ब्रिटेन आयातित सामान पर 2027 से कार्बन आयात कर लगाने की तैयारी में है, जिससे अपने निर्यातकों को राहत दिलाने के लिए भारत कई तरह के उपायों पर बात कर रहा है। मामले की जानकारी रखने वाले लोगों ने बताया कि भारतीय निर्यातकों के लिए यह कर देर से लागू करने और कर की राशि वापस करने जैसे उपायों पर बात की जा रही है।
बताया जा रहा है कि ब्रिटेन के साथ चल रहे मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) के तहत भारत इन मसलों पर द्विपक्षीय वादा चाहता है। दोनों देशों को फरवरी तक समझौता कर लेने की उम्मीद है ताकि भारत में आम चुनाव होने से पहले इसे अंजाम दे दिया जाए।
यह जानकारी देने वाले सूत्र ने कहा कि एफटीए पर बातचीत के दौरान भारत ने इस कानून के अनुपालन के लिए अधिक समय दिए जाने का विकल्प सामने रखा है क्योंकि ब्रिटेन 2050 तक शुद्ध रूप से शून्य कार्बन उत्सर्जन पर पहुंचना चाहता है मगर भारत उसके 20 साल बाद ऐसा कर सकेगा। उसने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘एक विकल्प भारतीय निर्यातकों से लिए गए कर की वापसी भी हो सकता है। इस तरह के चार-पांच विकल्प दिए गए हैं।’
पिछले सप्ताह ब्रिटेन की सरकार ने कहा था कि लोहा, स्टील, एल्युमीनियम, उर्वरक, हाइड्रोजन, सिरैमिक्स, कांच और सीमेंट जैसे उत्पादों पर 2027 से कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (सीबीएएम) यानी कार्बन आयात कर लागू होगा। यह जलवायु परिवर्तन से निपटने की ब्रिटेन की योजना का हिस्सा है।
कर की मात्रा वस्तु के उत्पादन के दौरान बने कार्बन से तय होगी। इसका मतलब है कि ब्रिटेन को माल निर्यात करने वाले देश को कार्बन कर चुकाना होगा, जिसकी गणना उस वस्तु के उत्पादन में हुए कार्बन उत्सर्जन से तय होगी। इसलिए निर्यातकों को अधिक कर चुकाना पड़ेगा। अगर ब्रिटेन कार्बन कर लगाता है तो भारत के लिए एफटीए का कोई मतलब ही नहीं रह जाएगा।
जानकार व्यक्ति ने कहा, ‘हमने ब्रिटेन सरकार के अधिकारियों से कहा है कि हम आपके साथ एक एफटीए पर दस्तखत कर रहे हैं। अगर आप कार्बन कर लगा देंगे तो एफटीए का क्या फायदा होगा?’
व्यापार मंत्रालय में अधिकारी रह चुके थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनीशिएटिव (जीटीआरआई) के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा कि ब्रिटेन सरकार सीबीएएम के जरिये भारतीय निर्यातकों से लिया धन वापस करने या भारत के लिए सीबीएएम टालने पर राजी नहीं होगी क्योंकि इससे कार्बन शुल्क की व्यवस्था गड़बड़ हो जाएगी। दूसरे देश भी फिर इसी तरह की रियायत मांगेंगे।
उन्होंने कहा, ‘भारत को ऐसी दरख्वास्त ही नहीं करनी चाहिए। यूरोपीय संघ से अनुरोध करने का भी अब तक कोई नतीजा नहीं निकला है। भारत को इस बात के लिए तैयार रहना चाहिए कि एफटीए के बाद उसके यहां से जाने वाले माल पर 20 से 35 फीसदी सीबीएएम कर लगेगा मगर ब्रिटेन के उत्पाद बिना शुल्क के भारतीय बाजार में आएंगे।’
ब्रिटेन के साथ एफटीए में सीबीएएम के अलावा उत्पादन के मूल स्थान का नियम, बौद्धिक संपदा अधिकार, वस्तु एवं सेवा भी रोड़ा बन रहे हैं। ब्रिटेन व्हिस्की, वाहन, इलेक्ट्रिक वाहन जैसे उत्पादों के लिए ज्यादा बड़ा बाजार चाहता है। एफटीए पर दोनों देश जनवरी में 14वें दौर की चर्चा करेंगे।