भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बैंकों को असुरक्षित ऋणों के आवंटन में तेजी को लेकर आगाह किया है। पिछले कुछ समय से बैंकिंग प्रणाली में कुल ऋण आवंटन में असुरक्षित ऋणों की हिस्सेदारी में तेजी से इजाफा हुआ है।
आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने मौद्रिक नीति की समीक्षा के बाद कहा, ‘व्यक्तिगत ऋणों के कुछ खास खंड में भारी इजाफा देखने को मिल रहा है। आरबीआई इन पर पैनी निगाह रख रहा है ताकि किसी तरह का दबाव बड़ा संकट न बन जाए। दास ने कहा कि बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को अपनी आंतरिक निगरानी व्यवस्था मजबूत बनानी चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘अगर किसी तरह का जोखिम दिख रहा है तो उस पर तुरंत ध्यान देना चाहिए और अपने हित में सुरक्षा के उचित उपाय करने चाहिए। वक्त की जरूरत है मजबूत जोखिम प्रबंधन और ऋण आवंटन के मानकों का पालन।’
डिप्टी गवर्नर स्वामीनाथन जे ने कहा कि पिछले दो वर्षों में असुरक्षित ऋणों में 23 प्रतिशत का भारी भरकम इजाफा हुआ है मगर इसकी तुलना में बैंकिंग क्षेत्र में कुल ऋण आवंटन की रफ्तार 12 से 14 प्रतिशत के बीच रही है। स्वामीनाथन ने कहा कि फिलहाल आरबीआई अपनी तरफ से कोई कदम उठाने पर विचार नहीं कर रहा है मगर चाहता है कि बैंक एवं अन्य वित्तीय संस्थान ऋण आवंटन में खुद ही मुस्तैदी बरतें।
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उन्होंने कहा, ‘हमने फिलहाल किसी तरह के नियम या दिशानिर्देश नहीं दिए हैं। मगर हम यह अपेक्षा रखते हैं कि बैंक एवं एनबीएफसी अपनी तरफ से कोई कोताही नहीं बरतें।’
आरबीआई की नवीनतम वित्तीय स्थायित्व रिपोर्ट के अनुसार असुरक्षित खुदरा ऋणों के मद में ऋण आवंटन मार्च 2023 में बढ़कर 25.2 प्रतिशत हो गया, जो मार्च 2021 में 22.9 प्रतिशत था। रिपोर्ट के अनुसार इसी अवधि के दौरान सुरक्षित ऋणों का आवंटन 77.1 प्रतिशत से कम होकर 74.8 प्रतिशत रह गया।
क्रिसिल मार्केट इंटेलिजेंस ऐंड एनालिटिक्स में शोध निदेशक अनिकेत दानी ने कहा, ‘सूचनाओं की उपलब्धता आसान होने और तकनीक के बढ़ते इस्तेमाल के कारण ऋणदाताओं के लिए ऋण आवंटन करना पहले से अधिक सुगम हो गया है। यह संभवतः असुरक्षित ऋणों में बढ़ोतरी का एक बड़ा कारण हो सकता है। डिजिटल माध्यम से कारोबार करना भी पहले की तुलना में आसान हो गया है।’
दानी को लगता है कि बैंक, एनबीएफसी एवं वित्त-तकनीक इकाइयां ऋण आवंटन आतंरिक स्तर पर मजबूत करेंगी और ऐसा नहीं होने पर ही आरबीआई कोई कदम उठाएगा। विश्लेषकों के अनुसार आरबीआई अब इसलिए सतर्क हो गया है कि बैंकिंग प्रणाली में परिसंपत्ति गुणवत्ता में काफी सुधार हो गया है।