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बैंकिंग कंपनी कानून में संशोधन की तैयारी, PSBs को दावा न किए गए शेयरों को IEPF में ट्रांसफर करने की मिल सकती है अनुमति

IEPF में हस्तांतरित बिना दावे वाले लाभांशों और शेयरों पर निवेशक आवश्यक दस्तावेज जमा करके और सत्यापन प्रक्रिया पूरी करके आसानी से दावा कर सकते हैं।

Last Updated- April 07, 2024 | 10:58 PM IST
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वित्त मंत्रालय बैंकिंग कंपनीज (अंडरटेकिंग अधिग्रहण एवं हस्तांतरण) अधिनियम, 1970 में संशोधन पर विचार कर रहा है। इस अधिनियम से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक संचालित होते हैं। संशोधन के तहत सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को निवेशक शिक्षा सुरक्षा कोष (आईईपीएफ) में बिना दावे वाले शेयरों के हस्तांतरण की अनुमति देने के लिए उपयुक्त प्रावधान किए जाएंगे। यह उन शेयरों के मामले में होगा जिनके लाभांश पर अगर सात साल तक किसी निवेशक ने दावा नहीं किया तो उसे निवेशक शिक्षा सुरक्षा कोष में डाल दिया जाएगा।

मामले के जानकार एक व्यक्ति ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर बताया कि बैंकिंग कंपनीज (अंडरटेकिंग का अधिग्रहण एवं हस्तांतरण) अधिनियम, 1970 की धारा 10बी के तहत बिना दावे वाले लाभांश को निवेशक कोष को हस्तांतरित करने की अनुमति है मगर इसमें बिना दावे वाले शेयरों के हस्तांतरण के प्रावधान नहीं है।

ऐसे में नई सरकार शेयरों के हस्तांतरण की अनुमति देने के लिए अधिनियम में संशोधन कर सकती है। इस बारे में जानकारी के लिए वित्त मंत्रालय को ईमेल भेजा गया था मगर खबर लिखे जाने तक कोई जवाब नहीं आया।

आईईपीएफ का गठन निवेशकों में जागरूकता बढ़ाने और उनके हितों की सुरक्षा के लिए किया गया था। आईईपीएफ में हस्तांतरित बिना दावे वाले लाभांशों और शेयरों पर निवेशक आवश्यक दस्तावेज जमा करके और सत्यापन प्रक्रिया पूरी करके आसानी से दावा कर सकते हैं।

आईईपीएफ की सालाना रिपोर्ट के अनुसार कंपनियों ने 2021-22 में 446 करोड़ रुपये आईईपीएफ में हस्तांतरित किए थे जबकि 2021-22 के अंत तक आईईपीएफ के पास 5,262 करोड़ रुपये जमा थे।

कंपनी कानून के दायरे में आने वाले निजी बैंकों सहित निजी कंपनियां पहले से ही बिना दावे वाले लाभांश और शेयरों को आईईपीएफ को हस्तांतरित करती रही हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि प्रस्तावित संशोधन का मुख्य उद्देश्य बैंकिंग कंपनीज (अंडरटेकिंग का अधिग्रहण और हस्तांतरण) अधिनियम, 1980 को कंपनी कानून, 2013 के अनुरूप बनाना है।

केयर रेटिंग्स में वरिष्ठ निदेशक संजय अग्रवाल ने कहा कि सरकार और नियामक विभिन्न विषयों और कानूनों में अलग-अलग नियमों में सामंजस्य बनाकर व्यापार को आसान बनाने के लिए काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘सरकार और विभिन्न नियामकों के ये उपाय कारोबार को सुगम बनाने और अनुपालन बोझ को कम करने का काम करते हैं।’

इकनॉमिक लॉ प्रैक्टिक्स में वरिष्ठ वकील मुकेश चंद ने कहा कि प्रस्तावित संशोधन कमियों को दूर करने और वित्तीय संस्थानों को संचालित करने वाले विभिन्न कानूनों के नियमन में स्थायित्व सुनिश्चित करने का प्रयास है।

उन्होंने कहा, ‘बिना दावे वाले लाभांश और शेयरों के हस्तांतरण को अनिवार्य करने के संशोधन प्रस्ताव से बगैर दावे वाली रकम के प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा मिलेगा। इससे बैंकिंग प्रणाली में निवेशकों का विश्वास और बढ़ेगा।’ बिना दावे वाले लाभांश और शेयरों के हस्तांतरण के लिए 7 साल की अवधि तय करना स्थापित कानून के सिद्धांतों के अनुरूप है।

First Published - April 7, 2024 | 10:45 PM IST

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