स्थानीय मुद्रा में अंतरराष्ट्रीय कारोबार करने के लिए भारत अगले महीने की शुरुआत तक संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), मलेशिया और नाइजीरिया के साथ समझौता कर सकता है। सूत्रों ने कहा कि इसका मकसद आयातकों और निर्यातकों के लिए लेन देन की लागत कम करना है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के शीर्ष अधिकारियों और उपरोक्त उल्लिखित देशों के संबंधित अधिकारी पिछले कुछ महीनों से एक दूसरे से संपर्क में थे और वह स्थानीय मुद्रा में द्विपक्षीय कारोबार करने के मसले पर काम कर रहे थे। उपरोक्त उल्लिखित अधिकारियों में से एक ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘यूएई के साथ चर्चा अंतिम चरण में है। मलेशिया और नाइजीरिया के साथ चर्चा भी ठीक ठाक चल रही है। अगले माह की शुरुआत में सहमति पत्र (एमओयू) पर हस्ताक्षर हो सकते हैं।’
अधिकारी ने कहा, ‘अफ्रीकी देश (जैसे नाइजीरिया) भी स्थानीय मुद्रा में कारोबार के निपटान में रुचि ले रहे हैं क्योंकि विदेशी मुद्रा का संकट है। इस साल मंदी का डर बढ़ रहा है, ऐसे में कुछ देश विदेशी मुद्रा के संकट की चपेट में आ सकते हैं।’
भारत ने हाल में रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण पर जोर दिया है। इसी रणनीति के तहत इन देशों के साथ काम चल रहा है। स्थानीय मुद्राओं में काम करने का एक लाभ यह भी है कि इससे द्विपक्षीय कारोबार को और ज्यादा बढ़ावा मिलेगा। जहां तक भारत और यूएई के बीच कारोबार का सवाल है, भारत ने रुपये-दिरहम में कारोबार को लेकर एक अवधारणा पत्र तैयार किया है और इसे पिछले साल पश्चिम एशिया के देशों के साथ साझा दिया है।
अधिकारियों ने कहा कि यूएई का हित इस व्यवस्था में अहम है। केंद्रीय बैंक ने पहले ही एक नोडल पर्सन को चिह्नित किया है। व्यापक विचार यह है कि एक ढांचा तैयार किया जाए, जो लेन-देन की लागत घटाएगा और इससे किसी तीसरी मुद्रा के माध्यम से कारोबार करने की गतिविधि बंद होगी।
आयातकों और निर्यातकों को मुद्रा विनिमय में धन गंवाना पड़ता है। उदाहरण के लिए कारोबार के दौरान पहले रुपये को डॉलर में बदला जाता है, उसके बाद उसे किसी अन्य मुद्रा में बदला जाता है। केंद्रीय बैंक स्थानीय मुद्रा में कारोबार की मात्रात्मक हिस्सेदारी को लेकर भी चर्चा कर रहा है।
फेडरेशन आफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशंस (फियो) के महानिदेशक (डीजी) और मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) अजय सहाय ने कहा, ‘भारत इन तीन देशों से बड़े पैमाने परआयात करता है और कारोबार का संतुलन उनके पक्ष में है, ऐसे में भारतीय रुपये में कारोबार शुरू होने से हमारी विदेशी मुद्रा बचेगी। इसके अलावा इससे छोटे और नए निर्यातकों को भी मदद मिलेगी, क्योंकि वह मुद्रा के विनिमय के उतार चढ़ाव और इससे जुड़ी जटिलताओं के जोखिम से बचे रहेंगे।’