सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक सरकार से लाभांश नहीं चुकाने की इजाजत मांग सकते हैं। उनका कहना है कि कर्ज में हुए नुकसान के लिए इंतजाम करने का अपेक्षित घाटा मॉडल 1 अप्रैल, 2025 से लागू हो सकता है और लाभांश नहीं देने पर उन्हें पूंजी जमा करने में मदद मिलेगी।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने कर्ज में होने वाले घाटे के लिए इंतजाम या प्रावधान करने हेतु अपेक्षित घाटे पर आधारित नजरिये के बारे में परिचर्चा पत्र जारी करने का ऐलान इसी साल जनवरी में किया था। पिछले हफ्ते ही सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से कहा था कि वे इस तरह के इंतजाम से अपनी पूंजी पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में विस्तृत रिपोर्ट जमा करें।
फिलहाल बैंक उस घाटे के लिए इंतजाम करते हैं, जो हो चुका होता है। यदि किसी खाते में 90 दिन से ज्यादा की देनदारी होती है तो वे पूंजी अलग से रख देते हैं, जिसे प्रावधान या प्रॉविजनिंग कहते हैं। अपेक्षित नुकसान के मॉडल में अगर किसी मानक खाते में भी दिक्कत के संकेत नजर आते हैं तो बैंकों को उसके लिए प्रावधान करना होगा। इसलिए बैंकों को ज्यादा पूंजी रखनी पड़ेगी।
सार्वजनिक क्षेत्र के एक बैंक के शीर्ष अधिकारी ने कहा, ‘सरकार जानना चाहती है कि नियामक जब अपेक्षित नुकसान मॉडल लागू करेगा तो बैंकों की पूंजी की स्थिति पर क्या प्रभाव पड़ेगा।’
परिचर्चा पत्र में आरबीआई ने कहा कि व्यवस्था लागू करने से पहले बैंकों को एक साल दिया जाएगा ताकि वे खुद को तैयार कर सकें। बैंकों को प्रावधान संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए 5 साल का समय दिए जाने पर भी विचार किया जा सकता है।
बैंकरों का कहना है कि कुछ बैंकों के लिए नए मॉडल पर अमल करना आसान हो सकता है मगर कुछ बैंकों की पूंजी बहुत कम हो सकती है। सार्वजनिक क्षेत्र के बड़े बैंकों को इसके लिए करीब 6,000 करोड़ रुपये की पूंजी अलग रखनी होगी।
बैंक यह भी चाहते हैं कि सरकार नए नियम लागू होने से पहले सरकार उन्हें लाभांश नहीं चुकाने की छूट प्रदान करे ताकि उनके पास पर्याप्त पूंजी जमा हो सके।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने वित्त वर्ष 2018, 2019 और 2020 में लाभांश नहीं चुकाया था। उसके बाद के दो सालों में उन्होंने लाभांश दिया क्योंकि गैर निष्पादित संपत्तियां (एनपीए) घटने के कारण वे मुनाफे में आ गए थे।
लंबे समय तक एनपीए झेलने के बाद पिछले दो साल में बैंको की लाभदेयता बढ़ी है। मार्च 2018 में भारतीय बैंकों का सकल एनपीए बढ़कर 11.5 फीसदी हो गया था। मगर उसके बाद एनपीए में लगातार कमी दर्ज की गई है। आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार बैंकों का सकल एनपीए सितंबर 2022 में 5 फीसदी था।
क्रिसिल रेटिंग्स के वरिष्ठ निदेशक एवं उप मुख्य रेटिंग अधिकारी कृष्णन सीतारमण ने कहा, ‘पिछले पांच साल देखें तो भारतीय बैंकों के बहीखाते प्रस्तावित ईसीएल व्यवस्था के लिए आवश्यक प्रावधान में किसी भी वृद्धि से निपटने के लिए शायद सबसे मजबूत स्थिति में हैं।’
सीतारमण ने कहा कि बैंकों का प्रावधान कवरेज अनुपात फिलहाल करीब 75 फीसदी है जो पिछले 25 वर्षों का सर्वाधिक आंकड़ा है। उन्होंने कहा कि लाभप्रदता बढ़ने और फंसे ऋण में कमी आने के कारण नए प्रावधान लागू करने का यह एकदम सही समय है।
परिचर्चा पत्र पर राय 28 फरवरी तक मांगी गई थी। नियामक अब दिशानिर्देश का मसौदा जारी कर सकता है, जिसके लिए लोगों से राय मांगी जाएगी। उसके बाद अगले वित्त वर्ष में अंतिम दिशानिर्देश जारी किए जाएंगे।