उद्योग विभाग ने भारत में उत्पादक मूल्य सूचकांक (PPI) पेश करने के लिए एक प्रारूप को अंतिम रूप दिया है जो अंतत: थोक मूल्य सूचकांक की जगह लेगा। पीपीआई उत्पादन के विभिन्न चरणों में कीमतों पर नजर रखते हुए वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादकों के नजरिये से थोक मूल्य का आकलन करता है।
अधिकतर देशों में थोक मूल्य सूचकांक की जगह अब पीपीआई का ही उपयोग किया जाता है क्योंकि यह वैचारिक रूप से आर्थिक गतिविधियों के उपायों को संकलित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहमत राष्ट्रीय लेखा प्रणाली के अनुरूप है।
उद्योग संवर्द्धन और आंतरिक व्यापार विभाग के सचिव राजेश कुमार सिंह ने आज कहा, ‘सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय से इस बारे में परामर्श किया गया है। इसे उच्च अधिकारियों के समक्ष प्रस्तुत करने से पहले कम से कम एक बार राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग द्वारा देखा जाना चाहिए। प्रारूप हमारी ओर से तैयार है और हमने इसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष को दिखाया है। आवश्यक प्रक्रियागत मंजूरी पर काम जारी है मगर इसे कब तक मंजूरी मिलेगी उसकी समयसीमा नहीं बता सकता।’
सिंह ने कहा कि थोक मूल्य सूचकांक की जगह को पीपीआई अपनाया जा सकता है क्योंकि अधिकतर विकसित देशेां में इसका उपयोग किया जाता है। इस संबंध में अंतिम निर्णय नहीं हुआ है और अभी यह परामर्श के चरण में है। उन्होंने कहा, ‘कुछ समय के लिए थोक मूल्य सूचकांक और पीपीआई दोनों मौजूद रहेंगे।’
राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के पूर्व कार्यकारी चेयरमैन पीसी मोहनन ने कहा कि थोक मूल्य सूचकांक की जगह पीपीआई को अपनाने की प्रक्रिया में ज्यादा समय लग सकता है क्योंकि सरकार को भार निर्धारित करने, उपयुक्त नमूने तैयार करने और मूल्य संग्रह की अवधि तय करने जैसे मुद्दों से जूझना होगा।
उन्होंने कहा, ‘सबसे बड़ा मुद्दा यह तय करना होगा कि किन सेवाओं को शामिल किया जाए या बाहर रखा जाए और किस तरह की सेवाएं संबंधित क्षेत्र का सही प्रतिनिधित्व करती हैं? उसके बाद चुनी गई वस्तुओं और सेवाओं का भार निर्धारित करने की जरूरत होगी। इन सब में समय लेगा और इसके साथ ही मूल्य संग्रह की अवधि (मासिक या साप्ताहिक) भी तय करनी होगी।’
सरकार दो दशक से भी ज्यादा समय से भारत के सदंर्भ में पीपीआई के तौर तरीके निर्धारित करने का प्रयास कर रही है, जिसमें सबसे बड़ी चुनौती ऐसी पद्धति को अंतिम रूप देना है जो मौजूदा थोक मूल्य सूचकांक में सुधार ला सके।
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत पीपीआई पर अर्थशास्त्री बीएन गोल्डर की अध्यक्षता वाला कार्यसमूह ने 2017 में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि कई विकसित और उभरती अर्थव्यवस्थाएं 1970 के दशक से पहले ही थोक मूल्य सूचकांक की जगह पीपीआई को अपना चुकी हैं।
सिंह ने यह भी कहा कि सरकार थोक मूल्य सूचकांक के लिए मौजूदा आधार वर्ष 2011-12 को बदलने पर भी काम कर रही है।