बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग मंत्रालय ने बड़े बंदरगाहों के न्यायिक बोर्ड के गठन के लिए नियम अधिसूचित किया है। यह सभी प्रमुख बंदरगाहों पर किराया तय करने और सार्वजनिक निजी हिस्सेदारी (पीपीपी) के विवादों के समाधान के लिए केंद्रीय निकाय का काम करेगा।
गजट अधिसूचना में मंत्रालय ने कहा है कि बोर्ड अब प्रमुख बंदरगाहों के शुल्क प्राधिकरण (टीएएमपी) का कामकाज अपने हाथों में लेगा, जो जहाज संबंधी और कार्गो संबंधी सभी शुल्कों के नियमन के लिए केंद्रीकृत प्राधिकरण है। साथ ही यह प्रमुख पोर्ट ट्रस्टों और वहां के निजी ऑपरेटरों की संपत्तियों के पट्टे की दरें भी तय करता है।
न्यायिक बोर्ड के गठन का प्रस्ताव मेजर पोर्ट अथॉरिटीज ऐक्ट, 2021 के तहत लाया गया है। इस दीवानी न्यायालय की तरह सभी शक्तियां होंगी। यह दबाव वाली पीपीपी परियोजनाओं के मामलों की सुनवाई भी करेगा, जो केंद्र सरकार या प्रमुख बंदरगाहों के प्राधिकरण इसे सौंपेंगे। केंद्र सरकार के मालिकाना वाले बंदरगाहों को प्रमुख बंदरगाह कहा जाता है।
बोर्ड के सदस्यों की नियुक्ति भारत के मुख्य न्यायधीश (या उनके द्वारा नामित किसी व्यक्ति), जहाजरानी मंत्रालय के सचिव और कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालय के सचिव से बनी समिति की सिफारिशों के आधार पर होगी।
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सेक्टर के विशेषज्ञों को उम्मीद है कि बोर्ड के गठन के बाद शुल्क तय करने की प्रक्रिया धीरे धीरे और सुविधाजनक होगी, क्योंकि शक्तियों का केंद्रीकरण होगा। कुछ निजी ऑपरेटरों ने इसे लेकर चिंता जताई थी, संभवतः इससे उनकी चिंता का आंशिक समाधान हो सकेगा।
बंदरगाहों पर शुल्क तय करने का मसला विवादास्पद रहा है। ऑपरेटरों और सरकार के नियामकों के बीच विवाद के कारण कई परियोजनाएं वर्षों से लंबित चल रही हैं।