कोयला और रेल मंत्रालयों ने कोयले की रेल-समुद्र-रेल (आरएसआर) मोड में ढुलाई के लिए रेल से माल ढुलाई की दर में कमी करने के ढांचे को अंतिम रूप दिया है। बिजनेस स्टैंडर्ड को मिली जानकारी के मुताबिक कोयला खदान से बंदरगाह तक कोयला पहुंचाने के लिए रेल मंत्रालय कम दरों की पेशकश करेगा और उसके बाद बंदरगाहों से बिजली संयंत्रों तक कोयला पहुंचाया जाएगा।
कुछ राज्यों ने शिकायत की थी कि आरएसआर मोड में थर्मल कोयले की ढुलाई की दर सिर्फ रेल से ढुलाई की तुलना में कम है, भले ही रेल की तुलना में शिपिंग सस्ती है। इस शिकायत के बाद माल ढुलाई का नया ढांचा बनाया गया है। एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि भारतीय रेलवे के आधार भाड़ा में कोई बदलाव नहीं होगा, टेलीस्कोपिक दरें लागू करके ढुलाई की दर कम की जाएगी।
टेलीस्कोपिक फ्रेट का मतलब यह है कि कोयला खदान से बंदरगाह और उसके बाद बंदरगाह से बिजली संयंत्र तक कोयला पहुंचाने को एक कंसाइनमेंट माना जाएगा, जिससे अंतिम में ढुलाई की लागत कम आएगी।
इस समय खदान से बंदरगाह तक रेल से ढुलाई को अलग और बंदरगाह से बिजली घर तक ढुलाई अलग ली जाती है, जिससे यह उल्लेखनीय रूप से महंगा हो जाता है। कोयला मंत्रालय द्वारा तटीय शिपिंग के आकलन में पाया गया कि रेलवे द्वारा शुरू और आखिर में आने वाली लागत प्रमुख वजह है, जिसके कारण आरएसआर मॉडल असफल हो रहा है।
कोयला लॉजिस्टिक्स नीति 2022 के मसौदे में मंत्रालय ने पाया था कि रेल द्वारा शुरुआती और आखिर की कनेक्टिविटी की लागत आरएसआर मॉडल में कुल लॉजिस्टिक्स लागत का 71 प्रतिशत है। इस तरह से रेलवे के शुल्क को तार्किक बनाने से कोयले की ढुलाई में आरएसआर मॉडल की व्यावहारिकता बढ़ेगी।
उपरोक्त उल्लिखित अधिकारी ने कहा, ‘कोयला मंत्रालय से कहा गया है कि वह बंदरगाहों का ब्योरा दे, जो टेलीस्कोपिक फ्रेट स्कीम के लाभार्थी होंगे। उसके बाद नई दरों की आधिकारिक अधिसूचना जारी कर दी जाएगी।’