मई में भारत-पाकिस्तान के बीच चार दिन तक चले सशस्त्र संघर्ष को चीन ने अपने विभिन्न हथियार प्रणालियों के परीक्षण के लिए एक ‘प्रयोगशाला’ के तौर पर इस्तेमाल किया और ‘दूसरे के कंधे पर बंदूक रखकर’ दुश्मन को मारने की पुरानी सैन्य रणनीति के अनुरूप पाकिस्तान को हरसंभव सहायता प्रदान की। उप सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर. सिंह ने शुक्रवार को यह बात कही। वरिष्ठ सैन्य अधिकारी ने कहा कि पाकिस्तान जहां सिर्फ सामने दिख रहा एक चेहरा भर था, वहीं चीन अपने सदाबहार मित्र को हरसंभव सहायता दे रहा था और तुर्किये भी पाकिस्तान को सैन्य साजो-सामान की आपूर्ति कर प्रमुख भूमिका निभा रहा था। उन्होंने कहा कि 7 से 10 मई के बीच हुए संघर्ष के दौरान भारत वास्तव में कम से कम तीन शत्रुओं से एक साथ लड़ रहा था।
उद्योग चैंबर ‘फिक्की’ द्वारा आयोजित ‘नए दौर की सैन्य प्रौद्योगिकी’ पर एक संगोष्ठी में अपने संबोधन में लेफ्टिनेंट जनरल सिंह ने सुझाव दिया कि चीन अपने उपग्रहों का उपयोग भारतीय सैन्य तैनाती की निगरानी के लिए कर रहा था, क्योंकि पाकिस्तानी सेना को डीजीएमओ (सैन्य अभियान महानिदेशक) स्तर की फोन वार्ता के दौरान इसके बारे में सीधी जानकारी मिल रही थी। लेफ्टिनेंट जनरल सिंह ने चीन की 36 चालों की प्राचीन सैन्य रणनीति और दूसरे के कंधे पर बंदूक रखकर दुश्मन को मारने की रणनीति का उल्लेख करते हुए इस बात पर जोर दिया कि चीन ने भारत को नुकसान पहुंचाने के लिए पाकिस्तान को हरसंभव समर्थन दिया। ‘दूसरे के कंधे पर बंदूक रखकर’ दुश्मन को मारने का मतलब है कि दुश्मन को पराजित करने के लिए सीधे शामिल हुए बिना किसी तीसरे पक्ष का इस्तेमाल करना अर्थात चीन ने पाकिस्तान को भारत के खिलाफ इस्तेमाल किया।
भारतीय सेना के क्षमता विकास और संधारण संबंधी कार्य देखने वाले उप सेना प्रमुख ने कहा कि पाकिस्तान को चीन का समर्थन आश्चर्यजनक नहीं है। उन्होंने कहा, ‘भारत के खिलाफ पाकिस्तान केवल सामने का चेहरा था, जबकि असली समर्थन चीन से मिल रहा था। हमें इसमें कोई हैरानी नहीं हुई, क्योंकि अगर आप पिछले पांच वर्षों के आंकड़े देखें, तो पता चलता है कि पाकिस्तान को मिलने वाले सैन्य उपकरणों में से 81 प्रतिशत चीन से आ रहे हैं।’
लेफ्टिनेंट जनरल सिंह ने कहा, ‘चीन उत्तरी सीमा पर खुद सीधे टकराव में पड़ने के बजाय भारत को नुकसान पहुंचाने के लिए पड़ोसी देश (पाकिस्तान) का इस्तेमाल करना ज्यादा पसंद करता है।’ लेफ्टिनेंट जनरल सिंह ने कहा कि तुर्किये ने भी पाकिस्तान को सहायता प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने कहा, ‘हमने युद्ध के समय और युद्ध क्षेत्र में कई ड्रोन आते और उतरते देखे, साथ ही वहां मौजूद व्यक्तियों की गतिविधियां भी देखी गईं।’ सैन्य अधिकारी ने इस बात पर जोर दिया कि भारत को इस संघर्ष से सबक सीखने की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘अगला महत्त्वपूर्ण सबक सी4आईएसआर (कमांड, कंट्रोल, कम्यूनिकेशन, कंप्यूटर, इंटेलिजेंस, सर्विलांस और रीकानिसन्स) और नागरिक-सैन्य संलयन का महत्त्व है। जहां तक इस क्षेत्र का सवाल है, अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।’
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लेफ्टि. जनरल सिंह ने कहा, ‘जब डीजीएमओ स्तर की वार्ता चल रही थी, तो पाकिस्तान वास्तव में यह उल्लेख कर रहा था कि हम जानते हैं कि आपका अमुक ‘वेक्टर’ (मिसाइल प्रणाली) सक्रिय है और कार्रवाई के लिए तैयार है और हम आपसे अनुरोध करेंगे कि शायद आप इसे वापस ले लें। इसलिए उन्हें चीन से लाइव इनपुट मिल रहे थे। यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां हमें वास्तव में तेजी से आगे बढ़ने और उचित कार्रवाई करने की आवश्यकता है।’उप सेना प्रमुख ने कहा कि भारतीय नेतृत्व का रणनीतिक संदेश स्पष्ट था।
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान और उसके कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में लक्ष्यों की योजना और चयन बहुत सारे आंकड़ों पर आधारित था। भारत ने 22 अप्रैल के पहलगाम आतंकवादी हमले के जवाब में पाकिस्तान और पीओके में आतंकवादी बुनियादी ढांचे को निशाना बनाते हुए सात मई को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ शुरू किया था। इन हमलों के कारण चार दिनों तक भीषण झड़पें हुईं, जो 10 मई को सैन्य कार्रवाई रोकने पर सहमति के साथ समाप्त हुईं।