देश में रोजगार की गुणवत्ता में कमी आई है । राष्टीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार देश के प्रमुख 21 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेश राज्यों में से 12 में रोजगार की गुणवत्ता में कमी दर्ज की गई है। जुलाई 2022 -जून 2023 की अवधि में 1 साल पहले की तुलना में वेतनभोगी रोजगार में कमी आई है। बिजनेस स्टैंडर्ड ने एनएसओ की रिपोर्ट का विश्लेषण किया है।
असम में वेतनभोगी रोजगार में लगे कर्मचारियों में कर्मचारियों में 8.7 प्रतिशत अंक कम हुई है और यह जुलाई 2023 -जून 2023 की अवधि में कम होकर 10.8 प्रतिशत रह गई है। इसे ठीक एक साल पहले जुलाई, 2021 से जून, 2022 की अवधि में यह हिस्सेदारी 19.5 प्रतिशत हुआ करती थी।
इस मामले में दिल्ली की स्थिति सबसे अधिक खराब है जहां वेतन भोगी कार्यों में लगे कर्मचारियों की संख्या 6.2 प्रतिशत अंक कम हुई है। इसके बाद उत्तराखंड (5.2 प्रतिशत) और छत्तीसगढ़ (1.6 प्रतिशत) का नाम आता है है।
रोजगार का आकलन करने के लिए इस्तेमाल होने वाले यूजुअल स्टेट्स के अंतर्गत किसी व्यक्ति की गतिविधि स्थिति के लिए निर्दिष्ट अवधि एक साल होती है और किसी व्यक्ति का वर्गीकरण इस अवधि में उसके रोजगार के आधार पर किया जाता है।
वेतनभोगी नौकरियों में लगे लोगों की संख्या में कमी से उलट स्वरोजगार एवं अस्थायी कार्य करने वाले लोगों की संख्या इन राज्यों में उक्त अवधि के दौरान बढ़ी है। विशेषज्ञ आमतौर पर नियमित वेतन या वेतन भोगी कार्यों को बेहतर विकल्प मानते हैं जहां कर्मचारियों को एक नियमित अंतराल के बाद एक निश्चित वेतन का भुगतान किया जाता है।
अस्थायी या स्वरोजगार में लगे लोगों को वेतनभोगी कर्मचारियों को तुलना में कम तवज्जो दी जाती है क्योंकि ऐसे लोग मुख्यतः कृषि कार्य में लगे होते हैं या छोटे-मोटे उद्योग धंधे चलाते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर भी नियमित कार्यों में लगे कर्मचारियों की संख्या आलोच्य अवधि में 21.5 प्रतिशत से गिरकर 20.9 प्रतिशत रह गई है।
वेतन भोगी कम लोगों की संख्या में कमी ऐसे समय में आई है जब देश में बेरोजगारी दर घटकर 6 वर्षों के निचले स्तर 3.02प्रतिशत पर आ गई है। दूसरी तरफ देश में श्रम बाल भागीदारी दर भी इसी अवधि के दौरान 57.9 प्रतिशत की उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। इस बारे में राष्ट्रीय सर्वेक्षण ने अप्रैल 2017 से सालाना सर्वेक्षणजारी करना शुरू किया है।
यूनिवर्सिटी ऑफ़ बाथ में अतिथि प्राध्यापक संतोष मेहरोत्रा ने कहा कि लोकप्रिय विचार के उलट श्रम बाजार अभी ठीक तरह से उबरा नहीं है है। उन्होंने कहा कि पारिश्रमिक रोजगार की हिस्सेदारी कोविड महामारी से पूर्व की अवधि की तुलना में अभी भी काम है जिससे लोग स्वरोजगार की तरफ मुड़ रहे हैं।
मेहरोत्रा ने कहा कि कृषि क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की संख्या में भी थोड़ा इजाफा हुआ है जो ग्रामीण श्रम बाजारों में दबाव का संकेत है। खेती बाड़ी में काम करने वाले लोगों की संख्या 45.5 प्रतिशत से बढ़कर 45.8 प्रतिशत हो गई है।
इस बीच पंजाब में नियमित वेतन पाने वाले कार्यबलों में 2.5 प्रतिशत अंक का इजाफा हुआ है और यह बढ़कर 33.4 प्रतिशत पहुंच गया है गया है। इसके बाद हरियाणा केरल और तेलंगाना में क्रमशः 2.2 प्रतिशत अंक 2 प्रतिशत अंक और 1.9 प्रतिशत अंक की बढ़ोतरी हुई है।
पारिश्रमिक रोजगार में पिछले 1 साल के दौरान कमी और श्रम बल भागीदारी में बढ़ोतरी इस बात का संकेत है कि अधिक लोग श्रम बाजार में आ रहे हैं मगर अर्थव्यवस्था उनके लिए सम्मानजनक रोजगार के अवसर देने में असफल रही है। यही कारण है कि लोग स्वरोजगार या अन्य छोटे कारोबार चला रहे हैं।