बैंक ऑफ बड़ौदा के एक अध्ययन से पता चलता है कि सरकार का पूंजीगत व्यय और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) जैसे आर्थिक कारक चुनावी सीजन से प्रभावित हो सकते हैं। पिछले आंकड़ों के विश्लेषण से इसका संकेत मिलता है। मगर अध्ययन में यह भी कहा गया है कि अधिकतर आर्थिक कारकों के लिए खास रुझान का पता लगाना कठिन है।
साल 2019 के चुनावी महीनों (अप्रैल-मई) के दौरान वित्त वर्ष 2020 के बजट में 3.3 लाख करोड़ रुपये के पूंजीगत व्यय के मद में से केवल 14.1 फीसदी हिस्सा ही उपयोग किया गया था। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘ये पिछले दो वर्षों में देखी गई हिस्सेदारी से कम था।
इससे ये निष्कर्ष भी निकाला जा सकता है कि आगामी चुनावों का सरकार के पूंजीगत व्यय पर असर पड़ सकता है क्योंकि चुनावों के कारण कुछ फैसले टाले जा सकते हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि 2024 में यह कैसा रहेगा।’
एफडीआई के मामले में वित्त वर्ष 2020 में कुल एफडीआई 50 अरब डॉलर से अधिक था और अप्रैल-मई 2019 के चुनावों के दौरान इसकी हिस्सेदारी 18.1 फीसदी थी। बैंक ऑफ बड़ौदा ने कहा, ‘यह हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2019 के साथ-साथ वैश्विक महामारी कोविड-19 के बाद के वर्षों की तुलना में कम थी।
इसका मतलब यह हो सकता है कि विदेशी निवेशक फैसला करने से पहले चुनाव की प्रगति और परिणाम का अध्ययन कर रहे होंगे। यह 2024 में भी बरकरार रह सकता है।’