भारत में एक तिहाई से अधिक बैंक खाते वर्ष 2021 से ‘निष्क्रिय’ हैं। अगर किसी बैंक खाते में एक साल तक जमा-निकासी या डिजिटल लेन देन नहीं होता है तो उसे निष्क्रिया माना जाता है। यह जानकारी वित्तीय समावेशन पर विश्व बैंक की रिपोर्ट में दी गई है।
बुधवार को जारी रिपोर्ट का शीर्षक ‘ग्लोबल फिनडेक्स 2025’ के मुताबिक भारत में वर्ष 2021 में करीब 35 प्रतिशत बैंक खाते ‘निष्क्रिय’ थे। भारत के अलावा विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में औसतन 5 प्रतिशत निष्क्रिय बैंक खाते हैं। लिहाजा भारत में विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में 7 गुना अधिक निष्क्रिय बैंक खाते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, ‘भारत में निष्क्रिय बैंक खातों की बढ़ी हिस्सेदारी का कारण जन धन योजना थी। भारत सरकार लोगों के बैंक खातों की की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए जन धन योजना शुरू की थी। यह योजना अगस्त 2014 में शुरू की गई थी और इस कार्यक्रम के कारण अप्रैल 2022 तक भारत की बैंकिंग प्रणाली में 45 करोड़ अतिरिक्त खाते जुड़ गए थे। भारत के वयस्कों की बैंक के निष्क्रिय खातों में हिस्सेदारी वर्ष 2017 से वर्ष 2021 तक समान थी।’ कुल आबादी में वयस्कों के केवल 9 प्रतिशत – कुल खातों में 13 प्रतिशत – को निष्क्रिय खाता माना जा सकता है। विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में 2021 में निष्क्रिय खातों का स्तर गिरकर (12 प्रतिशत) वर्ष 2014 के स्तर पर आ गया था जबकि यह स्तर 2017 में 17 प्रतिशत था।
दूसरी तरफ उच्च आय अर्थव्यवस्थाओं में वर्ष 2021 में सभी बैंक खाता धारकों के वर्चुअली सक्रिय खाते थे। रिपोर्ट ने इंगित किया कि विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में पुरुषों की तुलना में महिलाओं के निष्क्रिय बैंक खातों 5 प्रतिशत अधिक है। हालांकि भारत में महिलाओं और पुरुषों के निष्क्रिय बैंक खातों का अंतर 12 प्रतिशत है। भारत में महिलाओं के अधिक निष्क्रिय खाते (42 प्रतिशत) थे जबकि पुरुषों के बैंक खाते (30 प्रतिशत) कम थे।