पिछले पखवाड़े दो वरिष्ठ अधिवक्ताओं प्रताप वेणुगोपाल और अरविंद दातार को भेजे गए प्रवर्तन निदेशालय के समन ने कानूनी जगत में गहरा असंतोष पैदा कर दिया है। हालांकि दोनों समन अब वापस ले लिए गए हैं। लेकिन कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि भले ही ईडी इस तरह के नोटिस भेज सकता है, लेकिन ऐसा दुर्लभतम मामलों में ही किया जाना चाहिए।
Also Read: भारत के डेरिवेटिव बाजार में विदेशी ट्रेडिंग फर्मों की दिलचस्पी बढ़ी, नौकरियों में तेजी
वरिष्ठ अधिवक्ता संजय घोष ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘आमतौर पर और आदर्श रूप से जब तक ईडी के पास किसी आपराधिक कानून के उल्लंघन के मामले में वकील की संलिप्तता के संबंध में स्पष्ट और अकाट्य सबूत न हों, तब तक वकील को आदर्श रूप से किसी भी प्रकार की जांच के दायरे में नहीं लेना चाहिए।’ सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसो सिएशन (एससीएओआरए) ने शुक्रवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर ईडी की कार्रवाई की निंदा की और वेणुगोपाल को समन जारी करने के मामले में स्वत: संज्ञान लेने की मांग की। उसने कहा कि ईडी की कार्रवाई से ‘कानूनी पेशे की स्वतंत्रता’ और ‘वकील-मुवक्किल विशेषाधिकार के मूलभूत सिद्धांत’ के लिए गंभीर नतीजे होते हैं।
इस महीने की शुरुआत में ईडी ने वरिष्ठ अधिवक्ता दातार को एक नोटिस भेजा था जिसमें उनसे रेलिगेयर एंटरप्राइजेज की पूर्व अध्यक्ष रश्मि सलूजा को जारी ईसॉप पर केयर हेल्थ इंश्योरेंस को दी गई कानूनी सलाह के बारे में जांच एजेंसी के सामने पेश होने के लिए कहा गया था। वकीलों के विरोध और सुप्रीम कोर्ट के समक्ष प्रतिनिधित्व के बाद यह नोटिस वापस ले लिया गया।
18 जून को जांच एजेंसी ने उसी मुद्दे पर दूसरा समन जारी किया जो इस बार वेणुगोपाल को भेजा गया था। उनसे भी ईडी ने केयर हेल्थ और उनके बीच हुए संचार से संबंधित सभी रिकॉर्ड मांगे थे। समन में उनसे भुगतान का भी ब्योरा मांगा गया था।