कुछ वर्षों पहले आंकड़ों एवं सूचनाओं (डेटा) को ‘तेल’ की तरह नया और कीमती संसाधन बताया गया था मगर कोविड-19 महामारी ने इसमें नया आयाम जोड़ दिया है। आंकड़ों में दिलचस्पी लेने वाले लोग कोविड-19 के नए स्वरूप से लेकर विभिन्न प्रकार के टीकों और जीवन से कार्य स्थल तक समेत सभी चीजों से जुड़े आंकड़ों से कुछ न कुछ निष्कर्ष निकाले जा रहे हैं। डेटा में अचानक बढ़ोतरी और इसे लेकर बढ़ी दिलचस्पी की वजह से भारत समेत दुनिया के तमाम देशों में कोविड की रोकथाम के केंद्रों को नई ताकत मिली है। हालांकि विशेषज्ञों ने डेटा की बाढ़ को लेकर उत्साह जरूर दिखाया है मगर उन्होंने डेटा के इर्द-गिर्द असमानताओं का भी उल्लेख किया है।
डेटा शोध एवं विश्लेषण में अचानक आई तेजी पर जॉन हॉपकिंस इंडिया इंस्टीट्यूट में संकाय सह-अध्यक्ष एवं जॉन हॉपकिंस ग्लोबल हेल्थ एजूकेशन में उप निदेशक डॉ. अमिता गुप्ता ने कहा कि कोविड पर कम से कम 5 लाख वैज्ञानिक शोध प्रकाशित हुए हैं। इनके अलावा इस महामारी के आर्थिक, वैज्ञानिक एवं सामाजिक प्रभाव पर 1,93,000 से अधिक शोध पत्र भी सामने आए हैं। डॉ. गुप्ता के अनुसार डेटा शोध एवं विश्लेषण कार्यों की अहमियत पहले की तुलना में काफी बढ़ गई है। उन्होंने बिजनेस स्टैंडर्ड से बातचीत में कहा, ‘कोविड महामारी के दौरान कई ऐसी बातें देखने में आई हैं जिनसे लोग शायद पहले
रूबरू नहीं हुए थे। इनमें डेटा एवं डेटा एनालिटिक्स भी है, जिन्हें लेकर लोगों की दिलचस्पी खासी बढ़ गई है। आप जहां भी देखें वहां डेटा पर बात चल रही है।’
कोविन इसकी एक मिसाल है। कोविड-19 टीकाकरण के लिए तकनीकी जमीन तैयार करने वाले कोविन पोर्टल/ऐप के माध्यम से देश में अब तक 1.2 अरब टीके लगाए जा चुके हैं। टीकों और उन्हें लगवाने वाले लोगों से जुड़ी सूचनाओं की तादाद अरबों में हो सकती है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण एवं कोविन के मुख्य कार्याधिकारी आर एस शर्मा कहते हैं,’अगर टीकाकरण के प्रत्येक मामले में 10 सूचनाएं मौजूद हैं तो हमारे पास अध्ययन के लिए कम से कम 10 अरब सूचनाएं उपलब्ध हैं।’
भारत ने सितंबर में जब 2 करोड़ लोगों को टीके लगाए थे तो उस समय टीकाकरण की दर प्रति सेकंड 1,000 थी। कोविड महामारी के दौरान नागरिक तक संवाद करने का माध्यम बन चुके प्लेटफॉर्म माईगॉव में डेटा की भरमार लग गई है। दूसरे विषय सहित इसमें एक पृष्ठ विशेष रूप से महामारी के नाम कर दिया गया है। कोविड के शुरुआती दिनों को याद करते हुए माईगॉव के मुख्य कार्याधिकारी अभिषेक सिंह ने कहा कि माईगॉव पर कोविड चैप्टर फरवरी 2020 में शुरू हुआ था।
हालांकि डेटा ने कुछ असमानताओं की ओर भी इशारा किया है। डॉ. गुप्ता के अनुसार सभी विषयों में महिला लेखक पुरुष लेखकों से पीछे रह गईं। गुप्ता के अनुसार इसकी एक वजह यह हो सकती है कि महिलाएं लॉकडाउन के दौरान बच्चों की देखभाल और अन्य घरेलू कार्यों से भी जुड़ी रहीं। डेटा के भविष्य पर उन्होंने कहा कि अध्ययन एवं शोध कार्यों के लिए रकम अहम मुद्दा होगा और वही तय करेगी कि आगे शोध की दिशा क्या होती है।
