वित्त वर्ष 25 में बीते वर्ष की तुलना में आधारभूत ढांचे के निवेश में वृद्धि सुस्त रहने का अनुमान है। राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय (एनएसओ) के मंगलवार को जारी वित्त वर्ष 25 के सकल घरेलू उत्पाद के प्रथम अग्रिम अनुमानों के मुताबिक सरकारी पूंजीगत व्यय में प्रमुख तौर पर गिरावट और निजी निवेश में सुस्ती से आधारभूत ढांचे में निवेश पर असर पड़ेगा। हालांकि ग्रामीण क्षेत्र में व्यय बढ़ने के कारण वित्त वर्ष 24 की तुलना में वित्त वर्ष 25 में कुल खपत वृद्धि उच्च हो सकती है।
एनएसओ के आंकड़े के मुताबिक वित्त वर्ष 25 में सकल स्थिर पूंजी निर्माण (जीएफसीएफ) का हिस्सा गिरकर नॉमिनल आधार पर जीडीपी के 30.1 फीसदी तक पहुंच सकता है जो वित्त वर्ष 24 में 30.8 प्रतिशत है। जीएफसीएफ से अर्थव्यवस्था में बुनियादी ढांचा निवेश का अंदाजा मिलता है।
बहरहाल, वास्तविक रूप से निवेश मांग में वृद्धि वित्त वर्ष 25 में घटकर 6.4 प्रतिशत हो जाने की उम्मीद है जबकि यह बीते वित्त वर्ष में 9 प्रतिशत थी। इंडिया रेटिंग्स के वरिष्ठ अर्थशास्त्री पारस जसराय ने बताया कि जीएससीएफ की वृद्धि दर में गिरावट अर्थव्यवस्था में कमजोर निवेश मांग को प्रदर्शित करता है। असल में आम चुनावों और राजकोषीय मजबूती पर ध्यान केंद्रित किए जाने के कारण सरकारी व्यय में कमी आई है जो कि महामारी के बाद निवेश को बढ़ावा देने वाला प्रमुख कारक था।
उन्होंने बताया, ‘हालांकि परिवारों का निवेश, जो कि ज्यादातर रियल एस्टेट क्षेत्र में हुआ, वित्त वर्ष 25 में स्थिर रहा है लेकिन निजी निवेश सुस्त रहा। निजी निवेश खासकर कुछ क्षेत्रों जैसे रसायन, नवीकरणीय, सड़क आदि में हुआ लेकिन यह व्यापक स्तर पर शुरू नहीं हुआ है। खपत की सुस्त मांग लंबे समय (वित्त वर्ष 25 में) तक रहने के कारण औद्योगिक घरानों ने सही समय तक इंतजार करने की रणनीति अपनाई है।’
हालांकि इक्रा की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि जीएफसीएफ की वृद्धि एनएसओ के अनुमान से अधिक हो सकती है। सरकारी पूंजीगत व्यय के बढ़ने और निजी पूंजीगत व्यय में कुछ सुधार होने की उम्मीद से यह हो सकता है। दरअसल, इस वित्त वर्ष की पहली छमाही में चुनावों की वजह से सरकारी पूंजीगत व्यय और निजी पूंजीगत व्यय बुरी तरह से प्रभावित हुए थे। दूसरी तरफ पारिवारिक खपत को दर्शाने वाली निजी अंतिम खपत व्यय (पीएफसीई) की हिस्सेदारी नॉमिनल आधार पर वित्त वर्ष 25 में बढ़कर 61.8 प्रतिशत होने का अनुमान है जो वित्त वर्ष 24 में 60.3 प्रतिशत थी। इस क्रम में वास्तविक आधार पर निजी पूंजीगत व्यय की वृदि्ध वित्त वर्ष 25 में बढ़कर 7.3 प्रतिशत होने का अनुमान है जबकि यह वित्त वर्ष 24 में 4 प्रतिशत थी।
जसराय के मुताबिक, ‘अभी तक खपत के प्रमुख संकेतक यह दर्शाते हैं कि उपभोक्ता मांग में दिख रही विषमता ग्रामीण क्षेत्रों की वास्तविक आमदनी, दो पहिया वाहनों की बिक्री बढ़ने आदि के कारण दुरुस्त हो रही है। रोजमर्रा के इस्तेमाल की वस्तुओं की कंपनियों के तिमाही परिणामों ने भी यह संकेत दिया है कि ग्रामीण मांग निरंतर सुधर रही है और यह खपत व जीडीपी वृद्धि दोनों के लिए अनुकूल है। हालांकि रोजमर्रा के इस्तेमाल की कुछ कंपनियों की टिप्पणी के अनुसार शहरी मांग में सुस्ती कायम है।’
क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री धर्मकीर्ति जोशी ने बतायाकि कुल जीडीपी वृदि्ध के हिसाब से देखें तो निजी खपत ने कमजोर आधार की वजह से तुलनात्मक रूप से अच्छा प्रदर्शन किया है। उन्होंने आगे बताया, ‘भारत की कुल खपत में ग्रामीण खपत की हिस्सेदारी 60 प्रतिशत है। खरीफ की अच्छी फसल और रबी सत्र की शानदार संभावनाओं से ग्रामीण खपत को बल मिलेगा। यह मौजूदा वित्त वर्ष में उच्च कृषि वृद्धि के अनुमानों से भी पता चलता है। हालांकि खाद्य मु्द्रास्फीति में प्रत्याशित गिरावट विवेकाधीन खर्च को आधार देगी। यह विशेष रूप से कम आय वाले परिवारों में होगा जो जिनकी खपत में खाद्य उत्पादों का अधिक अनुपात होता है।’
इसी तरह राजस्व व्यय को प्रदर्शित करने वाले सरकारी अंतिम खपत व्यय (जीएफसीई) की नॉमिनल आधार पर जीडीपी में हिस्सेदारी वित्त वर्ष 25 में गिरकर 10.3 प्रतिशत आने का अनुमान है जबकि यह बीते वित्त वर्ष में 10.4 प्रतिशत थी।