अपनी सामाजिक जिम्मेदारी निभाते हुए तमाम कंपनियां कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) कार्यक्रम के तहत खूब खर्च करती हैं। कंपनियों द्वारा वित्त वर्ष 2022-23 में इस मद में रिकॉर्ड खर्च दिखाया गया, लेकिन यह पता लगाना बहुत मुश्किल काम है कि आखिर यह पैसा कहां खर्च किया जा रहा है।
सितंबर 2022 में कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय ने कंपनियों को यह इजाजत दे दी थी कि वे अपने सीएसआर मद में खर्च का खुलासा सीमित दायरे में कर सकती हैं, यानी पूरा खर्च दिखाने की आवश्यकता नहीं है। ऐसे में अब कंपनियां सीएसआर मद में खर्च की गई पूरी रकम के बारे में जानकारी साझा नहीं कर रही हैं।
प्राइमइन्फोबेस डॉट कॉम द्वारा एकत्र किए गए आंकड़ों के मुताबिक नैशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) में सूचीबद्ध कंपनियों ने वर्ष 2022-23 में सीएसआर मद में रिकॉर्ड 15,524 करोड़ रुपये खर्च किए। इसमें लगभग 3,500 करोड़ रुपये के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है। कंपनियों को अपने लाभ का 2 फीसदी सीएसआर मद में खर्च करना अनिवार्य होता है। यह पैसा शिक्षा, स्वास्थ्य, खेल, प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में लगाया जा सकता है।
वर्ष 2021-22 तक सीएसआर कार्यक्रम के तहत कंपनियों द्वारा निवेश किए जा रहे पैसे की पूरी जानकारी दी जाती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं हो रहा है।
निजी कंपनियों ने अपने सीएसआर फंड के 80 फीसदी रकम का कहां इस्तेमाल किया, यह नहीं बताया है। सार्वजनिक क्षेत्र में यह आंकड़ा 70 फीसदी है। एनएसई पर 1,240 निजी कंपनियां सूचीबद्ध हैं, इनमें से केवल 592 ने सीएसआर मद में खर्च रकम की विस्तृत जानकारी साझा की है, जबकि सार्वजनिक क्षेत्र की 56 कंपनियों में से केवल 18 ने ऐसा किया है।
यदि सीएसआर फंड के खर्च की पूरी जानकारी नहीं मिल पाती तो यह पता लगाने या विश्लेषण करने में दिक्कत पेश आती है कि आखिर इस रकम का इस्तेमाल किस प्रकार किया जा रहा है, या यह कहां उपयोग हो रही है।
उदाहरण के लिए जमीनी आंकड़ों से पता चलता है कि लोगों का जीवन स्तर सुधारने के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च की गई सीएसआर मद की अधिकांश धनराशि मालदार राज्यों के पास चली गई, क्योंकि ज्यादातर कंपनियां तो वहीं की हैं।
महाराष्ट्र और गुजरात को इस मद में सबसे अधिक रकम मिली, जबकि अपेक्षाकृत पिछड़े राज्य बिहार को इस रकम का बहुत छोटा सा हिस्सा ही मिल पाया। नतीजतन केंद्र सरकार ने कंपनियों को सुझाव दिया कि वे ऐसे राज्यों में भी सीएसआर मद की धनराशि खर्च कर सकती हैं, जहां वे सीधे तौर पर कारोबार नहीं कर रही हैं।
वित्त वर्ष 2023 के आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि सीएसआर फंड में सबसे बड़े राज्यों की हिस्सेदारी में केवल वृद्धि हुई है, क्योंकि आंकड़ों में एनएसई में दर्ज कंपनियों को ही शामिल किया गया है। देश की कई बड़ी कंपनियां तो सूचीबद्ध ही नहीं है।