बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखें सामने आ गई हैं। बिहार में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान 6 और 11 नवंबर को दो चरणों में होगा, जबकि परिणाम 14 नवंबर को आएंगे। जहां चुनावी वादे, जातिगत समीकरण और मतदाता सूची की विशेष जांच (SIR) सुर्खियों में हैं, वहीं बिहार की खेती में हो रहा शांत बदलाव कम ही चर्चा में है।
बिहार में करीब 75 फीसदी लोग खेती पर निर्भर हैं। यहां खेती की तस्वीर बदल रही है। फसल की पैदावार बढ़ रही है, अलग-अलग तरह की फसलें उगाई जा रही हैं और महिलाएं खेती से जुड़े उद्यमी बन रही हैं। किसान अब मौसम के अनुकूल तकनीक, मशीनों और जैविक खेती को अपना रहे हैं।
2025 के चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ बिहार की खेती के इस बदलाव पर फिर से ध्यान देना जरूरी है। आइए देखते हैं कि पिछले कुछ सालों में बिहार की खेती में क्या बदला है।
खेती और उससे जुड़े काम बिहार की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। ये 75 फीसदी से ज्यादा लोगों को रोजगार देते हैं और राज्य के जीडीपी में बड़ा योगदान देते हैं। बिहार की उपजाऊ जमीन, पानी की उपलब्धता और अनुकूल मौसम के चलते यहां चावल, गेहूं, मक्का, दालें, गन्ना, जूट और तिलहन जैसी फसलें उगती हैं। इसके अलावा, बिहार आम, मखाना और लीची जैसे बागवानी उत्पादों में भी अग्रणी है।
बिहार आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 के मुताबिक, खेती, जंगल और मछली पालन का क्षेत्र हर साल राज्य के कुल मूल्यवर्धन (Value Addition) में लगभग पांचवां हिस्सा जोड़ता है। इस क्षेत्र की अहमियत को देखते हुए राज्य सरकार इसका समर्थन करने के लिए भारी संसाधन खर्च करती है। सर्वे के अनुसार, 2019-20 में इस क्षेत्र में 4,066 करोड़ रुपये खर्च हुए थे, जो 2023-24 में बढ़कर 5,171 करोड़ रुपये हो गए।
पिछले एक दशक में बिहार ने खेती की पैदावार बढ़ाने के लिए जमीनी स्तर पर कई कदम उठाए हैं। 2000 के दशक के अंत से, उत्तरी और मध्य बिहार में चावल और गेहूं की गहन खेती प्रणाली (SRI और SWI) को बढ़ावा दिया गया है, जिससे बिना अतिरिक्त रासायनिक खाद या सिंचाई के पैदावार बढ़ी है। साथ ही, मौसम के अनुकूल फसलें और महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों को बढ़ावा देकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत किया गया है।
यहां कुछ प्रमुख कदम हैं जो सरकार ने खेती को बढ़ावा देने के लिए उठाए:
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केंद्र और राज्य सरकारों के समन्वित प्रयासों से बिहार का कृषि क्षेत्र लगातार बढ़ रहा है। इससे किसानों की आय बढ़ी, बाजार तक पहुंच सुधरी और बड़ी आबादी को टिकाऊ आजीविका मिली।
इन सभी उपलब्धियों के बावजूद, बिहार के कृषि क्षेत्र में कुछ ढांचागत समस्याएं बनी हुई हैं। सरकारी खरीद कमजोर है और कोल्ड स्टोरेज की कमी के कारण सब्जियों और फलों का नुकसान होता है। ज्यादातर उपज अभी भी अनियमित मंडियों और बिचौलियों के जरिए बिकती है, जिससे किसानों को सही दाम नहीं मिलता। बेहतर ढांचे, बाजार पहुंच और वित्तीय समावेशन के बिना सिर्फ ज्यादा उत्पादन से स्थिर आय की गारंटी नहीं मिल सकती।
नवंबर 2025 में होने वाले चुनाव के साथ सभी प्रमुख पार्टियां खेती को और बढ़ावा देने के लिए कई वादे कर रही हैं। उनकी नई सोच है कि अगर बिहार में उद्योग नहीं आ सकते, तो खेती को इस कमी को पूरा करना होगा।
बिहार की खेती के पुनर्जनन का अर्थव्यवस्था पर असर साफ दिखता है, लेकिन अभी बहुत कुछ करना बाकी है। नीतियों पर लगातार ध्यान, बाजार के साथ बेहतर एकीकरण और जमीनी स्तर पर नवाचार के समर्थन से बिहार की खेती की यह चुपके से चल रही कहानी देश की सबसे प्रभावशाली विकास गाथाओं में से एक बन सकती है।