैयार हो जाती है। इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे डॉ. योगेश फटके ने बताया कि हम मिट्टी के पीएच, पानी के स्तर, पोषक तत्वों और मौसम से जुड़ा डाटा पेश करते हैं। इससे खेती के फैसले बेहतर होते हैं।
महाराष्ट्र सरकार ने अपने चार दशक पुराने कृषि विभाग के प्रतीक चिन्ह को बदल दिया। अब हल चलाने वाले किसान की जगह आधुनिक मशीनरी हल दिखने लगा है। यह बदलाव राज्य में पारंपरिक खेती से हटकर आधुनिक और टिकाऊ खेती की ओर बढ़ते कदम को दर्शाता है। इस नए प्रतीक चिन्ह के साथ एक नया नारा भी जोड़ा गया है, ‘शाश्वत शेती, समृद्ध शेतकरी’ (टिकाऊ खेती, समृद्ध किसान )। अब कृषि विभाग के सभी आधिकारिक कार्यों में इस नए लोगो और स्लोगन का उपयोग किया जाएगा। पुराना प्रतीक चिन्ह और नारा 1987 से इस्तेमाल हो रहा था।
कृषि मंत्री दत्तात्रेय भरणे ने कहा कि महाराष्ट्र की कृषि परंपरा से जुड़ी हुई है, लेकिन लगातार नई दिशाओं में आगे बढ़ रही है। कृषि विभाग का यह नया प्रतीक चिन्ह केवल एक प्रतीक नहीं है, बल्कि महाराष्ट्र की कृषि का आधुनिक चेहरा है। यह प्रतीक चिन्ह किसानों की शक्ति, तकनीक और पर्यावरण के अनुकूल विकास का संदेश देता है। यह प्रतीक चिन्ह और नारा राज्य के हर किसान की प्रगति का प्रतीक बनेगा। यह परिवर्तन एक नए युग में नए कृषि विचारों की शुरुआत है।
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दशकों पुराने कृषि विभाग के प्रतीक चिन्ह को बदला गया, पारंपरिक खेती की जगह आधुनिक एआई आधारित खेती का दौर शुरू हो गया है। लेकिन राज्य में किसानों की दशा चिंताजनक बनी हुई है। किसान आत्महत्या के मामले में महाराष्ट्र देश में सबसे ऊपर है। इस स्थिति को बदलने के लिए ही राज्य में डिजिटल खेती शुरू की गई गई ताकि किसानों को घाटा कम और फायदा ज्यादा हो सके। महाराष्ट्र सरकार के विभिन्न स्रोतों और रिपोर्टों से प्राप्त जानकारी के अनुसार 2001 से जनवरी 2025 तक महाराष्ट्र में कुल 39,825 किसानों ने आत्महत्या की। इनमें से 22,193 मामले कृषि संकट से संबंधित पाए गए। जनवरी से अक्टूबर 2025 के दौरान मराठवाड़ा क्षेत्र में 899 किसानों ने आत्महत्या की। 2024 में 2,635 और 2023 में 2,851 किसानों ने मौत को गले लगा लिया। ये आंकड़े कृषि क्षेत्र के गहरे संकट को दर्शाते हैं, विशेष रूप से विदर्भ और मराठवाड़ा क्षेत्रों में।
मराठवाड़ा में किसानों की आत्महत्या के मामले चौंका रहे हैं। आधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी से अक्टूबर 2025 तक 899 किसानों ने अपनी जान दी है। जिसका अर्थ है कि औसतन हर दिन तीन किसान मौत को गले लगा रहे हैं। इनमें से 537 किसानों ने छह महीनों में आत्महत्या की, जब बाढ़ से उनकी फसलों को भारी नुकसान पहुंचा। मार्च, जुलाई और अक्टूबर सबसे घातक महीने रहे। जिनमें क्रमशः 110, 109 और 109 आत्महत्याएं हुईं, जबकि जनवरी (88), अप्रैल (88), मई (78), जून (85), अगस्त (76) और फरवरी (75) में भी लगातार मौतें दर्ज की गई। सबसे ज्यादा 200 आत्महत्याएं बीड में दर्ज हुई हैं। इसके बाद छत्रपति संभाजीनगर में 179, नांदेड़ में 145 और धाराशिव में 115 मामले सामने आए हैं। परभणी में 90, लातूर में 67, जालना में 58 और हिंगोली में 53 किसानों ने आत्महत्या की है।
राज्य सरकार ने मराठवाड़ा में प्रभावित किसानों के लिए मुआवजे के तौर पर लगभग 32,000 करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की है। इस क्षेत्र में नांदेड़, परभणी, हिंगोली, लातूर, बीड और धाराशिव जिले आते हैं। किसान नेता और पूर्व सांसद राजू शेट्टी कहते हैं कि बेमौसम बारिश के बाद आई बाढ़ और लंबे मॉनसून ने बागों और फसलों को बुरी तरह नुकसान पहुंचाया है। इस घटनाक्रम ने निश्चित रूप से मराठवाड़ा के किसानों का मनोबल गिराया है। किसानों को फसलों के नुकसान के लिए बहुत कम मुआवजा मिला। कृषि राज्य मंत्री आशीष जायसवाल ने कहा कि सरकार इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार कर रही है और योजनाओं व प्रोत्साहनों पर खर्च बढ़ाकर एक लाख करोड़ रुपये कर दिया गया है।
कर्ज का बोझ, फसलों की बर्बादी, आय में कमी, न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम भाव और अतिवृष्टि जैसे तमाम कारण किसानों को आर्थिक संकट के गर्त में फंसा मौत को गले लगाने पर मजबूर कर रहे हैं। महाराष्ट्र में किसान आत्महत्या के आंकड़े राज्य की समृद्ध विरासत और उन्नत अर्थव्यवस्था में एक कलंकित धब्बा है। उम्मीद की जा रही है कि आधुनिक तकनीक एआई का कृषि में उपयोग राज्य के माथे में लगा यह कलंक धोने में सफल होगा।