यूरोपियन यूनियन (EU) के कार्बन बार्डर टैक्स और वनों की कटाई का नियमन करने के बाद भारत इस व्यापारिक समूह के नए प्रस्तावित कानूनों पर नजर रख रहा है। ईयू ने बाल श्रम, श्रमिकों के उत्पीड़न, पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के मुद्दों के लिए कंपनियों को उत्तरदायी बनाने के लिए कानून प्रस्तावित किए हैं।
सरकारी अधिकारियों के मुताबिक EU में नया कानून प्रारूप के स्तर पर है। इस व्यापार समूह का पहला देश जर्मनी था जिसने इस वर्ष की शुरुआत में आपूर्ति श्रृंखला (सप्लाई चेन) के उचित परिश्रम का कानून बनाया है। अगर यह कानून लागू किया जाता है तो यह एक और गैर शुल्क बाधा बन सकती है। इससे छोटे कारोबार प्रभावित हो सकते हैं।
अधिकारी ने बताया कि भारत इस घटनाक्रम पर नजर रख रहा है। हालांकि भारत के लिए प्रमुख चिंता ईयू का कार्बन बार्डर समायोजन तंत्र है जिसे कार्बन बार्डर टैक्स के रूप में जाना जाता है। इसके अलावा वैश्विक स्तर पर वन की कटाई से निपटने वाला कानून भी है। इस बारे में एक अधिकारी ने बताया, ‘भारत के पास समय है और इन दोनों मुद्दों पर ईयू से द्विपक्षीय स्तर पर बातचीत कर रहा है।’
विकसित देशों के पर्यावरण, श्रम, सतत विकास, जेंडर के मुद्दों को कारोबार का हिस्सा बनाने की प्राथमिकता के खिलाफ भारत सजग हो गया है। इन मुद्दों को आमतौर पर पारंपरिक रूप से गैर शुल्क मुद्दा माना जाता है। हालांकि विकसित देशों का मानना है कि ये मुद्दे कारोबार के साथ परस्पर जुड़े हुए हैं और इन्हें अलग नहीं किया जा सकता है।
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अधिकारी ने कहा, ‘उचित परिश्रम का कानून जटिल है और इसका पालन करना आयातकों की जिम्मेदारी है।’ जर्मनी के ‘सल्पाई चेन ड्यू डिलिजेंस अधिनियम’ के अनुसार जर्मन की कंपनियों को अपनी आपूर्ति श्रृंखला में पर्यावरण और सामाजिक मानदंडों को लागू करना है। इस कानून का ध्येय बाल श्रम, श्रमिकों से दुर्व्यवहार, मूल वेतन नहीं देने जैसे अन्य मुद्दों को हल करना है।