औद्योगिक शब्दावली में यदि कोई मुद्दा है जिसमें राय एक–दूसरे के बिल्कुल विपरीत हैं, तो वह है पुरानी मशीनरी के आयात का मुद्दा। पुरानी मशीनरी का इस्तेमाल करने वाले उन्हें इसलिए आयात करते हैं क्योंकि वे काफी सस्ती होती हैं। वे यह तर्क देते हैं कि यदि ऐसी मशीनरी काफी मुनाफे के साथ उत्पादों के निर्माण के लिहाज से उनके लिए पर्याप्त है तो उन्हें इसका आयात क्यों बंद कर देना चाहिए। हालांकि ऐसे उत्पाद गुणवत्ता की दृष्टि से ज्यादा अच्छे नहीं होते हैं। वे उन बाजारों के लिए उपयुक्त होते हैं, जिन पर समाज के बेहद गरीब तबके का वर्चस्व होता है। यह कमजोर वर्ग ज्यादा कीमत चुकाने में असमर्थ होता है। समाज का यह कमजोर तबका सस्ते कपड़ों की खरीदारी करना उचित समझता है। उनके लिए स्टैंडर्ड का महत्त्व इसलिए भी नहीं होता क्योंकि वे सस्ते उत्पादों की बदौलत अपनी जरूरतें जल्द पूरी कर लेते हैं। गरीब वर्ग के बाजार और समृद्ध वर्ग के बाजार में काफी अंतर है। अच्छी गुणवत्ता वाला कपड़ा नई मशीनरी में तैयार किया जाता है और सस्ते व कम खूबसूरत कपड़े पुरानी मशीनरी में तैयार किए जाते हैं। इसका कोई कारण नहीं है कि हमारे देश में पुरानी मशीनरी का आयात रोकने के लिए नई मशीनरी के निर्माताओं को गंभीरता से विचार क्यों करना चाहिए।
हमारे देश में पुरानी मशीनरी का आयात अंतरराष्ट्रीय जंक यार्ड में तब्दील होता जा रहा है। इससे बड़े मशीनरी निर्माता जुड़े हुए हैं जो चैम्बर, संगठन, संघ और परिसंघ में पूरी तरह से संगठित हैं। उनका दृष्टिकोण पुरानी मशीनरी के आयात को प्रतिबंधित करने की उनकी इच्छा के अधीन है ताकि वे अपनी नई मशीनरी की बिक्री बेहतर तरीके से कर सकें। ऐसा नहीं है कि उनकी नई मशीनरी की मांग ही नहीं है। वास्तव में यह मांग घरेलू आपूर्ति की तुलना में काफी अधिक है। एक महत्त्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि यदि पुरानी मशीनरी की आपूर्ति को रोका जा सकता है या सीमित किया जा सकता है तो कीमतें बढ़ जाएंगी और इससे नई मशीनरी के निर्माण में लगे उद्योग को बड़ा लाभ मिलेगा।
पुरानी मशीनरी के आयात पर प्रतिबंध का समर्थन करने वाले लोगों की ओर से सुझाए गए उपायों की नीचे लिखे तथ्यों से जांच की जा सकती है
इन समर्थकों का सुझाव है कि पुरानी मशीनरी पर उच्च स्तर का शुल्क जैसे कि 60-70 फीसदी का शुल्क वसूला जाना चाहिए। यह सुझाव एक शुल्क अवरोध के निर्माण की तरह है जो शुल्क दर घटाए जाने की नीति के पूरी तरह खिलाफ है। उनका सुझाव है कि पुरानी मशीनरी की कीमत नई मशीनरी की 70 फीसदी के बराबर ली जानी चाहिए। यह कस्टम्स को–ऑपरेशन काउंसिल के वैल्यूएशन रूल्स के खिलाफ है।
गौरतलब है कि भारत भी कस्टम्स को–ऑपरेशन काउंसिल का सदस्य है। वे यह भी सुझाव दे रहे हैं कि जो मशीनरी भारत में बनती है उसे पुरानी मशीनरी के तौर पर आयात की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। इस सुझाव से पुराने समय के नॉट मैन्युफैक्चर्ड इन इंडिया (एनएमआई) सर्टिफिकेट पर विपरीत असर पड़ेगा। काफी लंबे समय से पुरानी मशीनरी की बड़ी मांग रही है। हालांकि पुरानी मशीनरी द्वारा तैयार किए जाने वाले सामान कम गुणवत्ता वाले होते हैं। ऐसी मशीनरी के आयात की अनुमति बाजार की ताकतों द्वारा निर्धारित होगी। सस्ती मशीनरी गरीब लोगों के लिए सस्ते उत्पाद बनाती है। हमारे देश में गरीब लोगों की तादाद तकरीबन 40 फीसदी है। पुरानी मशीनरी के आयात पर बहुत ज्यादा प्रतिबंध भी नहीं लगाया जा सकता। यह उपयुक्त होगा कि इस पर 12 वर्षों की समय–सीमा तक के लिए प्रतिबंध लगाना चाहिए। इससे भारत को अंतर्राष्ट्रीय जंक यार्ड बनने से रोकने में भी मदद मिलेगी। यह पुरानी मशीनरी के कम मूल्यांकन की दिशा में दुरुपयोग को रोकने में भी प्रभावी होगा। इसके अलावा मैं किसी अन्य प्रतिबंध की सिफारिश नहीं करना चाहता हूं।