भारत सरकार के शीर्ष थिंक टैंक नीति आयोग ने उन नियमों में ढील देने का प्रस्ताव किया है, जिनके तहत चीनी कंपनियों को यहां निवेश के लिए अतिरिक्त जांच की आवश्यकता होती है। इस बारे में जानकारी देने वाले तीन सरकारी सूत्रों के अनुसार आयोग का मानना है कि इन नियमों के कारण कुछ बड़े सौदों को अंजाम तक पहुंचाने में देर हुई है। वर्तमान में किसी भी निवेश के लिए चीनी कंपनियों को गृह और विदेश मंत्रालयों से सुरक्षा मंजूरी लेनी पड़ती है।
अपनी पहचान गुप्त रखने की शर्त पर सूत्रों ने बताया कि नीति आयोग ने प्रस्ताव दिया है कि चीनी कंपनियां किसी भारतीय कंपनी में 24 प्रतिशत तक हिस्सेदारी बिना अनुमोदन ले सकती हैं। आयोग का यह प्रस्ताव देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ावा देने वाली योजना का हिस्सा है। व्यापार मंत्रालय का उद्योग विभाग, वित्त और विदेश मंत्रालय के साथ-साथ प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) भी इस प्रस्ताव का अध्ययन कर रहा है।
नीति आयोग के सभी विचारों-प्रस्तावों को मानना सरकार के जरूरी नहीं है। लेकिन यह प्रस्ताव ऐसे समय आया है जब भारत और चीन 2020 में सीमा पर हुई झड़पों के बाद से तनावपूर्ण संबंधों को सुधारने की कोशिश कर रहे हैं। दो सूत्रों ने कहा कि निवेश नियमों में ढील देने में अभी महीनों का समय लग सकता है। इस पर राजनीतिक नेताओं को फैसला लेना है। वैसे, उद्योग विभाग चीनी कंपनियों को ढील देने के पक्ष में है, लेकिन अन्य सरकारी निकायों ने अभी तक अपनी अंतिम राय पेश नहीं की है। इस मामले में टिप्पणी के लिए रॉयटर्स ने नीति आयोग, मंत्रालयों, उद्योग विभाग और प्रधानमंत्री कार्यालय से संपर्क किया, लेकिन किसी भी खबर लिखे जाने तक जवाब नहीं दिया।
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निवेश की इच्छुक चीनी कंपनियों के लिए अतिरिक्त जांच के नियम 2020 में सीमा पर हुई झड़पों के बाद लागू किए गए थे। ये नियम देश की सीमा से सटे देशों पर लागू होते हैं। लेकिन चीनी कंपनियां इनसे सबसे अधिक प्रभावित हुईं। इसके विपरीत अन्य देशों की कंपनियां विनिर्माण और फार्मास्यूटिकल्स जैसे कई क्षेत्रों में स्वतंत्र रूप से निवेश कर सकती हैं, जबकि रक्षा, बैंकिंग और मीडिया आदि कुछ संवेदनशील क्षेत्रों में बाहरी निवेश पर कुछ बाध्यताएं हैं।
सूत्रों ने कहा कि नियमों में बदलाव के कारण ही 2023 में चीन की बीवाईडी कंपनी द्वारा इलेक्ट्रिक कार जॉइंट वेंचर में 1 अरब डॉलर निवेश करने की योजना टल गई। यूं तो यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद वैश्विक स्तर पर विदेशी निवेश में कमी आई है, लेकिन भारत में एफडीआई में भारी गिरावट का कारण चीनी निवेश में अड़चन बने नियमों को ही माना गया। पिछले वित्तीय वर्ष में भारत में शुद्ध प्रत्यक्ष विदेशी निवेश गिरकर रिकॉर्ड निचले स्तर 35.3 करोड़ डॉलर पर आ गया, जो मार्च 2021 को समाप्त वित्त वर्ष में दर्ज किए गए 43.9 अरब डॉलर का एक अंश मात्र था।
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पिछले साल अक्टूबर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच रूस के कजान में हुई वार्ता के बाद सैन्य तनाव में कमी आई और उसके बाद से दोनों देश आपसी संबंध सुधारने के प्रयास कर रहे हैं। इनमें सीधी उड़ानें दोबारा शुरू करने और दशकों पुराने सीमा विवाद का स्थायी हल खोजने की योजना शामिल है। इन्हीं पहलों के तहत विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इसी सप्ताह पांच वर्षों में पहली बार चीन की यात्रा की है, जिसमें उन्होंने वहां के विदेश मंत्री को बताया कि दोनों देशों को सीमा पर तनाव कम करना चाहिए और दुर्लभ खनिजों की आपूर्ति पर चीनी प्रतिबंध जैसे व्यापार में बाधा डालने वाले उपायों से बचना चाहिए। सूत्रों ने कहा कि थिंक टैंक ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्रस्तावों पर निर्णय लेने वाले बोर्ड को पुनर्जीवित करने की भी सिफारिश की है।