बीते साल 23 जून को विपक्षी नेताओं के साथ करीब चार घंटे बैठक करने के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि 17 दलों ने एकजुट होकर लोक सभा चुनाव लड़ने का फैसला किया है। बाद में उस बैठक में इंडियन नैशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस (इंडिया) का गठन किया गया।
मगर नीतीश ही वह पहले शख्स थे जिन्होंने इस गठबंधन से सबसे पहले नाता तोड़ा। कहा गया कि कांग्रेस द्वारा नीतीश को दरकिनार किए जाने पर उन्होंने यह निर्णय लिया था। बाद में नीतीश भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में शामिल हो गए और अब उनके पास केंद्र में सत्ता की चाबी है। पाला बदलने के लिए पहचाने जाने वाले नीतीश को राजग हल्के में नहीं ले सकता है।
मंगलवार को आए लोक सभा चुनाव के नतीजों में बिहार की 16 सीटों पर लड़ने वाली जनता दल यूनाइटेड (जदयू) 13 सीटों पर आगे थी, जबकि 17 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने वाली भाजपा सिर्फ 12 सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकी। साथ ही नीतीश कुमार के लंबे समय तक राजनीतिक साथी और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के प्रमुख जीतन राम मांझी भी पहली बार गया लोक सभा सीट से जीतकर संसद पहुंच गए।
मांझी भी नीतीश के साथ ही पाला बदलने के लिए मशहूर हैं। मगर इस बार जदयू नेताओं का कहना है कि नीतीश कुमार अबकी पाला नहीं बदलेंगे। मंगलवार को टीवी चैनलों पर पार्टी के प्रवक्ता केसी त्यागी को यह कहते हुए सुना जा रहा था, ‘नीतीश कुमार के नेतृत्व में जदयू राजग का ही समर्थन करेगा।’
फिलवक्त जदयू ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर नीतीश कुमार का एक वीडियो साझा कर लिखा है, ‘न्याय के साझा विकास का संकल्प हो रहा पूरा।’ कांग्रेस ने इस बार अपने घोषणा पत्र को ‘न्यायपत्र’ कहा है।
सोशल मीडिया की यह पोस्ट ऐसे वक्त आई है जब कहा जा रहा है कि इंडिया गठबंधन के प्रमुख नेता शरद पवार ने नीतीश और तेलुगू देशम पार्टी के चंद्रबाबू नायडू से फोन पर बातचीत की है। मगर पवार ने एक संवाददाता सम्मेलन में इन खबरों को सिरे से नकार दिया। जदयू के इस प्रदर्शन का सीधा असर प्रदेश की राजनीति पर देखने को मिल सकता है क्योंकि बिहार विधान सभा में सबसे बड़ी पार्टी भाजपा है (साल 2020 में पार्टी ने 74 सीटें जीती थीं)। अब उसे अगले चुनाव में नीतीश के लिए कुछ सीटें कुर्बान करनी पड़ सकती है और अगले विधान सभा चुनावों तक नीतीश ही बिहार के मुख्यमंत्री बने रह सकते हैं।
इसके अलावा, नीतीश कुमार के सरकार में आने से भाजपा पर देश भर में जातिगत जनगणना कराने का दबाव भी पड़ सकता है क्योंकि कांग्रेस समेत कुछ अन्य विपक्षी दल लगातार इसकी मांग कर रहे हैं। नीतीश कुमार ने बिहार में जातिगत सर्वेक्षण कराया है और प्रदेश की सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में जाति आधारित आरक्षण 50 से बढ़ाकर 60 फीसदी कर दिया है।
भाजपा के लिए अगली बड़ी चुनौती जदयू और चिराग पासवान के नेतृत्व वाली लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के साथ अपने समीकरण साधने की हो सकती है। चिराग की पार्टी के सभी पांच उम्मीदवार अपनी-अपनी सीटों पर भारी अंतर से आगे चल रहे हैं।
भले ही दोनों पार्टियों में अभी सौहार्द दिख रहा है मगर 4 साल पहले तक दोनों पार्टियां एक दूसरे के खिलाफ थीं और इसकी शुरुआत चिराग के साल 2020 के विधान सभा चुनावों में जदयू के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतारने से हुई थी। अगर नीतीश इंडिया गठबंधन के साथ जाते हैं तो वह राजद और उसके नेता तेजस्वी यादव के साथ समझौता कर सकते हैं जो लंबे अरसे से प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे हैं।