भारतीय रिजर्व बैंक चालू वित्त वर्ष में परिसंपत्ति वर्गीकरण के लिए ऋण में संभावित घाटे के मॉडल से लेकर ब्याज दरों तक कई नियामकीय उपाय करेगा, जिनका वित्तीय क्षेत्र पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा। उसका मकसद है कि नियम-कायदे किसी संस्था के हिसाब से नहीं बनें बल्कि सिद्धांतों पर आधारित हों और समूची प्रणाली को होने वाले जोखिम के अनुपात को ध्यान में रखकर बनाए जाएं।
बैंकिंग नियामक ने वित्त वर्ष 2023-24 की अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा, ‘वित्तीय क्षेत्र के मध्यस्थों को और भी मजबूती देने के लिए 2024-25 में नियमन और निगरानी के कई उपाय किए जाएंगे।’ वह आय की पहचान, संपत्ति वर्गीकरण और अपने दायरे में आने वाली इकाइयों के लिए प्रोविजनिंग के कायदों तथा फंसी संपत्तियों के समाधान के लिए मौजूद व्यवस्था से जुड़े नियमों की पूरी समीक्षा करेगा।
रिजर्व बैंक ने कहा कि परियोजनाओं को कर्ज दे रही सभी विनियमित इकाइयों के लिए एक जैसे और दूरदर्शिता भरे दिशानिर्देश आएंगे। वह परियोजनाओं के लिए कर्ज पर मसौदा पत्र की घोषणा पहले ही कर चुका है। इसमें स्टैडर्ड यानी सामान्य जोखिम वाली संपत्ति की श्रेणी में आ रही निर्माणाधीन परियोजनाओं के लिए प्रोविजनिंग बढ़ाकर 5 फीसदी करने का प्रस्ताव है, जिसका बैंक पुरजोर विरोध कर रहे हैं।
रिजर्व बैंक ने पिछले साल जनवरी में ऋण नुकसान या घाटे के मॉडल पर नियमों का मसौदा प्रकाशित किया था। अभी बैंक फंसे हुए कर्ज को कर्ज पर नुकसान मानकर आगे बढ़ते हैं। अनुमानित ऋण घाटे के नियम इस साल आ सकते हैं, जिनमें बैंकों के लिए प्रोविजनिंग की जरूरत धीरे-धीरे बढ़ाने की बात हो सकती है। फंसी संपत्तियों के प्रतिभूतिकरण के लिए व्यवस्था से संबंधित कायदे भी वित्त वर्ष 2024-25 में आ सकते हैं।
रिजर्व बैंक जलवायु के लिए रकम के इंतजाम पर भी नियम ला सकता है। रिपोर्ट में कहा गया, ‘जलवायु परिवर्तन से वित्तीय क्षेत्र के सामने आने वाली विभिन्न प्रकार की चुनौतियों से कारगर तरीके से निपटने के लिए जागरूकता बढ़ाने, क्षमता तैयार करने और हितधारकों को एकजुट करने के प्रयास किए जाएंगे।
2022 में प्रायोगिक तौर पर शुरू हुई केंद्रीय बैंक डिजिटल करेंसी का दायरा भी बढ़ाया जाएगा। केंद्रीय बैंक ने कहा, ‘भारतीय रिजर्व बैंक वित्त वर्ष 2025 में ई-रुपया रिटेल और ई-रुपया थोक का दायरा भी बढ़ाएगा, जिसमें इस्तेमाल के तरीकों के साथ ही नई डिजाइन, तकनीक और भागीदारों की संख्या भी बढ़ाई जाएगी। इसके साथ ही अधिक वित्तीय संस्थाओं और डेटा सेवा प्रदाताओं एवं नए उत्पादों के साथ पूरा सार्वजनिक तकनीकी प्लेटफार्म भी लाया जाएगा।’
रिजर्व बैंक चालू वित्त वर्ष में प्राथमिक क्षेत्र के लिए कर्ज के दिशानिर्देशों की भी समीक्षा करेगा और और 2025 से 2030 के लिए राष्ट्रीय वित्तीय समावेशन नीति का अगला मसौदा तैयार करेगा। शहरी सहकारी बैंकों के लिए त्वरित सुधार कार्रवाई नाम की संशोधित निगरानी व्यवस्था पर भी विचार चल रहा है।